चिराग पासवान की 'बरगद' बनने की चाहत कहीं 'बबूल' न बना दे, निशाने पर नीतीश या..

4 hours ago

Last Updated:May 13, 2025, 12:38 IST

Chirag Paswan Politics: चिराग पासवान की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं क्या इस बार भी बिहार चुनाव में परवान चढ़ेंगी? क्या एलजेपी सुप्रीमो की इच्छाएं बिहार की राजनीति में बीजेपी की 'छतरी' से निकलकर 'बरगद' बनने की है?

चिराग पासवान की 'बरगद' बनने की चाहत कहीं 'बबूल' न बना दे, निशाने पर नीतीश या..

बिहार चुनाव को लेकर चिराग पासवान के मन में क्या चल रहा है?

हाइलाइट्स

चिराग पासवान की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं बढ़ रही हैं.बिहार में विधानसभा चुनाव सितंबर-अक्टूबर में होंगे.चिराग पासवान का बयान 'बिहार बुला रहा है' चर्चा में है.

पटना. क्या बिहार चुनाव से पहले चिराग पासवान फिर से तहलका मचाएंगे? चिराग की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं इस बार भी बिहार में परवान चढ़ेंगी? क्या चिराग बीजेपी की ‘छतरी’ से निकलकर ‘बरगद’ बनने की दिशा में कदम बढ़ाने वाले हैं? ये कुछ सवाल हैं, जो बिहार के सियासी गलियारों में नेताओं और लोगों के जुबान पर हैं. इसी साल सितंबर-अक्टूबर महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर राज्य में राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं. सीएम नीतीश कुमार के नेतृत्व में सत्ताधारी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्षी महागठबंधन अपनी रणनीतियों को मजबूत करने में जुटे हैं. इधर, ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बाद एनडीए के नेता काफी उत्साहित नजर आ रहे हैं.

तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन भी छोटे दलों को साथ लाने की कोशिश में जुटा है, जो चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं. इन सब के बीच लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के प्लान को लेकर भी बिहार में तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो गई हैं. चिराग के उस बयान से एनडीए में बवाल मचा हुआ है, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘बिहार बुला रहा है.’ चिराग के इस बयान पर जेडीयू नेताओं ने अलग अंदाज में ही प्रतिक्रिया दी थी और कहा था चिराग जरूर बिहार आएंगे, लेकिन नीतीश कुमार के लिए प्रचार करने और उन्हें सीएम बनाने. यह बयान काफी व्यंग्यात्मक तरीके से दिया गया, जो एलजेपी नेताओं को छुभ गया.

चिराग पासवान के मन में क्या है?
बिहार की राजनीति गठबंधनों और जातिगत समीकरणों के जटिल मायाजाल में लिपटी है. कुछ जानकारों का मानना है कि चिराग की महत्वाकांक्षा सीएम बनने की है. अगर एनडीए में रहते हुए यह महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होती है तो वह अलग रास्ते पर चल सकते हैं. अगर ऐसा चिराग करते हैं तो इस फैसले से न केवल एनडीए, बल्कि महागठबंधन और अन्य छोटे दलों के समीकरण भी प्रभावित हो सकते हैं. चिराग पासवान खराब स्थिति में भी 2 से 3 प्रतिशत दलित वोटों पर पकड़ रखने का माद्दा रखते हैं. अभी वह केंद्रीय मंत्री हैं और दलित और महादलितों की लगभग 5-6% आबादी पर उनकी अच्छी-खासी पकड़ है.

2020 का वाला अध्याय क्या फिर दोहराएगा?
2020 के विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान ने एनडीए से अलग होकर जेडीयू के खिलाफ उम्मीदवार उतारे थे. इस चुनाव में दलित वोटों के साथ-साथ सवर्णों का भी वोट एलजेपी को मिला था क्योंकि उस चुनाव में बीजेपी से टिकट कटने के बाद कई सवर्ण उम्मीदवारों को उन्होंने टिकट दिया था, जिन्होंने काफी वोट हासिल किए थे. उनकी पार्टी ने लगभग 6% वोट हासिल किए, जिसने कई सीटों पर जेडीयू की हार सुनिश्चित की. अब, यदि चिराग स्थायी रूप से एनडीए से बाहर जाते हैं और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी जैसे नए सहयोगी के साथ गठबंधन करते हैं, तो बिहार में त्रिकोणीय मुकाबले की संभावना बढ़ जाएगी.

बिहार को करीब से जानने वाले वरिष्ठ पत्रकार संजीव पांडेय कहते हैं, ‘बहुत कम ही उम्मीद है कि चिराग पासवान एनडीए छोड़ेंगे. हालांकि, प्रशांत किशोर उनको लगातार लालच दे रहे हैं. अगर पीके और चिराग पासवान की पार्टी साथ आती है तो एनडीए के वोटों पर असर पड़ सकता है. हालांकि, इसकी संभावना नहीं के बराबर ही है. क्योंकि, चिराग पासवान कहीं न कहीं बीजेपी के छतरी के नीचे रहकर फिलहाल राजनीति करेंगे. तेजस्वी की तरह उनके पास बड़ा वोट बैंक नहीं है. ऐसे में उनकी महत्वाकांक्षा को नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू कमजोर कर रही है. बीजेपी उनकी ज्यादा से ज्यादा सीट हासिल करने की दावेदारी को सिरे से खारिज कर रही है. शायद यही वजह है कि आज कल नीतीश कुमार और चिराग में कुछ दूरी आ गई है. 24 अप्रैल को पीएम मोदी के मधुबनी रैली में भी चिराग पासवान और नीतीश कुमार दूर-दूर नजर आए. ‘

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