Last Updated:December 16, 2025, 19:16 IST
Yashwant Varma Cash Discovery Row:जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास से जला कैश मिलने का मामला एक बार फिर से चर्चा में है. इस बार जस्टिस यशवंत वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. उन्होंने X यानी एक सांकेतिक नाम से याचिका दाखिल की है. यशवंत वर्मा ने लोकसभा स्पीकर के तीन सदस्यीय कमेटी के गठन को चुनौती दी है. उन्होंने कमेटी को अवैध बताया है और अब सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करने को तैयार है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.
जस्टिस यशवंत वर्मा की याचिका पर लोकसभा स्पीकर को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को जस्टिस यशवंत वर्मा की उस याचिका पर लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी किया, जिसमें उन्होंने निचले सदन के स्पीकर के फैसले पर सवाल उठाया है. जस्टिस यशवंत ने दलील दी है कि इस मामले में जिस प्रक्रिया का पालन किया गया वह ठीक नहीं थी.
यह याचिका उस समिति की कानूनी वैधता को चुनौती देती है, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए गठित किया था. मार्च में उनके सरकारी आवास पर आग लगने की घटना के दौरान बेहिसाब नकदी मिलने के बाद यह जांच शुरू की गई थी.
किस-किस को सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस
जस्टिस दीपांकर दत्ता और ए जी मसीह की बेंच ने जस्टिस वर्मा की याचिका पर लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय को नोटिस जारी किया. जस्टिस वर्मा ने स्पीकर के फैसले को इस आधार पर चुनौती दी है कि इसमें उचित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट की कॉज लिस्ट में याचिकाकर्ता की पहचान छुपाई गई है और उन्हें केवल ‘एक्स’ के नाम से दर्शाया गया है.
क्या थी जस्टिस वर्मा की दलीलें?
जस्टिस वर्मा का कहना है कि भले ही उनके महाभियोग के नोटिस लोकसभा और राज्यसभा दोनों में दिए गए थे, लेकिन स्पीकर ने समिति का गठन उस समय कर दिया जब राज्यसभा के चेयरमैन ने अभी तक नोटिस को स्वीकार नहीं किया था. इतना ही नहीं दोनों सदनों के बीच कोई संयुक्त सलाह-मशविरा भी नहीं हुआ. उन्होंने तर्क दिया कि जजेज (इन्क्वायरी) एक्ट 1968 की धारा 3(2) के प्रावधान के तहत स्पीकर ने 12 अगस्त को एकतरफा समिति का गठन कर दिया, जबकि 21 जुलाई को लोकसभा में प्रस्ताव स्वीकार किया गया था और उसी दिन राज्यसभा में अलग प्रस्ताव दिया गया था, जिसे अभी स्वीकार नहीं किया गया था.
क्यों कमेटी क्यों गठित नहीं हो सकती, वर्मा ने दी ये दलील?
सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी, जो जस्टिस वर्मा की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए थे उन्होंने दलील दी कि अगर दोनों सदनों में एक ही दिन नोटिस दिए जाते हैं. जैसा कि इस मामले में हुआ तो तब तक कोई समिति गठित नहीं की जा सकती जब तक दोनों सदनों में प्रस्ताव स्वीकार न हो जाए. और जब दोनों सदनों में प्रस्ताव स्वीकार हो जाए, तो समिति का गठन लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा चेयरमैन द्वारा संयुक्त रूप से किया जाएगा. सीनियर वकील ने कहा कि अगर नोटिस एक ही दिन दिए गए हैं और जब तक प्रस्ताव औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं होता, तब तक समिति का गठन स्पीकर और चेयरमैन के बीच सलाह के बाद संयुक्त रूप से किया जाएगा और इसे दोनों सदनों की संयुक्त समिति कहा जाएगा.
जज वर्मा की दलीलों पर जस्टिस दत्ता क्या बोले?
जस्टिस दत्ता ने पूछा कि अगर दोनों सदनों में एक ही दिन दो प्रस्ताव पेश किए जाते हैं, तो एक ही दिन में स्वीकार करने का सवाल कहां उठता है? जस्टिस वर्मा जो दिल्ली हाईकोर्ट में कार्यरत थे, उन्हें 14 मार्च को जली हुई करेंसी मिलने के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया था.
कौन-कौन था पैनल पर…
बता दें कि 14 मार्च को करेंसी नोट्स मिलने के एक हफ्ते बाद 22 मार्च को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय पैनल गठित किया, जिसमें पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू, हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस जी एस संधवालय और कर्नाटक हाईकोर्ट की जज अनु शिवरामन शामिल थीं. इस पैनल ने पूरे मामले की इन-हाउस जांच की. पैनल ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाया. समिति की रिपोर्ट के बाद भी जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद यह रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी गई.
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अरुण बिंजोला इस वक्त न्यूज 18 में बतौर एसोसिएट एडिटर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. वह करीब 15 सालों से पत्रकारिता में सक्रिए हैं और पिछले 10 सालों से डिजिटल मीडिया में काम कर रहे हैं. करीब एक साल से न्यूज 1...और पढ़ें
Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
December 16, 2025, 19:13 IST

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