Last Updated:December 06, 2025, 20:47 IST
Sheikh Hasina News: शेख हसीना के समर्थक जुलाई 2024 की देश में अफरातफरी के बाद आधी रात में घर-बार छोड़कर कोलकाता पहुंचे थे. डेढ़ साल में कई परिवार यहां स्कूल, नौकरी, फ्रीलांसिंग और छोटे समुदायों के सहारे नई जिंदगी बसा रहे हैं. लेकिन दिल में सवाल वही है कि क्या यह ठिकाना है या हमेशा का घर? निर्वासन, यादों और संघर्ष से भरी उनकी कहानी बेहद मार्मिक है.
जुलाई 2024 की अशांति में घर-बार छोड़कर भागे शेख हसीना के समर्थक अब कोलकाता में निर्वासन की जिंदगी जी रहे हैं. (फोटो Shutterstock/PTI)कोलकाता: पंद्रह महीने पहले जब ढाका की सड़कों पर माहौल अचानक बदलने लगा. लोग बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के खिलाफ सड़क पर उतर आए. खूब हिंसा भी हुई. हिंसा के बीच शेख हसीना ने इस्तीफा दिया और देश छोड़कर भारत में शरण ली. इस समय शेख हसीना सरकार के कई करीबी नेताओं और अधिकारियों के पास एक ही विकल्प था रातोंरात घर-बार छोड़कर भाग जाना. कोई अपना सामान समेट नहीं पाया, कोई अपने परिवार को ढंग से समझा भी नहीं पाया. बस जितना हाथ लगा उतना लेकर वे टूटे दिल, टूटी उम्मीदों और टूटती पहचान के साथ सीमा पार कर भारत की ओर निकल पड़े.
TOI की रिपोर्ट के अनुसार आज डेढ़ साल बाद यही लोग कोलकाता की गलियों में एक ऐसी नई जिंदगी तलाश रहे हैं. जिसे वे घर जैसा तो मान लेते हैं पर घर कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते. वक्त गुजरता जा रहा है लेकिन यह सवाल उनकी रगों में चुभा रहता है. क्या कोलकाता सिर्फ कुछ समय का ठिकाना है या अब हमेशा के लिए यही उनका ‘घर-बार’ हो जाएगा?
क्यों भागना पड़ा? कैसे टूटी जिंदगी की लय
जुलाई 2024 की उथल-पुथल को बांग्लादेश में जुलाई क्रांति कहा गया. इस कथित क्रांति ने सैकड़ों नेताओं, सांसदों और सरकारी अधिकारियों को पलभर में बेघर कर दिया. लिंचिंग की खबरें, सरकारी दफ्तरों पर हमले, और शेख हसीना समर्थकों पर कार्रवाई. इन सबने हालात ऐसे बना दिए कि रातोंरात भागना ही अकेला विकल्प बचा. करीब 70 से ज्यादा सांसद, 15 से अधिक केंद्रीय नेता और सैकड़ों स्थानीय कार्यकर्ता भारत में शरण लेने को मजबूर हुए. उनमें से अधिकांश कोलकाता पहुंचे क्योंकि यह घर से सबसे नजदीक था और इसलिए कि उनकी नेता खुद भारत में थीं.
कैसे ढल रहे हैं नए शहर में?
एक पूर्व राजनयिक ने अपने बच्चे को दक्षिण कोलकाता के स्कूल में दाखिल करवाया. कई महिलाएं देशी भाभी नाम के समूह में जुड़कर एक-दूसरे को भावनात्मक सहारा दे रही हैं. एक मंत्री की पत्नी कहती हैं, यह घर जैसा है, लेकिन घर नहीं. बंगाल का मीठा अंबल खाने में उनकी जीभ को समय लग रहा है, क्योंकि वे अपने खट्टा स्वाद को भूल नहीं पा रहीं. कई पुरुष खाली समय में किताबें पढ़कर और छोटी-मोटी फ्रीलांसिंग करके खुद को व्यस्त रख रहे हैं.कोलकाता में रहने वाले इन निर्वासित नेताओं की सबसे बड़ी चिंता यह नहीं कि वे कब लौटेंगे. (फोटो Shutterstock)
यह सिर्फ निर्वासन नहीं, पहचान का संकट भी है
कोलकाता में रहने वाले इन निर्वासित नेताओं की सबसे बड़ी चिंता यह नहीं कि वे कब लौटेंगे, बल्कि यह कि क्या लौट पाएंगे भी या नहीं. कई लोगों ने अपनी यादों और रिश्तों को बचाए रखने के लिए छोटे-छोटे सहारे बनाए हैं. किसी ने बंगाली फिल्मों की यादें संजोई हैं, किसी ने स्पेशल रेस्त्रां खोजा है जो बांग्लादेशी फ्लेवर परोसता है.
एक मंत्री की पत्नी बताती हैं कि जब पति की बहन कनाडा से मिलने आई और बोली, “हुत दिनों बाद देश आए हो तो कमरे में एक अजीब सी खामोशी छा गई. फिर किसी ने धीरे से कहा यह देश है? यह दर्द ही बताता है कि निर्वासन सिर्फ जगह बदलने का नहीं, बल्कि पहचान खोने का भी अनुभव है.
क्या कर रहे हैं वे अब?
कई नेता बांग्लादेश में अपने समर्थकों से रोजाना ऑनलाइन मीटिंग कर रहे हैं. कुछ लोग पाकिस्तानी समर्थक हिंसक समूहों की गतिविधियों पर नजर रखकर रिपोर्ट भेजते हैं. कई परिवार वीजा बढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. प्रमुख नेता अपने-अपने क्षेत्रों में होने वाली “प्रतिरोध गतिविधियों” का समन्वय करते हैं. कुछ लोग बंगाल की रोजमर्रा की जिंदगी में रचने-बसने की कोशिश में नई नौकरी और फ्रीलांसिंग भी कर रहे हैं.जीवन के छोटे पल भी याद दिलाते हैं अपना ‘घर’
बांग्लादेश का खाना, उसका खट्टा स्वाद, त्यौहार, ढाका की गलियां, नदियों की खुशबू सब याद आता है. एक मंत्री की पत्नी कहती हैं, ‘हमने पोइला बैसाख मनाया, लेकिन दिल में वही सवाल आता है मंगल शोभायात्रा कब मनाएंगे?’ उनकी इन भावनाओं में निर्वासन का दर्द साफ दिखता है.
कोलकाता क्यों चुना?
यूरोप या अमेरिका जाने का विकल्प कई परिवारों के पास था. लेकिन वे कोलकाता ही आए क्योंकि यह पास था. संस्कृति करीब थी, और सबसे महत्वपूर्ण उनकी नेता भारत में थीं. एक पूर्व मंत्री बोले, ‘नजर और दिल, दोनों घर के पास रहना चाहते थे.’
शेख हसीना समर्थकों का कोलकाता में जीवन
| कैटेगरी | स्थिति |
| कुल नेताओं की संख्या | 15 से ज्यादा केंद्रीय नेता, 70+ सांसद |
| कोलकाता का कारण | नजदीकी, सांस्कृतिक समानता, नेता का भारत में |
| मुख्य समस्याएं | वीजा, नौकरी, सुरक्षा, पहचान का संकट |
| सहारा | सामूहिक समूह, ऑनलाइन राजनीतिक समन्वय |
| भावनात्मक मुश्किलें | घर की याद, खाना, भाषा, सामाजिक दूरी |
| नया जीवन | स्कूलों में दाखिला, फ्रीलांसिंग, किराए के मकान |
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Sumit Kumar is working as Senior Sub Editor in News18 Hindi. He has been associated with the Central Desk team here for the last 3 years. He has a Master's degree in Journalism. Before working in News18 Hindi, ...और पढ़ें
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December 06, 2025, 20:47 IST

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