Last Updated:June 09, 2025, 09:37 IST
Rasamalai Sweet Story: छेने से बनने वाली रसमलाई स्वाद, मिठास और नजाकत में सबसे लजीज मिठाई है, जो हर किसी को पसंद आती है. इससे बनने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है.

हाइलाइट्स
रसमलाई गलती से बनी और हिट हो गई.नोबिन चंद्र दास की दुकान पर रसमलाई का आविष्कार हुआ.रसमलाई अब भारत और विदेशों में मशहूर है.कोलकाता में एक मशहूर मिठाई की दुकान है. नाम है नोबिद चंद्र दास की मिठाई. कहा जाता है कि रसगुल्ला का आविष्कार यहीं हुआ. कहा जाता है कि रसमलाई भी इन्हीं के यहां पैदा हुई लेकिन गलती से. बना रहे थे कुछ और बन गई स्वादिष्ट और मधुर रसमलाई. अब ये मिठाई पूरे भारत में जबरदस्त हिट है. इसको खाने वाले इसके दीवाने हो जाते हैं. इस मिठाई की कहानी भी बहुत दिलचस्प है.
रसमलाई की उत्पत्ति की कहानी उतनी ही रसीली और दिलचस्प है जितना इसका स्वाद. लोककथाएं और मिठाई विशेषज्ञों की मान्यताएं इसे एक “खुशकिस्मत गलती” या रसगुल्ले के प्रयोग का नतीजा बताती हैं.
पहले कोलकाता में छेने वाला रसगुल्ला बना
रसमलाई का जन्म 19वीं सदी के अंत या 20वीं सदी की शुरुआत में पश्चिम बंगाल के कोलकाता में हुआ माना जाता है. इसका आधार छेने वाला रसगुल्ला है, जो छेना (पनीर) से गोल बनी स्वादिष्ट मिठाई है. जिन्हें चीनी के सिरप में डुबोया जाता है. ये रसगुल्ला पहले से ही बंगाल और उड़ीसा में मशहूर था. माना जाता है कि इसका आविष्कार भी कोलकाता में नोबिन चंद्र सरकार की मिठाई दुकान में हुआ.
फिर कैसे गलती से नोबिन हलवाई के यहां बनी रसमलाई
रसमलाई की कहानी तब शुरू हुई जब किसी ने रसगुल्ले को एक नए अंदाज में पेश करने की कोशिश की. एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार, कोलकाता में नोबिन चंद्र दास की मिठाई की दुकान पर उनके परिवार की दुकान से जुड़ा कोई शेफ रसगुल्ले बना रहा था. रसगुल्ले को चाशनी में डुबोने के बाद, कुछ रसगुल्ले गलती से रबड़ी (गाढ़ा, मसालेदार दूध) के बर्तन में गिर गए, जो पास में तैयार हो रही थी.
चखने पर इसका स्वाद लाजवाब था
मिठाईवाले ने इन्हें फेंकने की बजाय चखा. उसे स्वाद इतना लाजवाब लगा कि उसने इसे एक नई मिठाई के रूप में पेश करने का फैसला किया. रबड़ी में डूबे इन रसगुल्लों को इलायची, केसर और पिस्ता से सजाया गया. इस तरह रसमलाई का जन्म हुआ. तो ये हिट सुस्वादु मिठाई विशुद्ध रूप से भारत और बंगाल की देन है, जो भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में बहुत चाव से खाई जाती है.
नोबिन चंद्र दास मिठाई की दुकान से निकली ये मिठाई
यह कहानी भले ही थोड़ी नाटकीय लगे, लेकिन बंगाल की मिठाई दुकानों में ऐसे प्रयोग आम थे, जहां शेफ नए स्वाद तलाशने के लिए रचनात्मकता दिखाते थे. इसकी एक कहानी और है, जो इसी नोबिन चंद्र दास की मिठाई दुकान से ही जुड़ी है. इसे ज्यादा विश्वसनीय माना जाता है. नोबिन ने 1868 में रसगुल्ला बनाया था. उनकी दुकान कोलकाता में मिठाई की दुनिया का गढ़ थी यानि मुख्य और सबसे मशहूर दुकान.
रसगुल्ले को और मजेदार बनाने के प्रयोगों का नतीजा
20वीं सदी की शुरुआत में नोबिन के बेटे के.सी. दास ने रसगुल्ले को और आकर्षक बनाने के लिए प्रयोग शुरू किए. उन्होंने रसगुल्लों को चाशनी की बजाय गाढ़ी रबड़ी में डुबोया, जिसमें केसर, इलायची और मेवे मिलाए गए. यह नया प्रयोग ग्राहकों को इतना पसंद आया कि इसे “रसमलाई” नाम देकर दुकान में बेचा जाने लगा.
फिर ये मशहूर होती गई
धीरे धीरे समय के साथ के.सी. दास की दुकान ने रसमलाई को व्यवस्थित रूप से बनाना और बेचना शुरू किया, जिससे यह बंगाल की गलियों से निकलकर पूरे भारत में मशहूर हो गई.
रसगुल्ला का स्पंजी टेक्सचर और रबड़ी का मधुर मिलन
कुछ इतिहासकारों और मिठाई विशेषज्ञों का मानना है कि रसमलाई कोई गलती नहीं, बल्कि जानबूझकर किया गया प्रयोग था. बंगाल में रबड़ी पहले से ही एक लोकप्रिय मिठाई थी. रसगुल्ले का स्पंजी टेक्सचर रबड़ी को सोखने के लिए एकदम सही था. हो सकता है कि किसी चतुर मिठाईवाले ने सोचा हो कि रसगुल्ले को रबड़ी में डालकर एक नया स्वाद बनाया जाए. यह प्रयोग इतना कामयाब रहा कि रसमलाई ने अपनी अलग पहचान बना ली.
ठंडा भी परोसा जाने लगा
रसमलाई की लोकप्रियता पहले कोलकाता और आसपास के इलाकों में बढ़ी. मिठाई की दुकानों ने इसे त्योहारों और शादियों के लिए बनाना शुरू किया. इसे ठंडा परोसने की खासियत ने इसे गर्म मौसम में भी पसंदीदा बनाया. 20वीं सदी के मध्य में जब मिठाई उद्योग ने डिब्बाबंद मिठाइयां बनानी शुरू कीं, तो रसमलाई को लंबे समय तक स्टोर करने के तरीके विकसित किए गए. हल्दीराम और बीकानेरवाला जैसे ब्रांड्स ने इसे देश और विदेश में पहुंचाया.
अब तो विदेशों में भी हिट
भारतीय प्रवासी रसमलाई को पश्चिमी देशों में ले गए, जहां यह भारतीय रेस्तरां और मिठाई की दुकानों का हिस्सा बनी. आज यह न्यूयॉर्क से दुबई तक हर जगह मिलती है. रसमलाई का नाम ही इसके स्वाद की कहानी कहता है -“रस” (रसीला) और “मलाई” (क्रीमी). यह नाम इतना आकर्षक था कि लोगों ने इसे तुरंत अपनाया. आज रसमलाई को केक, चीज़केक, और आइसक्रीम जैसे फ्यूजन डेजर्ट्स में इस्तेमाल किया जाता है.
कोलकाता का नोबिन चंद्र की मिठाई की दुकान
नोबिन चंद्र दास की मिठाई की दुकान आज भी कोलकाता में मौजूद है. इसे नोबिन चंद्र दास एंड संस के नाम से जाना जाता है. 1864 में नोबिन चंद्र दास द्वारा स्थापित की गई थी. ये कोलकाता के शोभा बाजार में है. यह दुकान रसगुल्ला के आविष्कार के लिए प्रसिद्ध है. साथ ही रसमलाई जैसे अन्य स्वादिष्ट मिठाइयों के लिए भी जानी जाती है.
नोबिन के बेटे केसी दास ने अलग ब्रांड बनाया
नोबिन चंद्र की मूल दुकान का प्रबंधन उनके बेटे कृष्ण चंद्र दास (के.सी. दास) और बाद में उनके वंशजों ने संभाला. के.सी. दास ने अपने नाम से एक अलग ब्रांड बनाया, जो आज भी कोलकाता में कई शाखाओं के साथ चल रहा है. नोबिन चंद्र दास एंड संस की मूल दुकान शोभा बाजार में अब भी सक्रिय है. यह दुकान ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसे “रसगुल्ला का जन्मस्थान” माना जाता है. 2017 में “बंग्लार रसगुल्ला” को GI टैग मिला.
ये मूल दुकान छोटी है, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व और मिठाइयों का स्वाद इसे मिठाई प्रेमियों के लिए एक जरूरी पड़ाव बनाता है. यहां काफी भीड़ हमेशा लगी रहती है. अगर आप कोलकाता में हैं और बंगाली मिठाइयों का ऐतिहासिक स्वाद लेना चाहते हैं, तो यह दुकान जरूर जाने लायक है.
संजय श्रीवास्तवडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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