क्या इंदिरा ने 1971 के युद्ध में यूएस प्रेसीडेंट निक्सन का फोन नहीं उठाया था

3 hours ago

वर्ष 1971 में भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. जंग से कुछ महीने पहले अमेरिका ने खुलेआम भारत को चेतावनी दी कि अगर वह पाकिस्तान के साथ किसी भी तरह की जंग में उलझा तो परिणाम उसके लिए बहुत खराब होंगे. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तब की खराब होती स्थितियों के बारे में जानकारी देने अमेरिका गईं. वहां जब अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन और विदेश सचिव हेनरी किसिंजर ने उन्हें अपमानित करने की कोशिश की तो वह एक झटके से वहां से उठीं और निकल गईं.

तब पूर्वी पाकिस्तान में हालात खराब थे. पाकिस्तानी सेनाएं दमन चक्र चलाए हुईं थीं. कत्लेआम हो रहा था. लोगों को जेल में ठूंसा जा रहा था. स्थितियां दुरूह और अमानवीय थीं. ऐसे में पूर्वी पाकिस्तान से बहुत बड़े पैमाने पर शरणार्थी रोज भारत आ रहे थे. भारत के सामने अजीब सी स्थिति पैदा हो गई. उन्हें शरण देने के साथ खाने की व्यवस्था करनी पड़ रही थी.

भारत पर इसका सीधा असर पड़ने लगा. दुनियाभर में ये खबरें फैलने लगी थीं कि पाकिस्तानी सेना किस तरह से पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों का संहार कर रही हैं. तब इंदिरा गांधी ने कड़ा फैसला किया. दिसंबर 1971 में पाकिस्तान से युद्ध का ऐलान कर दिया. 13 दिनों के युद्ध के बाद उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर डाले. पूर्वी पाकिस्तान तब बांग्लादेश के तौर पर नया देश बन गया.

अमेरिका स्तब्ध रह गया

इंदिरा गांधी के इस साहसी कदम से पूरी दुनिया में हैरत फैल गई. अमेरिका स्तब्ध रह गया. उसे सपने में उम्मीद नहीं थी कि इंदिरा गांधी इस हद तक जा सकती हैं. उन्हें लग रहा था कि उन्होंने इंदिरा को डरा दिया है और ताकतवर अमेरिका के सामने वो कोई भी दुस्साहस करने की हिम्मत भी नहीं करेंगी.

इंदिरा गांधी ने उस युद्ध के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का फोन नहीं उठाया, ये बात हाल में कुछ ट्विट्स और सोशल मीडिया दावों में आई है

निक्सन लाल-पीले होते रहे

अमेरिकी प्रेसीडेंट रिचर्ड निक्सन यूं भी काफी बदमिजाज शख्स थे. उन्हें बहुत गुस्सा आता था. इंदिरा गांधी पर वह लाल-पीले होते रहे. अमेरिका से भारत पर लगातार युद्ध तुरंत रोक लेने का दबाव पड़ता रहा.  धमकियां मिलती रहीं कि भारत रुक जाए वर्ना अमेरिका की नाराजगी उस पर भारी पड़ेगी. इंदिरा अड़ी रहीं, डटी रहीं. अमेरिकी धमकियों का उन पर कोई असर नहीं था.

क्या वाकई निक्सन ने इंदिरा को फोन किया

अब ये कहना कि इंदिरा गांधी ने उस युद्ध के दौरान तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का फोन नहीं उठाया, ये बात हाल में कुछ ट्विट्स और सोशल मीडिया दावों में आई है. ये हाल के बरसों में कई बार कई गई है. लिहाजा इस दावे की जांच के लिए ऐतिहासिक स्रोतों, डीक्लासिफाइड दस्तावेजों और विश्वसनीय अभिलेखों का विश्लेषण जरूरी है.

कहां ये दावा किया गया

एक्स (X) प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट में कहा गया: “1971 में भारत-पाक युद्ध रुकवाने के लिए रिचर्ड निक्सन इंदिरा गांधी को फोन कर रहे थे. 16 दिनों में उन्होंने चार बार फोन किए लेकिन आयरन लेडी ने फोन तक नहीं उठाया था.” अन्य पोस्ट्स में भी यह दावा दोहराया गया.

Indira Gandhi

अमेरिकी दस्तावेज कहते हैं कि निक्सन ने इंदिरा गांधी को कोई फोन नहीं किया. हालांकि किसिंजर ने अपनी किताब में लिखा कि इंदिरा को फोन किया गया था. (Image:News18)

अमेरिकी दस्तावेज क्या कहते हैं

2005 में अमेरिकी विदेश विभाग ने 1971 के युद्ध से पहले निक्सन और किसिंजर के बीच टेप की गई बातचीत को डीक्लासिफाइड किया. इनमें कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं कि निक्सन ने इंदिरा गांधी को सीधे फोन किया और उन्होंने कॉल का जवाब नहीं दिया. इसकी बजाय अधिकांश संचार पत्रों और राजनयिक चैनलों के माध्यम से हुआ. उदाहरण के लिए, इंदिरा गांधी ने 12 दिसंबर 1971 को निक्सन को एक पत्र लिखा, जिसका उल्लेख जयराम रमेश ने हाल ही में एक पोस्ट में किया.

किसिंजर ने कहा – हमने फोन की कोशिश की लेकिन…

हेनरी किसिंजर ने अपनी किताब “व्हाइट हाउस ईयर्स” (White House Years) में लिखा, हमने इंदिरा गांधी से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन वह उपलब्ध नहीं थीं. यह स्पष्ट नहीं कि उन्होंने जानबूझकर फोन नहीं उठाया या वह वास्तव में व्यस्त थीं. वहीं इंदिरा गांधी के सलाहकार पी.एन. धर ने अपनी किताब “इंदिरा गांधी, द इमर्जेंसी एंड इंडियन डेमोक्रेसी ” ((Indira Gandhi, the ‘Emergency’, and Indian Democracy) में लिखा, प्रधानमंत्री लगातार सैन्य कमांडरों और राजनयिकों के साथ बैठकों में व्यस्त थीं. अगर निक्सन ने फोन किया, तो युद्ध की स्थिति के कारण इसे प्राथमिकता नहीं दी गई होगी.

शायद इंदिरा ने टकराव से बचने के लिए ऐसा किया

इंदिरा गांधी की जीवनी लेखिका कैथरीन फ्रैंक ने अपनी किताब “इंडिया – द लाइफ ऑफ इंदिरा नेहरू गांधी” (Indira: The Life of Indira Nehru Gandhi) के अनुसार, इंदिरा गांधी निक्सन की शत्रुता से अवगत थीं और शायद सीधे टकराव से बचने के लिए संवाद में देरी की.

ये इंदिरा के अडिग रुख का प्रतीक बन गया

इतिहासकार गैरी जे बास ने अपनी चर्चित और प्रामाणिक माने जाने वाली किताब, द ब्लड टेलिग्राम- निक्सन, किसिंजर एंड अ फारगाटेन जेनोसाइड (The Blood Telegram: Nixon, Kissinger, and a Forgotten Genocide) में लिखा, निक्सन भारत के अपनी धमकियों के आगे न झुकने पर आगबबूला थे. इंदिरा ने वास्तव में फोन नहीं उठाया या सिर्फ समय पर जवाब नहीं दिया, यह विवादित है, लेकिन उनका ‘निक्सन को अनदेखा करना’ उनके अडिग रुख का प्रतीक जरूर बन गया.

लेकिन इंदिरा तब लौह महिला जरूर बन गईं

चाहे फोन वाली घटना सच हो या नहीं, यह कहानी 1971 के युद्ध में इंदिरा गांधी की दृढ़ता का प्रतीक बन गई. इसने ये दिखाया कि वह किस तरह अमेरिका जैसी महाशक्ति के आगे भी नहीं झुकीं. सोवियत संघ के साथ संधि ने भारत को सुरक्षा कवच दिया, जिससे इंदिरा गांधी का रणनीतिक आत्मविश्वास बढ़ा हुआ था.

यानि कुल मिलाकर इंदिरा गांधी द्वारा निक्सन का फोन न उठाने की घटना के ठोस सबूत नहीं हैं. ये तो तय है कि उन्होंने तब अमेरिकी दबाव को नजरअंदाज किया था. ये कहानी भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और इंदिरा गांधी के अडिग नेतृत्व का प्रतीक बन गई.

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