Last Updated:July 04, 2025, 15:33 IST
Marathi Politics: हिंदी बोलने पर पीट रहे हैं मनसे कार्यकर्ता. क्या यही मराठी अस्मिता है? बेरोजगारी से जूझते युवाओं का काम अब भाषा के नाम पर गुंडागर्दी करना रह गया है? सवाल कई हैं लेकिन जवाब कौन देगा... क्योंकि ...और पढ़ें

महाराष्ट्र में फिर हिंदी बोलने वाले लोगों पर हमला शुरू हो गया है.
हाइलाइट्स
हिंदी बोलने पर दुकानदार से मारपीट, वीडियो वायरल.MNS कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी को मिल रहा राजनीतिक मौन समर्थन.मराठी भाषा को सम्मान चाहिए, न कि डंडे का डर,Marathi Hindi Row: मुंबई की सड़कों पर एक दुकानदार को सिर्फ इसलिए घेर लिया गया क्योंकि वो हिंदी बोल रहा था. उसके साथ मारपीट हुई कैमरे में सब कैद हुआ और वीडियो के नीचे एक कमेंट ने पूरी बहस को चीरकर रख दिया- “इनके पास कोई काम भी है?” शायद यही सबसे बड़ा सवाल है आज. क्या बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार से जूझते महाराष्ट्र के युवाओं का “काम” अब यही रह गया है कि भाषा के नाम पर लात-घूंसे चलाएं? वह भी उनके साथ जो किसी दूसरे राज्य से यहां काम की तलाश में आएं हैं और अपनी रोजी-रोटी के लिए मेहनत कर रहे हैं. मजदूर हो या दुकानदार वह तो ऐसे भी कमजोर हैं क्योंकि वह अपने पीछे बहुत कुछ छोड़कर आए हैं. कई नेताओं ने यह सवाल भी उठाया है कि इस तरह की हरकत क्या राज ठाकरे की पार्टी मनसे के कार्यकर्ता किसी मशहूर लोगों के साथ कर सकते हैं. महाराष्ट्र में भाषा को लेकर लड़ाई पुरानी है. लेकिन क्या इस दौड़ भी लोग भाषा को लेकर लड़ेंगे. या यह विवाद राज ठाकरे और वैसे लोगों के लिए महज सुर्खियों और सत्ता तक पहुंचने का रास्ता मात्र है.
राज ठाकरे और उनकी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) खुद को मराठी अस्मिता का ठेकेदार मानती है. लेकिन हाल के घटनाक्रमों ने फिर दिखा दिया कि पार्टी के कई कार्यकर्ता अब इस अस्मिता को गुंडागर्दी के हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. इस तरह के हथकंडे पहले भी आजमाए जा चुके हैं. पहले भी कई बाह उत्तर भारतीयों को निशाना बनाया जा चुका है.
क्या यही है राज ठाकरे की ‘मराठी अस्मिता’?
कभी स्टेशन पर उत्तर भारतीयों को पीटना, कभी ऑटो चालकों से मारपीट और अब आम राहगीरों को सिर्फ इसलिए निशाना बनाना क्योंकि वो हिंदी बोल रहे हैं. तो सवाल यही उठता है कि क्या यह ‘अस्मिता’ है या एक सुनियोजित डर फैलाने की कोशिश? ऐसे में एक सवाल यह भी उठता है कि अगर उत्तर भारतीय या हिंदी बोलने वाले लोग अपने प्रदेश लौट गए तो क्या महाराष्ट्र और खासकर मुंबई सुनसान नहीं हो जाएगी. कोविड ने हमें यह दिखाया भी कि बिना इनके मुंबई विरान हो गया था. यहां तक कि देश के कई महानगर विरान हो गए थे. दिल्ली में मकान मालिकों पर बड़ा संकट आ गया था.
मराठी भाषा को सम्मान चाहिए, गुंडे नहीं…
मराठी एक गौरवशाली भाषा है. पू. साने गुरुजी से लेकर गजानन दिगंबर माडगूळकर जी तक एक लंबी विरासत रही है. उन्होंने समाज को तोड़ा नहीं बल्कि जोड़ा था. लेकिन आज कुछ छुटभैया नेता इसे ‘डंडे की भाषा’ बना देना चाहते हैं. और सबसे शर्मनाक बात ये है कि इस हिंसा को राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ है. मारपीट करने वाले कार्यकर्ता जश्न मनाते हैं. इस जश्न का वीडियो सोशल मीडिया पर भी डालते हैं और नेताओं की चुप्पी जैसे उनका अप्रत्यक्ष समर्थन बन जाती है. यही राजनीति का सबसे घटिया रूप है.
राज ठाकरे जो खुद देश की राजनीति में एक तेज दिमाग वाले वक्ता के रूप में उभरे थे अब ऐसी राजनीति का चेहरा क्यों बनते जा रहे हैं जो युवाओं को सिर्फ हिंदी बोलने वालों से नफरत करना सिखाती है?
“इनके पास कोई काम भी है?” ये सवाल सिर्फ एक वायरल कमेंट नहीं, एक समाज की बेबसी है. क्योंकि महाराष्ट्र का युवा नौकरी चाहता है, शिक्षा चाहता है, भविष्य चाहता है. उसे यह नहीं चाहिए कि उसे किसी का ‘मुंह देख कर’ तय करना पड़े कि उससे कौन-सी भाषा में बात की जाए. और अगर कोई राजनीतिक दल उसे यही सिखा रहा है तो उसे राजनीति नहीं जवाबदेही की जरूरत है.
Sumit Kumar is working as Senior Sub Editor in News18 Hindi. He has been associated with the Central Desk team here for the last 3 years. He has a Master's degree in Journalism. Before working in News18 Hindi, ...और पढ़ें
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