Last Updated:July 12, 2025, 16:49 IST
Language Controversy: कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन महीने में स्पष्ट करने का निर्देश दिया कि CBSE और CISCE स्कूलों में कन्नड़ अनिवार्यता क्यों आवश्यक है.

Language Controversy: कर्नाटक हाई कोर्ट ने सरकार से मांगा जबाव
Language Controversy: कर्नाटक हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि वह तीन महीने के भीतर यह स्पष्ट करे कि क्यों CBSE और CISCE से एफिलिएटेड स्कूलों में कन्नड़ को अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए. यह निर्देश उस जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई के दौरान दिया गया जिसमें इस फैसले को चुनौती दी गई है.
पीठ ने सरकार की निष्क्रियता पर जताई नाराज़गी
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी.एम. जोशी की खंडपीठ ने सरकार की ओर से अब तक कोई जवाब न देने पर नाराज़गी जताई. कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि सरकार दो साल से कुछ नहीं कर रही है. अगर यही हाल रहा, तो हम याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत देने पर विचार करेंगे.
किस कानून को दी गई है चुनौती?
याचिका में 2015 के कर्नाटक भाषा शिक्षण अधिनियम और 2017 में बनाए गए संबंधित नियमों के तहत सीबीएसई और सीआईएससीई स्कूलों में कन्नड़ को पहली या दूसरी भाषा के रूप में अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने के निर्देशों को चुनौती दी गई है.
अभिभावकों और शिक्षकों की चिंताएं
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह निर्णय भाषा की पसंद की स्वतंत्रता का उल्लंघन है और इससे छात्रों की शैक्षणिक स्वतंत्रता और शिक्षकों की नौकरी पर असर पड़ सकता है. नियमों के अनुसार अगर स्कूल निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो उनका एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) रद्द किया जा सकता है, जिससे उनकी मान्यता पर खतरा आ सकता है.
छात्रों के भविष्य पर असर की आशंका
याचिकाकर्ताओं ने यह भी तर्क दिया है कि जब छात्रों को पहली, दूसरी और तीसरी भाषा के लिए विकल्प चुनने की आज़ादी होनी चाहिए, तब कन्नड़ को जबरन लागू करना उनके भविष्य को प्रभावित कर सकता है. खासकर उन छात्रों के लिए जो प्रतियोगी परीक्षाओं या अन्य राज्यों में पढ़ाई की तैयारी कर रहे हैं. याचिका में यह चिंता भी जताई गई है कि जो शिक्षक कन्नड़ नहीं पढ़ा सकते, उन्हें नई भाषा नीति के कारण रोजगार में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.
NOC के जरिए दबाव बनाने का आरोप
अभिभावकों और शिक्षकों का आरोप है कि राज्य सरकार एनओसी जैसे नियामक तंत्र का उपयोग करके सीबीएसई और सीआईएससीई स्कूलों पर कन्नड़ भाषा को अपनाने के लिए अप्रत्यक्ष दबाव डाल रही है. उनका कहना है कि यह शैक्षणिक स्वतंत्रता और अभिभावकों की पसंद के खिलाफ एक खतरनाक मिसाल बन सकता है.
अब अगली सुनवाई सरकार के जवाब के बाद
कोर्ट ने राज्य सरकार को तीन महीने में अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया है. इसके बाद ही इस मामले की अगली सुनवाई होगी. फिलहाल, कोर्ट ने मामले को स्थगित कर दिया है.
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पत्रकारिता के क्षेत्र में 8 वर्षों से अधिक का अनुभव. दूरदर्शन, ज़ी मीडिया और News18 के साथ काम किया है. इन्होंने अपने करियर की शुरुआत दूरदर्शन दिल्ली से की, बाद में ज़ी मीडिया से जुड़े और वर्तमान में News18 Hin...और पढ़ें
पत्रकारिता के क्षेत्र में 8 वर्षों से अधिक का अनुभव. दूरदर्शन, ज़ी मीडिया और News18 के साथ काम किया है. इन्होंने अपने करियर की शुरुआत दूरदर्शन दिल्ली से की, बाद में ज़ी मीडिया से जुड़े और वर्तमान में News18 Hin...
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