125 साल पहले टाटा ने लगाई अपनी आधी दौलत, जहां से निकले बड़े-बड़े साइंटिस्‍ट!

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IISC Story: साल 1898 की बात है. जमशेदजी टाटा ने बॉम्बे में खड़े होकर कहा कि वो अपनी आधी से ज्यादा संपत्ति दान कर रहे हैं. लगभग 30 लाख रुपये, 14 इमारतें और चार बड़े प्लॉट. यह सब कुछ एक विश्वस्तरीय साइंस और टेक्नोलॉजी की यूनिवर्सिटी बनाने के लिए दान देना आसान नहीं था. उस जमाने में किसी ने सोचा भी नहीं था कि कोई भारतीय इतना बड़ा दान दे सकता है. उनका मानना था कि देश तभी आगे बढ़ेगा जब हमारे पास अपना खुद का साइंस रिसर्च का बड़ा केंद्र होगा.

ब्रिटिश सरकार ने रोड़ा अटकाया

जमशेदजी ने अपने दोस्त बुरजोरजी पदशाह को अमेरिका और यूरोप भेजा ताकि दुनिया की बेस्ट यूनिवर्सिटी का मॉडल समझ आए. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी को पसंद किया गया, लेकिन वायसराय लॉर्ड कर्जन को प्लान बहुत बड़ा लगा.कर्जन ने फिलॉसफी डिपार्टमेंट के लिए साफ इनकार कर दिया. काफी मशक्कत के बाद सिर्फ दो डिपार्टमेंट को मंजूरी मिली.अब सवाल यह उठा कि संस्‍थान के लिए जगह कौन देगा? तो इसके लिए मैसूर राज्य आगे आया. उस समय की मैसूर की महारानी और उनके नाबालिग बेटे कृष्णराज वाडियार ने इस संस्‍थान के लिए बैंगलोर में 371 एकड़ जमीन मुफ्त दी और इसके लिए फंडिंग भी की.

1904 में दुनिया से चले गए टाटा

इधर 1904 में जमशेदजी टाटा इस दुनिया से चले गए, लेकिन उनके बेटे दोराबजी टाटा और पूरी टीम ने हार नहीं मानी. आखिरकार 27 मई 1909 को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की औपचारिक स्थापना हो गई.इसके पहले डायरेक्टर बने मशहूर ब्रिटिश केमिस्ट मॉरिस ट्रैवर्स.

24 बच्चों के साथ शुरू हुई क्लास

वर्ष 1911 में संस्‍थान का पहला बैच आया. वह भी सिर्फ 24 स्टूडेंट्स का. संस्‍थान में दो ब्रांच शुरू किए गए केमिस्ट्री और इलेक्ट्रिकल टेक्नोलॉजी का. उस वक्त अलग-अलग जाति-धर्म के बच्चों के लिए पांच अलग-अलग मेस तक बनानी पड़ी थीं.

पहले पांच साल में ही छह फैक्ट्रियां

सर एम विश्वेश्वरैया इस काउंसिल में मेंबर थे. उन्होंने साफ कहा कि किताबी कीड़ा मत बनाओ, देश की असली समस्याएं सुलझाओ. नतीजा यह हुआ कि IISc की रिसर्च से पहले पांच साल में ही मैसूर में चंदन का तेल, साबुन, लाख और ऐसीटोन बनाने की छह फैक्ट्रियां खुल गईं.

1933 में बना पहला भारतीय डायरेक्टर

1933 में IISc के पहले भारतीय डायरेक्टर बने नोबेल विजेता सीवी रमन. उसी समय महिलाओं का दाखिला शुरू हुआ वो भी बड़ी मुश्किल से. सबसे मशहूर कहानी है कमला सोहोनी की. टॉप पर मेरिट होने के बावजूद रमन साहब उन्हें लैब में नहीं लेना चाहते थे. कमला ने उनके ऑफिस के बाहर गांधी स्टाइल धरना दे दिया. आखिर रमन को झुकना पड़ा. बाद में कमला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पीएचडी करके आईं और 1937-38 से औपचारिक तौर पर लड़कियों का दाखिला शुरू हुआ.

विश्व युद्ध से अंतरिक्ष तक: IISc साथ रहा

दूसरे विश्व युद्ध में IISc ने हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड के साथ मिलकर प्लेन रिपेयर किए और सैन्य सामान बनाए. होमी जे भाभा, विक्रम साराभाई, सतीश धवन, अन्ना मणि जैसे बड़े नाम यहीं से निकले या यहीं जुड़े रहे. सतीश धवन ने सत्तर-अस्सी के दशक में कंप्यूटर साइंस, मटेरियल साइंस, ब्रेन रिसर्च जैसे नए सेंटर शुरू किए.आज IISc की ग्लोबल रैंकिंग 211 है और एशिया में यह संस्‍थान टॉप-40 में शामिल है.एनआईआरएफ रैंकिंग में यह संस्‍थान भारत में नंबर-1 रिसर्च संस्थान है.यहां ब्रेन रिसर्च, नैनो साइंस, न्यूक्लियर इंजीनियरिंग जैसे कोर्स चल रहे हैं.125 साल पहले जमशेदजी टाटा ने जो एक बीज बोया था वो आज विशाल वटवृक्ष बन चुका है.उनका सपना पूरा हुआ और आज पूरा देश उसकी छांव में साइंस की नई ऊंचाइयां छू रहा है.यही वजह है कि JEE टॉपर्स भी बिना सोचे-समझे IISc चुन लेते हैं.

लोकसभा ने पास किया प्रस्ताव

लोकसभा ने इस संस्थान के संबंध में एक सरकारी प्रस्ताव को मंजूरी दी है जिससे अब दो लोकसभा सदस्यों का चुनाव इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) बेंगलुरु के काउंसिल में हो सकेगा. ये काउंसिल IISc का सबसे बड़ा फैसला लेने वाला बॉडी है जो संस्थान को चलाने, रिसर्च बढ़ाने और भविष्य की प्लानिंग में मदद करती है.केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने ये प्रस्ताव पेश किया. उन्होंने कहा कि लोकसभा से दो सदस्यों को चुनना IISc के काउंसिल में संसद की आवाज को मजबूत करेगा. ये प्रस्ताव वॉइस वोट से पास हो गया.

IISc काउंसिल क्या करती है?

IISc भारत का सबसे बड़ा साइंस रिसर्च और एजुकेशन का संस्थान है. इसकी काउंसिल इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने, रिसर्च को बेहतर बनाने और दुनिया भर के संस्थानों से साझेदारी करने का काम देखता है. काउंसिल में सेंट्रल और कर्नाटक सरकार के नामित सदस्य, टाटा ट्रस्ट, UGC, AICTE, इंडियन यूनिवर्सिटी एसोसिएशन के साथ-साथ लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य भी शामिल होते हैं. अब लोकसभा से दो नए सदस्य जुड़ेंगे जिससे फैसले ज्यादा व्यापक होंगे.

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