आज के समय में प्राइवेट कंपनियों में एंप्लॉयी को अचानक टर्मिनेशन लेटर थमाने का एक ट्रेंड चल गया है. कॉस्ट कटिंग के नाम पर कंपनी हर साल कई ऐसे लोगों को निकाल देती है, जो वास्तव में कंपनी में वैल्यू एड करते हैं. क्योंकि ज्यादातर ले ऑफ वर्क परफॉर्मेंस पर कम आपसी संबंध के आधार पर किए जाते हैं.
लेकिन बिना किसी कारण अपने एंप्लॉयी को निकालना महंगा भी पड़ सकता है, इसका अंदाजा किसी कंपनी को नहीं होगा. हाल ही में मिड-साइज कंपनी ने अपने एक कर्मचारी को यह सोचकर निकाल दिया कि उसका काम किसी कम सैलरी बंदे से भी करवाया जा सकता है. जिसका नतीजा ये है कि अब कंपनी करोड़ों का नुकसान हर महीने उठा रही है. कंपनी को हर महीने ₹52 लाख की चपत लग रही है.
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कंपनी रह गई खाली हाथ
एंप्लॉयी कंपनी के बड़े क्लाइंट को हैंडल कर रहा था. जिससे उसे निकालने पर कंपनी ने अपने क्लाइंट को खो दिया. एंप्लॉयी ने अपने स्किल्स से क्लाइंट के साथ अच्छा कनेक्शन बना लिया था. ऐसे में जब उसे निकाला गया तो क्लाइंट ने पूर्व कर्मचारी से साफ कहा कि जब वह पहले से ही सारे काम प्रभावी ढंग से संभाल रहा था, तो उसे किसी और से क्यों करवाएं? क्लाइंट ने तुरंत उसे अपने साथ जोड़ लिया. क्लाइंट वही था जो कंपनी की कुल कमाई में सबसे बड़ा योगदान दे रहा था.
हर महीने उठाना पड़ रहा 52 लाख का नुकसान
इस कॉन्ट्रैक्ट की अनुमानित मासिक कीमत लगभग $60,000 यानी ₹52 लाख थी. ऐसे में जैसे ही कंपनी ने अपने एंप्लॉयी को निकाला उसके साथ ही उसका सबसे बड़ा क्लाइंट भी चला गया. और अब कंपनी को हर महीने 52 लाख का नुकसान उठाना पड़ रहा है.
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गलत अनुमान, भारी नुकसान
इस मामले ने यह साफ कर दिया कि कर्मचारियों को केवल "रिप्लेस करने लायक" समझना कितनी बड़ी भूल हो सकती है. जिस कर्मचारी को कंपनी ने नजरअंदाज किया, वही असल में क्लाइंट के लिए सबसे जरूरी कड़ी था. कंपनी ने ना सिर्फ एक कुशल कर्मचारी खोया, बल्कि उसके साथ गया भरोसा, बिजनेस और बाजार में साख भी खो दी. अब वो न केवल वित्तीय घाटे का सामना कर रही है, बल्कि अन्य क्लाइंट्स के साथ रिश्तों को लेकर भी दबाव में है.