Last Updated:November 18, 2025, 17:08 IST
Madvi Hidma Encounter : माड़वी हिडमा के मारे जाने से सुरक्षा एजेंसियों को बड़ी सफलता मिली है. 26 से अधिक हमलों के मास्टरमाइंड हिडमा को खुफिया इनपुट के बाद ग्रेहाउंड फोर्स ने चार घंटे की कार्रवाई में ढेर किया. दंडकारण्य के जंगल, स्थानीय नेटवर्क और लगातार कैंप बदलने की रणनीति उसे वर्षों तक पकड़ से दूर रखती थी.
सुरक्षाबलों को मिली बड़ी कामयाबी. नई दिल्ली. देश के सबसे खतरनाक और रहस्यमयी नक्सली कमांडरों में गिने जाने वाले माड़वी हिडमा के मारे जाने के साथ सुरक्षा एजेंसियों ने एक दशक पुरानी चुनौती पर निर्णायक प्रहार कर दिया. 50 लाख से 1 करोड़ की इनामी रकम वाले हिडमा पर पिछले दस वर्षों में पुलिस व केंद्रीय बलों पर 26 से ज्यादा हमलों की योजना बनाने का आरोप था. बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा से लेकर मलकानगिरी तक फैले नक्सली कॉरिडोर में वह कई भीषण हमलों का मास्टरमाइंड था. खुफिया एजेंसियों और स्थानीय सूत्रों की मदद से करीब 34 घंटे की निगरानी के बाद सुरक्षा बलों ने उसकी गतिविधियों का सटीक इनपुट जुटाया. इसके बाद केंद्रीय बलों ने कई परतों वाला एक घेरा बनाया. एक छोटी टीम आगे पहुंची. करीब चार घंटे की कार्रवाई में हिडमा और उसकी पत्नी समेत छह नक्सली ढेर कर दिया गया.
ग्रेहाउंड फोर्स ने चलाया ऑपरेशन
ग्रेहाउंड फोर्स ने इस पूरे ऑपरेशन को प्लान और लीड किया. सालों से सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही थी कि हिडमा की हलचल को रियल टाइम में ट्रैक करना लगभग असंभव साबित होता रहा. दंडकारण्य के घने जंगलों, पहाड़ी इलाकों और बेहद सीमित सड़क संपर्क वाले क्षेत्र ने उसे प्राकृतिक कवच दिया था. इलाके के टोपोग्राफी पर उसकी पकड़ उसे बार-बार बड़े ऑपरेशनों से बच निकलने का मौका देती रही. उसकी इकाई जंगल के ऐसे ट्रेल्स का इस्तेमाल करती थी, जिन पर सुरक्षा बलों की पकड़ बेहद कमजोर थी. यही वजह है कि कई बार भारी फोर्स डिप्लॉयमेंट के बावजूद वह अंतिम क्षणों में चकमा देकर निकल जाता था.
बेहद मजबूत था ग्राउंड नेटवर्क
सूत्र बताते हैं कि हिडमा की कामयाबी का सबसे बड़ा हथियार उसका ‘ग्राउंड नेटवर्क’ था. सुकमा में जन्मे हिडमा की स्थानीय बोली और जनजातीय समुदायों में पकड़ इतनी मजबूत थी कि ग्रामीण उसके लिए आंख-कान का काम करते थे. कई बार वे सुरक्षा बलों की मूवमेंट की जानकारी उसे पहले ही पहुंचा देते थे जबकि कभी-कभी फोर्स को भटकाने के लिए गलत सूचना भी देते थे. संचार नेटवर्क की कमी और गांवों के दूर-दूर बसने से खुफिया इनपुट समय पर पाना बेहद मुश्किल रहता था. कई बार इनपुट मिलता भी था तो सुरक्षा बल लक्ष्य तक पहुंचते-पहुंचते वह ठिकाना छोड़ चुका होता था.
लगातार लोकेशन बदल लेता था हिडमा
हिडमा की दूसरी रणनीतिक ताकत उसका लगातार कैंप बदलना था. सुरक्षाबलों को अक्सर ऐसे ठिकाने मिलते थे जो कुछ ही मिनट पहले खाली किए गए लगते थे. उसकी टीम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों से दूरी रखती थी, कोड, इशारों और प्राकृतिक संकेतों से संदेश भेजे जाते थे ताकि लोकेशन ट्रैक होने का जोखिम न रहे. जंगल से घुल-मिलकर चलने की उसकी क्षमता, साजिश रचने का कौशल और अनुशासन ने उसे सुरक्षा एजेंसियों के लिए सबसे कठिन लक्ष्य बना दिया था. अब जबकि वह ढेर हो चुका है, छत्तीसगढ़-आंध्र सीमा पर ऑपरेशन तेज कर दिए गए हैं. सुरक्षा एजेंसियां इसे एक बड़ी कामयाबी मान रही हैं और अब नक्सली संगठन के बचे हुए शीर्ष नेतृत्व पर फोकस किया जा रहा है.
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...
और पढ़ें
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।
First Published :
November 18, 2025, 17:00 IST

2 hours ago
