बौद्ध भिक्षुओं की ‘थुकदम’ अवस्था, जिसमें मृत्यु के बाद भी शरीर जीवित लगता है

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Last Updated:October 04, 2025, 13:17 IST

What is the 'thukdam' State: तिब्बती बौद्ध भिक्षु गेशे तेनपा धारग्याल की मृत्यु के बाद उनका शरीर थुकदम अवस्था में देखा गया. जिसमें शरीर बिना क्षय के ध्यान मुद्रा में रहता है. वैज्ञानिक इसका अध्ययन कर रहे हैं.

बौद्ध भिक्षुओं की ‘थुकदम’ अवस्था, जिसमें मृत्यु के बाद भी शरीर जीवित लगता हैबौद्ध भिक्षु और विद्वान गेशे तेनपा धारग्याल ​​मृत्यु के 20 दिन बाद ‘थुकदम’ की दुर्लभ ध्यान अवस्था में.

What is the ‘thukdam’ State: यह लगभग 5 साल पहले का वाकया है. दक्षिण भारत के गादेन जंगत्से मठ के बौद्ध भिक्षु और विद्वान गेशे तेनपा धारग्याल को चिकित्सकीय रूप से मृत घोषित हुए 20 दिन हो चुके थे. हालांकि,तब से उनके मृत शरीर में शारीरिक क्षय या नुकसान के कोई लक्षण नहीं दिखे. केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के धर्म और संस्कृति विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार ऐसा माना जाता है कि वह उस अवस्था में थे जिसे तिब्बती बौद्ध ‘थुकदम’ की दुर्लभ ध्यान अवस्था कहते हैं.

तिब्बती बौद्ध धर्म में ‘थुकदम’ एक रहस्यमय अवधारणा है, जिसमें एक अनुभवी साधक मन की एक ऐसी अवस्था में पहुxच सकता है जो मृत्यु के समय सुलभ मानी जाती है. थुकदम तिब्बत में एक बौद्ध अनुष्ठान है जिसमें सिद्ध गुरु की चेतना शरीर की शारीरिक मृत्यु के बावजूद उसमें बनी रहती है. हालांकि उन्हें चिकित्सकीय रूप से मृत घोषित कर दिया जाता है, लेकिन उनके शरीर में सड़न के कोई लक्षण नहीं दिखाई देते और वे बिना किसी संरक्षण के कई दिनों या हफ्तों तक ताजा बने रहते हैं. तिब्बती बौद्ध साहित्य के अनुसार उनके चेहरे पर एक खास चमक और शरीर में एक सामान्य व्यक्ति जैसी गर्माहट होती है. थुकदम  एक तिब्बती शब्द है, जिसमें ‘थुक ‘ का अर्थ मन और ‘दम ‘ का अर्थ समाधि या ध्यान की अवस्था है.

कौन थे गेशे तेनपा धारग्याल
गेशे तेनपा धारग्याल का जन्म 23 अप्रैल 1934 को खाम तावो में माता लोबसांग ल्हामो और पिता लोबसांग बुमराम के घर हुआ था. 20 साल की उम्र में वे तिब्बत के गादेन जंगत्से मठ में शामिल हो गए. 1959 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा तिब्बत पर अवैध कब्जा करने के बाद वे हजारों अन्य लोगों के साथ भारत आ गए. गेशे धारग्याल ने अपने शुरुआती वर्ष बक्सर चोएगर (धर्म केंद्र) में बिताए, जो 1959 में तिब्बतियों के लिए स्थापित पहला मठ था. बाद में वे दक्षिण भारत के कर्नाटक चले गए. गेशे धारग्याल एक सुविख्यात बौद्ध साधक थे और उन्होंने तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रमुख सिद्धांतों का अध्ययन करने में वर्षों बिताए थे.

ध्यान-समाधि में मिली थी एक भिक्षु की ममी
यह विज्ञान के क्षेत्र की सामान्य बात नहीं लगती, लेकिन इस घटना ने हाल के वर्षों में अनेक तंत्रिका वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, मनोवैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों और पश्चिमी दार्शनिकों का ध्यान आकर्षित किया है. 2015 में मंगोलिया में एक ममीकृत भिक्षु की मूर्ति संरक्षित अवस्था में पायी गयी थी. बौद्ध धर्मावलंबियों का कहना है कि कमल मुद्रा में बैठा यह भिक्षु गहन ध्यान-समाधि में था. 2018 में छह रूसी वैज्ञानिकों के एक समूह ने कर्नाटक के बायलाकुप्पे शहर में एक तिब्बती भिक्षु पर ‘थुकदम’ का बारीकी से अध्ययन किया. मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी और सेंट पीटर्सबर्ग स्थित मानव मस्तिष्क संस्थान के वैज्ञानिक ‘थुकदम’ का बेहतर अध्ययन और समझ हासिल करने के लिए यहां आए थे.

मौत के बाद ध्यान की मुद्रा में शरीर
कुछ बौद्ध भिक्षुओं की मृत्यु के बाद उनके शरीर असाधारण रूप से लंबे समय तक अक्सर दो या तीन हफ्तों तक बिना क्षय हुए ध्यान की मुद्रा में रहते हैं. यह निश्चित रूप से अजीब है, लेकिन यह निश्चित रूप से घटित हो रहा है. तिब्बती बौद्ध जो मृत्यु को एक घटना के बजाय एक प्रक्रिया मानते हैं यह दावा कर सकते हैं कि आत्मा ने अभी तक भौतिक शरीर से अपना काम पूरा नहीं किया है. उनके लिए थुकदम एक ‘निर्मल प्रकाश’ ध्यान से शुरू होता है जो मन को धीरे-धीरे मुक्त होने देता है. अंततः सार्वभौमिक चेतना की एक ऐसी अवस्था में विलीन हो जाता है जहां शरीर से कोई जुड़ाव नहीं रहता. केवल उसी समय शरीर मरने के लिए स्वतंत्र होता है.

ये पहेली सुलझाना चाहते हैं दलाई लामा
आप इस बात पर विश्वास करें या न करें, यह एक दिलचस्प घटना है. सच्चाई यह है कि उनके शरीर अन्य शरीरों की तरह सड़ते नहीं हैं. थुकदम के साथ क्या हो रहा है इसकी वैज्ञानिक जांच ने तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च भिक्षु दलाई लामा का ध्यान और समर्थन आकर्षित किया है. वे कथित तौर पर लगभग 20 वर्षों से इस पहेली को सुलझाने के लिए वैज्ञानिकों की तलाश कर रहे हैं. वे विज्ञान के समर्थक हैं और लिखते हैं, “बौद्ध धर्म और विज्ञान दुनिया के बारे में परस्पर विरोधी दृष्टिकोण नहीं हैं, बल्कि एक ही लक्ष्य सत्य की खोज के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण हैं.”

एक यूनिवर्सिटी चला रही ‘थुकदम प्रोजेक्ट’
बौद्ध भिक्षु गेशे धारग्याल की घटना से पहले से इस पर सबसे गंभीर अध्ययन विस्कॉन्सिन-मैडिसन विश्वविद्यालय के स्वस्थ मन केंद्र के थुकदम प्रोजेक्ट द्वारा किया जा रहा है. न्यूरोसाइंटिस्ट रिचर्ड डेविडसन इस केंद्र के संस्थापकों में से एक हैं और उन्होंने माइंडफुलनेस पर सैकड़ों लेख प्रकाशित किए हैं. डेविडसन का पहली बार थुकदम से सामना उनके तिब्बती भिक्षु मित्र गेशे लहुंडुब सोपा के  28 अगस्त 2014 को आधिकारिक निधन के बाद हुआ. डेविडसन ने उन्हें आखिरी बार पांच दिन बाद देखा था. डेविडसन का कहना है कि बिल्कुल भी बदलाव नहीं आया था. यह वाकई काफी हैरतअंगेज अनुभव था.

क्या कहता है थुकदम प्रोजेक्ट का अध्ययन
थुकदम प्रोजेक्ट ने कुछ साल पहले अपनी पहली वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इसमें एक अध्ययन पर चर्चा की गयी जिसमें 13 भिक्षुओं जिन्होंने थुकदम का अभ्यास किया था और कम से कम 26 घंटे पहले मृत हो गए थे. उनके मस्तिष्क में इलेक्ट्रोएन्सेफेलोग्राम से कोई गतिविधि नहीं देखी गयी. डेविडसन इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक थे. हालांकि कुछ लोग कह सकते हैं, “ठीक है, बस इतना ही.” डेविडसन इस शोध को एक लंबी राह पर पहला कदम मानते हैं. दार्शनिक इवान थॉम्पसन बताते हैं, “अगर यह सोचा गया था कि थुकदम एक ऐसी चीज है जिसे हम मस्तिष्क में माप सकते हैं, तो यह अध्ययन बताता है कि यह सही जगह नहीं है.”

क्यों इतना धीमा होता है डिम्पोजिशन?
बहरहाल सवाल यह है कि ये मृत प्रतीत होने वाले भिक्षुओं का डिम्पोजिशन इतना धीमा क्यों होता है? हालांकि पर्यावरणीय कारक इस प्रक्रिया को थोड़ा धीमा या तेज कर सकते हैं, लेकिन आमतौर पर डिम्पोजिशन मृत्यु के लगभग चार मिनट बाद शुरू होता है और अगले एक-दो दिन में ही स्पष्ट हो जाता है. दलाई लामा ने कहा, “विज्ञान जो कुछ अस्तित्वहीन पाता है, उसे हम सभी को अस्तित्वहीन मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए. लेकिन जो विज्ञान नहीं पाता वह बिल्कुल अलग बात है. इसका एक उदाहरण स्वयं चेतना है. हालांकि मनुष्यों सहित सभी संवेदनशील प्राणियों ने सदियों से चेतना का अनुभव किया है फिर भी हम अभी भी नहीं जानते कि चेतना वास्तव में क्या है. इसका संपूर्ण स्वरूप और यह कैसे कार्य करती है.”

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

October 04, 2025, 13:16 IST

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