भारत की सुरक्षा नीति को लेकर लंबे समय से एक बड़ा सवाल बना हुआ है. सवाल यह कि भारत का सबसे बड़ा दुश्मन आखिर कौन है? पाकिस्तान, जो वर्षों से आतंकवाद और सीमा पार हमलों के लिए जाना जाता है. या फिर चीन, जो लगातार अपनी सैन्य और परमाणु ताकत बढ़ा रहा है और भारत से कई मोर्चों पर टकराव में है? इस सवाल का जवाब अब अमेरिका की खुफिया एजेंसी डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी (DIA) की ताजा ‘वर्ल्ड थ्रेट असेसमेंट’ रिपोर्ट से साफ हो गया है.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत अब पाकिस्तान को एक मुख्य खतरे के रूप में नहीं बल्कि एक ‘संभाली जा सकने वाली सुरक्षा चुनौती’ के रूप में देखता है. वहीं, चीन को भारत की ‘सबसे बड़ी चुनौती’ बताया गया है, जिससे भारत की सुरक्षा रणनीति का असली फोकस अब चीन के इर्द-गिर्द घूम रहा है.
पाकिस्तान अब कोई बड़ी समस्या नहीं
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रक्षा नीति तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर केंद्रित है—वैश्विक नेतृत्व को मजबूत करना, चीन के प्रभाव का मुकाबला करना और भारत की सैन्य क्षमताओं को आधुनिक बनाना. यह भी कहा गया है कि मई के मध्य में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच सीमित झड़पें हुई थीं, लेकिन फिर भी पाकिस्तान को अब एक छोटे स्तर की समस्या माना जा रहा है.
पाकिस्तान भले ही भारत को ‘अस्तित्व के लिए खतरा’ मानता हो और अपनी परमाणु हथियार प्रणाली को तेजी से आधुनिक बना रहा हो, लेकिन भारत उसके मुकाबले कहीं ज्यादा ताकतवर स्थिति में है. पाकिस्तान की परमाणु रणनीति में ‘नसर’ जैसी छोटी दूरी की मिसाइलों का जिक्र किया गया है, जिनका इस्तेमाल भारत की पारंपरिक सैन्य शक्ति की काट के रूप में किया जाता है. इसके बावजूद भारत पाकिस्तान को अब इतनी बड़ी सामरिक चुनौती नहीं मानता कि उससे हर मोर्चे पर संघर्ष किया जाए.
पाकिस्तान के कंधे पर चीन का हाथ
रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि पाकिस्तान की परमाणु और मिसाइल क्षमताओं को मजबूती देने में चीन की बड़ी भूमिका रही है. चीन ने ही पाकिस्तान और उत्तर कोरिया को लंबे समय से बैलिस्टिक मिसाइल और परमाणु तकनीक देने में मदद की है. चीन न केवल पाकिस्तान का आर्थिक और सामरिक साझेदार बना हुआ है, बल्कि उसकी सेना के साथ पाकिस्तान की सेना हर साल कई संयुक्त सैन्य अभ्यास भी करती है. DIA का कहना है कि पाकिस्तान अपने विपन ऑफ मॉस डिस्ट्रक्शन कार्यक्रम के लिए जरूरी तकनीक और सामग्री चीन से सीधे या हांगकांग, तुर्की, यूएई जैसे देशों के जरिये हासिल करता है.
चीन की बात करें तो उसका परमाणु शस्त्रागार अब 600 से ज़्यादा ऑपरेशनल वॉरहेड्स तक पहुंच चुका है और 2030 तक यह संख्या 1000 से ऊपर हो जाने की संभावना है. साथ ही चीन इन हथियारों को ज्यादा रेडीनेस पर तैनात कर रहा है, ताकि जरूरत पड़ने पर तत्काल जवाबी हमला किया जा सके. इस खतरे को ध्यान में रखते हुए भारत भी अपनी सुरक्षा नीति में भारी बदलाव कर रहा है. भारत ने हाल ही में अपने दो प्रमुख मिसाइल परीक्षण— अग्नि-1 प्राइम और अग्नि-V MIRV (जिसमें एक मिसाइल पर कई वॉरहेड लगाए जा सकते हैं) सफलतापूर्वक पूरे किए हैं. इसके साथ ही INS अरिघाट नामक दूसरी परमाणु पनडुब्बी को भी शामिल किया गया है, जिससे भारत की न्यूक्लियर ट्रायाड और मजबूत हुई है.
भारत-चीन के बीच अब भी असुलझा सीमा विवाद
भारत का ध्यान अब सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इंडो-पैसिफिक और हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी भूमिका को मज़बूत करने पर है. वह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ द्विपक्षीय, त्रिपक्षीय और चतुर्पक्षीय साझेदारियों को विस्तार दे रहा है. सैन्य अभ्यास, हथियारों की बिक्री, प्रशिक्षण और इंटेलिजेंस शेयरिंग जैसे उपायों के जरिए भारत चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश कर रहा है. साथ ही ‘मेक इन इंडिया’ के तहत अपनी रक्षा उत्पादन क्षमता को भी बढ़ा रहा है ताकि वह आत्मनिर्भर हो सके और वैश्विक सैन्य सप्लाई चेन की किसी भी गड़बड़ी से बचा जा सके.
हालांकि, चीन और भारत के बीच सीमा विवाद अभी भी पूरी तरह सुलझा नहीं है. रिपोर्ट में 2023 में लद्दाख के डेपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में हुई सेनाओं की वापसी का ज़िक्र है, लेकिन यह माना गया है कि इससे सिर्फ तनाव कुछ हद तक कम हुआ है, वास्तविक विवाद अभी भी बरकरार है. 2020 के गलवान संघर्ष के बाद से चीन के प्रति भारत का रुख और अधिक सतर्क और आक्रामक हुआ है.
इस तरह से, यह साफ है कि भारत की सुरक्षा रणनीति अब पाकिस्तान से ज़्यादा चीन को लेकर केंद्रित है. पाकिस्तान जहां अब भी सीमा पार आतंक और छिटपुट हमलों के लिए जाना जाता है, वहीं चीन एक बड़े, व्यवस्थित और बहुआयामी खतरे के रूप में उभरा है—चाहे वह परमाणु शक्ति हो, सीमा विवाद, सामरिक विस्तारवाद या वैश्विक शक्ति संतुलन.
ऐसे में यही कहा जा सकता है कि भारत का नंबर वन दुश्मन अब चीन है, और यह न केवल भारतीय रणनीतिकारों की सोच में दिख रहा है, बल्कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट भी इसकी स्पष्ट पुष्टि करती है.