ऑपरेशन सिंदूर में गरजी भारतीय 105 mm गन, अब लाल किले से सुनाएगी अपनी धमक

19 hours ago

Last Updated:August 06, 2025, 10:57 IST

INDEPENDENCE DAY CELEBRATION: ऑपरेशन सिंदूर अभी जारी है. इस बार का स्वतंत्रता दिवस भी खास होने वाला है. भारतीय सेना का प्राक्रम पूरी दुनिया ने देखा. अब लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर से दुनि...और पढ़ें

ऑपरेशन सिंदूर में गरजी भारतीय 105 mm गन, अब लाल किले से सुनाएगी अपनी धमकस्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारी तेज

हाइलाइट्स

105mm लाइट फील्ड गन से 21 तोपों की सलामी दी जाएगी.स्वदेशी 105mm गन ने ब्रिटिश 25 पाउंडर गन की जगह ली.लाल किले पर स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारी जारी.

INDEPENDENCE DAY CELEBRATION: स्वतंत्रता दिवस समारोह में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लालकिले के प्राचीर से ध्वजारोहण करेंगे और राष्ट्रगान होगा, उसी दौरान 21 तोपों की सलामी शुरू होगी. 8 तोप राष्ट्रगान के 52 सेकंड तक 21 राउंड फ़ायर करेंगी. इसकी तैयारी भी शुरू हो चुकी है. लालकिले पर 21 तोपों की सलामी की ड्रिल को अंजाम दिया गया. यह सलामी 105mm लाइट फील्ड गन से दी जाएग. 2023 से ही ब्रिटिश 25 पाउंडर गन की जगह स्वदेशी तोप से सलामी शुरू की गई. कर्तव्य पथ पर होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह में भी ब्रिटिश 25 पाउंडर की जगह स्वदेशी 105 mm लाइट फ़ील्ड गन बैटरी से ही सलामी दी जाती है. इसके अलावा जितने भी राजकीय मेहमान भारत आते हैं, उनके सम्मान में दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी भी अब 105 mm लाइट फ़ील्ड गन से ही दी जाती है.

इंडियन फील्ड गन ने ऑपरेशन सिंदूर में खूब दागे गोले
पाकिस्तान ने भारतीय सेना को तोपों का स्वाद कारगिल के दौरान अच्छे से चखा है. पाक सेना लंबे समय से इसका स्वाद भूल चुकी थी. पहलगाम के बाद फिर से वही स्वाद चखाया गया. 105mm कैलिबर इंडियन फील्ड गन ने इतने गोले दागे कि पाकिस्तान के होश उड़ गए. 60-70 के दशक से भारतीय सेना में अपनी सेवाएँ दे रही है. 1982 से लाइट फील्ड गन सेना में शामिल है. 105mm फ़ील्ड गन की सबसे खास बात यह है कि वजन में हल्की है. इसे हाई ऑल्टिट्यूड एरिया में आसानी से तैनात किया जा सकता है. यह गन पाकिस्तान और चीन के मोर्चे पर तैनात की गई है. दिन और रात में ये आर्टिलरी गन फ़ायर कर सकती है. 105mm फ़ील्ड गन की अधिकतम मारक क्षमता 17 किलोमीटर है. अपने रोल को ये बहुत बेहतर तरीके से निभा रही है. ज्यादातर टार्गेट इस गन की रेंज में ही हैं. इस संघर्ष में सबसे ज्यादा इसी गन का इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा मोर्टार का भी इस्तेमाल किया गया. चूंकि यह गन भारत में ही निर्मित है, इसका एम्यूनेशन भी भारत में ही तैयार होता है. गलवान में भारत और चीन के बीच संघर्ष हुआ तो उस वक्त उस इलाके में तैनात फ़ील्ड गन की बैटरी से सैनिक मौके पर पहुंचकर चीनी पीएलए के जवानों पर टूट पड़े थे.

25 पाउंडर गन हो गई खामोश
ब्रिटिश 25 पाउंडर गन की बात करें तो इस गन को पाकिस्तान के खिलाफ 1945, 1965 और 1971 में ज़बरदस्त इस्तेमाल किया गया था और चीन के खिलाफ 1962 की जंग में भी इस गन ने अहम किरदार निभाया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी इस गन ने ज़बरदस्त मोर्चा संभाला था. 90 के दशक की शुरुआत में ही इस गन को सेना से रिटायर किया जाने लगा और इसकी जगह ली स्वदेशी 105 mm इंडियन फील्ड गन ने. इस गन का नाम 25 पाउंडर उसके गोले के वजन की वजह से पड़ा. यानी इस 88 mm कैलिबर की तोप से जो शेल दागा जाता है उसका वजन 25 पाउंड का था. भारतीय सेना में अपनी सेवाएँ देकर रिटायर होने के बाद इसकी एक यूनिट को सेरेमोनियल गन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा है. यह गन गणतंत्र दिवस, 15 अगस्त के अलावा दूसरे देशों के राष्ट्रीय अध्यक्षों के भारत दौरे के दौरान उनके सम्मान में इस्तेमाल की जाती थी. साल 2022 में 15 अगस्त को जब लाल क़िले की प्राचीर पर ध्वजारोहण हो रहा था, उस वक्त प्राचीन ब्रिटिश 25 पाउंडर गन ने आख़िरी बार 21 तोपों की सलामी में 20 राउंड फ़ायर किए थे और एक राउंड फ़ायर किया था स्वदेशी 155 mm ATAGS ने. वजह थी अपने स्वदेशी ताक़त की गूंज को लाल क़िले से दुनिया को सुनाना.

First Published :

August 06, 2025, 10:51 IST

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