Last Updated:July 08, 2025, 12:25 IST
पीएम मोदी ने दलाई लामा को उनके 90वें जन्मदिन पर बधाई दी तो चीन ने ना केवल आपत्ति जतायी बल्कि आगाह भी किया. 1959 में दलाई लामा को भारत द्वारा शरण दिए जाने के बाद चीन ने धमकियां दी थीं. जानें क्या हुआ था उस समय.....और पढ़ें

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के मैक्लोडगंज में तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की 90वीं जयंती की पूर्व संध्या पर उनके लिए आयोजित दीर्घायु प्रार्थना समारोह के दौरान केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू.
हाइलाइट्स
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा को 90वें जन्मदिन पर बधाई दीचीन ने तिब्बत पर अपने रुख को दोहराया और भारत को आगाह किया1959 में दलाई लामा को शरण देने पर चीन ने भारत को धमकियां दींChina fumes as PM Modi greets Dalai Lama on 90th birthday: चीन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दलाई लामा को उनके 90वें जन्मदिन पर बधाई देने और हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला स्थित उनके आवास पर समारोह के लिए भारतीय मंत्रियों के पहुंचने पर आपत्ति जतायी है. चीन ने तिब्बत से संबंधित मामलों पर बीजिंग के रुख को दोहराया है. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने बताया कि तिब्बत पर देश की स्थिति कंसिस्टेंस और सर्वविदित है. माओ ने कहा कि दलाई लामा एक राजनीतिक निर्वासित हैं और आरोप लगाया कि वह धर्म की आड़ में शिजांग (जिसे चीन के बाहर तिब्बत के रूप में भी जाना जाता है) को अलग करने के प्रयासों में शामिल रहे हैं.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने कहा, “भारत को शिजांग से संबंधित मुद्दों की संवेदनशीलता को पूरी तरह समझना चाहिए और 14वें दलाई लामा की अलगाववाद विरोधी प्रकृति को पहचानना चाहिए. उसे शिजांग से संबंधित मुद्दों पर चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करना चाहिए.” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत दलाई लामा मुद्दे का इस्तेमाल चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए कर रहा है और उन्होंने नई दिल्ली को ऐसा करने के प्रति आगाह किया. भारत स्थित चीनी दूतावास ने पुनर्जन्म प्रणाली को जारी रखने के संबंध में दलाई लामा की घोषणा पर विरोध जताते हुए कहा कि उन्हें यह निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है कि इस संस्था को जारी रखा जाए या समाप्त कर दिया जाए.
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पीएम मोदी ने दीं शुभकामनाएं तो खोया आपा
प्रधानमंत्री मोदी ने रविवार को दलाई लामा को हार्दिक शुभकामनाएं दीं और कहा कि वे प्रेम, करुणा, धैर्य और नैतिक अनुशासन के स्थायी प्रतीक रहे हैं. मोदी ने एक्स पर लिखा, “उनके संदेश ने सभी धर्मों के लोगों में सम्मान और प्रशंसा की भावना पैदा की है. हम उनके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना करते हैं.” केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू और राजीव रंजन सिंह, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और सिक्किम के मंत्री सोनम लामा धर्मशाला में उनके जन्मदिन समारोह में शामिल हुए. चीन ने भारत से तिब्बत से संबंधित मुद्दों पर सावधानी से काम करने का आग्रह किया था, ताकि द्विपक्षीय संबंधों में सुधार प्रभावित न हो.
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नया नहीं है चीन का यह बर्ताव
दलाई लामा और तिब्बत को लेकर चीन का भारत का यह रवैया नया नहीं है. 66 साल पहले दलाई लामा को भारत द्वारा शरण दिए जाने के बाद चीन ने कई तरह की राजनीतिक धमकियां दी और प्रोपेगेंडा अभियान चलाया. 14वें दलाई लामा 31 मार्च 1959 को तिब्बत में चीनी कार्रवाई से बचते हुए वर्तमान अरुणाचल प्रदेश के तवांग क्षेत्र में खेनज़ेमान से भारत में दाखिल हुए. भारतीय अधिकारियों ने उनका स्वागत किया और उन्हें शरण दी गई. दलाई लामा को भारत द्वारा शरण दिए जाने के बाद चीन ने अपने प्रेस और रेडियो में ‘भारत विरोधी’ अभियान चलाया. उन्होंने भारत पर ‘एंग्लो-अमेरिकन साम्राज्यवादियों’ और तिब्बती प्रतिक्रियावादियों के साथ मिलकर अशांति फैलाने और दलाई लामा का अपहरण करने का आरोप लगाया. उन्होंने दावा किया कि दलाई लामा को भारत में जबरन रखा गया था और उनके बयान भारतीय अधिकारियों द्वारा तय किए गए थे.
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नतीजे में 1962 में लड़ना पड़ा युद्ध
चीनी अधिकारियों और सरकारी मीडिया ने भारत पर चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने, तिब्बती अलगाववाद का समर्थन करने और एक विस्तारवादी शक्ति के रूप में कार्य करने का आरोप लगाया. अप्रैल 1959 में बीजिंग में नेशनल पीपल्स कांग्रेस में कई प्रतिनिधियों ने भारत की निंदा की और उसके कार्यों के लिए परिणाम भुगतने की धमकी दी. चीन ने सीमा पर अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी, जिससे 1959 के अंत में कई सशस्त्र झड़पें हुईं. चीनी सरकार ने मैकमोहन रेखा की वैधता पर सवाल उठाना शुरू कर दिया और भारत के पूर्वोत्तर सीमांत इलाकों (अब अरुणाचल प्रदेश) और अक्साई चिन के क्षेत्रों पर अपने दावों पर जोर दिया. शुरुआती प्रोपेगेंडा अभियान के बाद तिब्बत में भारतीय व्यापारियों को परेशानियों का सामना करना पड़ा. इन धमकियों और कार्रवाइयों ने भारत और चीन के बीच गहरे अविश्वास और बढ़ते तनाव की शुरुआत की. जिसका अंत 1962 के भारत-चीन युद्ध में हुआ.
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New Delhi,Delhi