'आयरन लेडी' का मौन प्रतिशोध, जब इंदिरा गांधी ने दो बार झुकाया अमेरिका को 

1 hour ago

Indira Gandhi’s birthday: भारत की सबसे प्रभावशाली प्रधानमंत्रियों में से एक इंदिरा गांधी भारतीय राजनीति के आकाश पर एक ध्रुव तारे की तरह चमकती रही हैं. उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति, साहसिक निर्णयों और करिश्माई नेतृत्व से देश की दिशा बदल दी. आज, 19 नवंबर को इंदिरा गांधी का जन्म दिवस है. वह भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की इकलौती बेटी थीं और राजनीति उन्हें विरासत में मिली थी. वह भारत की पहली और एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं, जिन्होंने जनवरी 1966 से मार्च 1977 और फिर जनवरी 1980 से अक्टूबर 1984 तक देश का नेतृत्व किया.

इंदिरा गांधी का कार्यकाल देश की आधुनिक राजनीति में सबसे उथल-पुथल भरा और निर्णायक दौर था. उन्हें उनके अदम्य साहस और ‘आयरन लेडी’ की छवि के लिए जाना जाता है. उनकी प्रमुख उपलब्धियों में 1971 का भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश का निर्माण था. जिसके बाद उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंच गयी. उन्होंने बैंकों का राष्ट्रीयकरण (1969) किया और प्रिवी पर्स की समाप्ति की, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था और समाज पर गहरा प्रभाव डाला. यहीं नहीं इंदिरा गांधी ने परमाणु शक्ति का प्रदर्शन (स्माइलिंग बुद्धा, 1974) किया, जिसने भारत को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया. अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए वह एक मजबूत चुनौती थीं, जबकि आम जनता के लिए वह शक्ति और दृढ़ संकल्प की प्रतीक थीं. भारतीय इतिहास में उनका नाम एक ऐसी नेता के रूप में दर्ज है, जिसने देश को युद्ध, आंतरिक संघर्ष और वैश्विक दबाव के बीच मजबूती से संभाला.

निक्सन ने कराया इंदिरा को इंतजार
इंदिरा गांधी के दृढ़ता की एक स्पष्ट बानगी तब देखने को मिली जब उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन द्वारा किए गए अपमान का रणनीतिक प्रतिशोध लिया. 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ने से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से मुलाकात की थी. उनका उद्देश्य था कि पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचारों को एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाया जाए. निक्सन खुले तौर पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े थे. उन्होंने न केवल इंदिरा गांधी को मिलने के लिए 45 मिनट तक इंतजार करवाया, बल्कि मुलाकात के दौरान भी उनके साथ अशिष्ट और अपमानजनक व्यवहार किया.

तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर के साथ अपनी निजी बातचीत में निक्सन ने यहां तक कहा था कि इंदिरा गांधी भारत में प्रवेश कर रहे बांग्लादेशी शरणार्थियों को गोली क्यों नहीं मरवा देतीं. निक्सन ने इंदिरा गांधी की अपील और शरणार्थी संकट की गंभीरता को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया, जिससे इंदिरा गांधी को यह अपमानजनक लगा.

इंदिरा गांधी ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए काफी संयम बरता और सही मौके का इंतजार किया.

इंदिरा ने अपने ढंग से लिया बदला
इंदिरा गांधी इस अपमान को भूली नहीं. हालांकि, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से बदला लेने के बजाय राष्ट्रीय हितों के माध्यम से जवाब दिया. निक्सन के खुले विरोध, यहां तक कि बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी नौसेना के बेड़े (यूएसएस एंटरप्राइज) की तैनाती के बावजूद इंदिरा गांधी ने पीछे हटने से इनकार कर दिया. उन्होंने सैन्य कार्रवाई जारी रखी, जिससे पाकिस्तान का विभाजन हुआ और बांग्लादेश का जन्म हुआ. यह अमेरिकी नीतियों और दबाव के विरुद्ध भारत की संप्रभुता की जीत थी.

उन्होंने 1974 में ‘स्माइलिंग बुद्धा’ कोडनेम के तहत भारत का पहला सफल परमाणु परीक्षण करके अमेरिका सहित सभी महाशक्तियों को स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब किसी के दबाव में नहीं झुकेगा और अपने सुरक्षा हित खुद तय करेगा. इस तरह इंदिरा गांधी ने अपने सख्त फैसलों और अदम्य इच्छाशक्ति से न केवल अपने अपमान का जवाब दिया, बल्कि भारत को एक नई और मजबूत वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया.

निक्सन करते थे अपशब्दों का प्रयोग
शीत युद्ध के दौर में 1971 के आस-पास अमेरिका ‘या तो आप हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ हैं’ की कठोर नीति पर चल रहा था. इंदिरा गांधी और सोवियत संघ के बीच बढ़ती नजदीकियों ने अमेरिका को काफी नाराज कर दिया था. अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन, भारत की इंदिरा गांधी के मुकाबले पाकिस्तान के राष्ट्रपति आगा मुहम्मद याह्या खान को अधिक पसंद करते थे. इसी कारण 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अमेरिका ने स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का पक्ष लिया. अमेरिका के पूर्ण समर्थन के बावजूद युद्ध का परिणाम भारत के पक्ष में रहा और पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पड़े, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का उदय हुआ.

युद्ध समाप्त होने और बांग्लादेश के गठन के कुछ समय बाद निक्सन के कार्यकाल के दौरान की कुछ गुप्त रिकॉर्डिंग्स (टेप) सार्वजनिक हुईं. इन टेपों के खुलासे से यह मालूम हुआ कि निक्सन ने अपनी निजी बातचीत में इंदिरा गांधी के लिए अत्यंत आपत्तिजनक और अपमानजनक अपशब्दों का इस्तेमाल किया था. यह घटनाक्रम न केवल अमेरिका की पक्षपाती नीति को दर्शाता है, बल्कि यह भी उजागर करता है कि अमेरिकी नेतृत्व भारतीय प्रधानमंत्री के प्रति किस हद तक व्यक्तिगत द्वेष रखता था. किसिंजर ने कथित तौर पर इंदिरा गांधी को चुड़ैल (bitch) तक कहा था.

रिचर्ड निक्‍सन की धमकी के बाद भी भारत ने बांग्‍लादेश मुक्ति संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और पाकिस्‍तान को घुटनों पर ला दिया.

चेतावनी पर इंदिरा की शांत प्रतिक्रिया
नवंबर 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध से ठीक पहले प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से मिलने वाशिंगटन गईं, तो उनका सामना कड़ी अमेरिकी चेतावनी से हुआ. रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी को स्पष्ट रूप से चेतावनी दी कि यदि भारत ने पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में सैन्य कार्रवाई करने का साहस किया तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होंगे और भारत को पछताना पड़ सकता है. निक्सन की इस स्पष्ट धमकी के बावजूद इंदिरा गांधी ने ऐसा शांत और उदासीन हावभाव बनाए रखा, जिससे यह आभास हुआ कि इस चेतावनी का उन पर कोई असर नहीं पड़ा है.

यह उनके स्वभाव के अनुरूप था, जिसके लिए सभी जानते थे कि वह अपने सम्मान या राष्ट्रीय हित से कोई समझौता नहीं करती थीं. इंदिरा गांधी की यह प्रतिक्रिया उनकी पूर्व तैयारी का परिणाम थी. अमेरिका जाने से पहले वह सितंबर 1971 में सोवियत संघ (तत्कालीन USSR) की यात्रा कर चुकी थीं. वहां उन्होंने सैन्य आपूर्ति के साथ-साथ मास्को के मजबूत राजनीतिक समर्थन को सुरक्षित कर लिया था, जिसकी भारत को उस समय सख्त आवश्यकता थी. 

निक्सन ने खुद ही थपथपायी अपनी पीठ
गैरी बास की प्रसिद्ध पुस्तक ‘द ब्लड टेलिग्राम: इंडियाज सीक्रेट वॉर इन ईस्ट पाकिस्तान’ के अनुसार रिचर्ड निक्सन ने इंदिरा गांधी के साथ बैठक समाप्त होने के बाद खुद की प्रशंसा की थी. निक्सन ने संतुष्टि व्यक्त करते हुए कहा कि उन्होंने मामूली मुद्दों पर उस महिला को कुछ छूट भले ही दे दी हो, लेकिन वास्तविक, प्रमुख मुद्दों पर अमेरिका टस से मस नहीं हुआ. इस पर हेनरी किसिंजर ने सहमति जताते हुए कहा कि ‘हमने उन्हें (इंदिरा गांधी को) हर तरफ से घेर लिया था.”

किसिंजर ने निक्सन को सलाह देते हुए कहा कि यह अच्छा हुआ कि वह इंदिरा गांधी के साथ बहुत अधिक कड़ाई से पेश नहीं आए, अन्यथा वह रोते हुए वापस भारत लौटतीं.” हालांकि, किताब में यह भी दर्ज है कि निक्सन और किसिंजर की इस आत्म-प्रशंसा के विपरीत बैठक में इंदिरा गांधी ने उन्हें उनकी दमनकारी नीतियों और पाकिस्तान के प्रति उनके समर्थन के लिए बहुत बुरी तरह से आड़े हाथों लिया था.

बिना बोले निक्सन को नीचा दिखाया
वरिष्ठ पत्रकार सागरिका घोष अपनी पुस्तक ‘इंदिरा: इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर’ में एक ऐसी घटना का उल्लेख करती हैं, जहां इंदिरा गांधी ने मौन रहकर रिचर्ड निक्सन को करारा जवाब दिया था. 1971 युद्ध की समाप्ति के बाद निक्सन ने इंदिरा गांधी के सम्मान में एक भोज (डिनर) का आयोजन किया, जिसमें वह स्वयं निक्सन के बगल में बैठी थीं. भोज में उपस्थित सभी मेहमानों की निगाहें इंदिरा गांधी पर थीं, लेकिन वह आंखें बंद करके बैठी रहीं. वह पूरी तरह से स्थिर थीं और उन्होंने न कुछ कहा और न ही कोई प्रतिक्रिया दी.

बाद में जब उनकी टीम के एक सदस्य ने इस असामान्य व्यवहार के बारे में पूछा, तो इंदिरा गांधी ने इसका कारण तेज सिर दर्द बताया. हालांकि, वहां मौजूद सभी लोग भली-भांति जानते थे कि यह केवल सिर दर्द का मामला नहीं था. यह उनकी ओर से निक्सन द्वारा युद्ध से पहले किए गए अपमान और अशिष्ट व्यवहार का दूसरा और स्पष्ट जवाब था. इस मौन के माध्यम से इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को बिना कोई शब्द कहे अंतरराष्ट्रीय मंच पर नीचा दिखा दिया और अपनी असंतोष प्रकट किया. यह घटना दर्शाती है कि इंदिरा गांधी अपने अपमान को कैसे कूटनीतिक ढंग से भुनाती थीं और विरोध जताने के लिए उन्हें हमेशा शब्दों की आवश्यकता नहीं होती थी.

आर्थिक आत्मनिर्भरता पर जोर
इंदिरा गांधी ने अमेरिका के प्रभाव को कम करने के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता पर जोर दिया. 1960 के दशक के अंत में अमेरिका ने पी.एल. 480 योजना के तहत भारत को अनाज देने में आनाकानी की थी. इस अनुभव के बाद इंदिरा गांधी ने कृषि में आत्मनिर्भरता के लिए हरित क्रांति को तेजी से लागू किया, ताकि भारत को भविष्य में भोजन के लिए किसी बाहरी देश पर निर्भर न रहना पड़े. उन्होंने गुटनिरपेक्ष आंदोलन को मजबूत किया, जिससे भारत को शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी या सोवियत खेमे में शामिल हुए बिना अपनी स्वतंत्र विदेश नीति बनाए रखने में मदद मिली. 

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