Last Updated:May 21, 2025, 17:20 IST
Air Defence System: पारंपरिक युद्ध के तरीके को नई तकनीक ने काफी पीछे छोड़ दिया है. ड्रोन, लॉयटरिंग म्यूनिशन, मिसाइल, सुपरसोनिक मिसाइल और हाइपरसोनिक मिसाइल के दौर में खुद की रक्षा करना सबसे बड़ी चुनौती बन गया है...और पढ़ें

भारत का स्वदेशी रक्षा कवच
हाइलाइट्स
भारत का रक्षा कवच लगभग तैयार है.रक्षा कवच में सर्विलांस और अटैक न्यूट्रलाइजेशन शामिल है.अमेरिका भी गोल्डन डोम एयर डिफेंस सिस्टम बना रहा है.Air Defence System: इजराइल की जंग ने एयर डिफेंस की जरूरत को पूरी दुनिया को समझा दिया है. हमास-हिजबुल्लाह और ईरान के हमलों से इजराइल को आयरन डोम एयर डिफेंस सिस्टम ने ही बचाया. भारत ने भी संभावित खतरे को देखते हुए अपनी तैयारियों को काफी पहले से ही अमलीजामा पहनाना शुरू कर दिया था. इसका नजारा पाकिस्तान के साथ हुए हालिया संघर्ष में भी दिखाई दिया. पाकिस्तानी किसी भी एरियल अटैक को सफल नहीं होने दिया. सेना के आकाश तीर ने कारनामा कर दिखाया. आकाश तीर के इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल के साथ इंटीग्रेशन ने पाकिस्तानी एरियल अटैक के खिलाफ तेजी से कार्रवाई संभव की. इसके अलावा भारत एक और सुरक्षा कवच को अंतिम रूप देने में जुटा है, जिसका नाम है रक्षा कवच.
क्या है रक्षा कवच?
भारत का देसी आयरन डोम भारत के रक्षा कवच को अगर देसी आयरन डोम कहें तो गलत नहीं होगा. डीआरडीओ ने स्वदेशी उपकरणों को इंटीग्रेट कर रक्षा कवच को विकसित किया है. इस रक्षा कवच के दो हिस्से हैं. पहला है सर्विलांस करना और दूसरा है अटैक कर उसे न्यूट्रलाइज करना. सर्विलांस के लिए अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, सर्विलांस ड्रोन और सैटेलाइट हैं. ग्राउंड में लॉन्ग रेंज रडार है जो दुश्मन के किसी भी एरियल खतरे को ट्रैक करता है. दूसरा है उसे एंगेज करने के लिए हार्ड किल, सॉफ्ट किल, सर्फेस टू एयर मिसाइल, आर्टिलरी गन और लेजर बीम तकनीक है.
कैसे करेगा रक्षा कवच काम?
एरियल अटैक को पहचानना यानी दुश्मन कितनी दूर है यह सबसे जरूरी है. सर्विलांस का सारा डेटा कंट्रोल सेंटर में जाएगा. वहां जानकारी प्रोसेस करने के बाद अटैक को न्यूट्रलाइज करना पड़ता है. हाई स्पीड ड्रोन अटैक से निपटने के लिए सॉफ्ट किल, हार्ड किल होता है. सॉफ्ट किल में हाई पावर माइक्रोवेव उस दिशा में छोड़ते हैं जिस दिशा से अटैक आ रहा है. इससे सिस्टम का इलेक्ट्रॉनिक कमजोर हो जाता है और स्पीड धीमी हो जाती है. उसके बाद भी अगर वह अटैक करने के लिए आता है तो क्विक रिस्पॉन्स सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम (QRSAM) से उसे एंगेज किया जाएगा. इसी तरह से ATAGS (एडवांस्ड टोड आर्टिलरी गन सिस्टम) से भी अटैक को एंगेज किया जा सकता है. इसके अलावा लेजर बीम तकनीक से टारगेट को नष्ट किया जा सकता है. सुपरसोनिक और हाइपरसोनिक हमलों को भी तभी नष्ट किया जा सकता है जब उसका डिटेक्शन पहले ही हो जाए. पहले ही डिटेक्शन हो गया तो एयर डिफेंस मिसाइल को टाइम मिल जाएगा उसे एंगेज करने के लिए. फिलहाल सभी सिस्टम तैयार हो चुके हैं, सॉफ्टवेयर पर काम चल रहा है. जल्द ही DRDO इसे शोकेस करेगी.
अमेरिका को भी सता रहा एरियल अटैक का डर
एरियल अटैक का खतरा अब अमेरिका को भी सता रहा है. ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस को अपने पहले संबोधन में गोल्डन डोम शील्ड का ऐलान किया था. ट्रंप ने कहा था कि इजराइल के एयर डिफेंस सिस्टम आयरन डोम की तर्ज पर ही उनके पास भी एयर डिफेंस गोल्डन डोम होना चाहिए. अब उस गोल्डन डोम का ऐलान भी कर दिया है. ट्रंप ने पत्रकारों से कहा कि प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद गोल्डन डोम दुनिया के किसी भी कोने से या अंतरिक्ष से दागी गई मिसाइलों को रोकने में सक्षम होगा.
क्या है गोल्डन डोम प्रोग्राम?
यह एक नेक्स्ट जेनरेशन एयर डिफेंस सिस्टम प्रोग्राम होगा. इसमें लॉन्ग रेंज रडार और सैटेलाइट अमेरिका की तरफ आने वाले प्रोजेक्टाइल को पहचानेंगे, उसकी ट्रेजेक्टरी को ट्रैक करेंगे और फिर इंटरसेप्टर मिसाइल के जरिए उसे मिड एयर में ही एंगेज कर देंगे. ट्रंप ने कहा कि इसका डिजाइन फेज पूरा हो गया है और चार साल के भीतर इस प्रोग्राम को पूरा करने की बात कही. इस पूरे प्रोजेक्ट में 174 अरब डॉलर का अनुमानित खर्च आएगा.
इजराइल का आयरन डोम कैसे काम करता है?
हमास ने आयरन डोम के रॉकेट के एंगेज करने की क्षमता से ज्यादा रॉकेट दागे. ज्यादातर को आयरन डोम ने मार गिराया. हमास ने ग्लाइडर के जरिए हमले के लिए भी वही समय चुना जब आयरन डोम के रडार मिसाइलों को ट्रैक कर रहे थे. आयरन डोम को इजात ही किया गया था हाई स्पीड रॉकेट और मिसाइल को रोकने के लिए. इसमें इस तरह का सिस्टम है जो हमले में रॉकेट की स्पीड को ट्रैक करता है. जो भी रॉकेट भीड़ वाले इलाके में गिरने वाला होता है, सिर्फ उसे एंगेज करता है. हाई स्पीड मिसाइलों और लो फ्लाइंग स्लो ऑब्जेक्ट में से अगर पहले किसी को चुनना होता है तो यह मिसाइल को ही पहले चुनता है.
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