Last Updated:December 24, 2025, 19:07 IST
Kuldeep Singh Sanger Rape Case: उन्नाव रेप कांड के दोषी कुलदीप सेंगर को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. जिस पॉक्सो एक्ट ने उन्हें उम्रकैद दिलाई, उसी की धारा-5 अब ढाल बन गई. कोर्ट ने माना कि एक विधायक तकनीकी रूप से इस कानून के तहत पब्लिक सर्वेंट नहीं है. इसी कानूनी पेच और 7 साल की जेल को आधार बनाकर सजा सस्पेंड कर दी गई.
कुलदीप सिंह को कोर्ट से राहत मिली.इंसाफ का तराजू कभी-कभी कानून की किताबों में लिखे एक शब्द की व्याख्या से डगमगा जाता है. एक नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में कुलदीप सिंह सेंगर को ‘मरते दम तक’ जेल की सजा सुनाई गई थी. आज कानून की उसी बारीकियों की वजह से जेल की दहलीज से बाहर कदम रखने को तैयार हैं. दिल्ली हाईकोर्ट का ताजा फैसला न केवल सेंगर के लिए राहत लेकर आया है बल्कि इसने पब्लिक सर्वेंट (लोक सेवक) की परिभाषा पर एक नई बहस छेड़ दी है. कोर्टरूम में हुई दलीलों ने यह साफ कर दिया कि कानून की नजर में एक विधायक की भूमिका क्या है और क्या उसे एक आम सरकारी कर्मचारी की तरह माना जा सकता है? इस एक सवाल ने सेंगर की उम्रकैद की सजा पर फिलहाल ब्रेक लगा दिया है.
क्या है पॉक्सो एक्ट और क्यों फंसा पेंच?
ट्रायल कोर्ट ने कुलदीप सेंगर को पॉक्सो एक्ट की धारा 5(c) के तहत दोषी ठहराया था. यह धारा ‘एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट’ से संबंधित है. कोर्ट ने प्रथम दृष्टया माना कि सेंगर के खिलाफ POCSO एक्ट की धारा 5 (एग्रेवेटेड पेनिट्रेटिव सेक्सुअल असॉल्ट) के तहत मामला नहीं बनता है. कारण इस धारा के तहत ‘पब्लिक सर्वेंट’ द्वारा किए गए अपराध को गंभीर श्रेणी में रखा जाता है. हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि एक विधायक (MLA) इस कानून के दायरे में ‘पब्लिक सर्वेंट’ के रूप में परिभाषित नहीं है.
पॉक्सो एक्ट सख्त होने से पहले किया था अपराध
सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने एक तकनीकी बिंदु पर ध्यान दिया. कोर्ट ने तर्क दिया कि कानून की विशिष्ट धाराओं में विधायक को लोक सेवक के रूप में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है. जैसे ही यह ‘पब्लिक सर्वेंट’ वाला टैग हटा, सेंगर पर लगी धारा-5 की गंभीरता कम हो गई, जो उनकी सजा निलंबन का सबसे बड़ा आधार बनी. वो पहले ही 7 साल जेल में बिता चुका है. साल 2019 में पॉक्सो एक्ट में संशोधन होने से पहले तक इस धारा-5 के तहत न्यूनतम 10 साल की सजा का प्रावधान था. सेंगर से जुड़ा केस इस संधोधन से पहले का है. लिहाजा 10 में से 7 साल जेल में बिताने को आधार मानते हुए उसे अंतरिम राहत दी गई.
पुलिस की जांच या कानून की खामी?
इस फैसले ने जांच एजेंसियों और अभियोजन पक्ष की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए हैं.
1. परिभाषा का अभाव: यदि पॉक्सो एक्ट के ड्राफ्ट में ‘पब्लिक सर्वेंट’ की परिभाषा में जनप्रतिनिधियों को स्पष्ट शामिल नहीं किया गया है तो यह कानून की एक बड़ी ‘ग्रे एरिया’ (कमी) है.
2. दूरी और पाबंदियां: कोर्ट ने भले ही सजा सस्पेंड की है लेकिन सेंगर पर 5 किलोमीटर के दायरे वाली शर्त लगाकर पीड़िता की सुरक्षा सुनिश्चित करने की कोशिश की है.
3. अभी रिहाई नहीं: यह ध्यान देना जरूरी है कि सेंगर को केवल रेप केस में जमानत मिली है. पीड़िता के पिता की हत्या के मामले में उन्हें अभी भी राहत का इंतजार है.
सिस्टम पर उठते सवाल
कुलदीप सेंगर को मिली यह राहत पीड़िता के लिए किसी सदमे से कम नहीं है. जिस कानून ने सजा दिलाई, उसी ने रास्ता निकाला, यह विरोधाभास दर्शाता है कि हाई-प्रोफाइल मामलों में कानूनी लड़ाई कितनी जटिल होती है. 26 दिसंबर की अगली सुनवाई और भविष्य में आने वाले फैसले यह तय करेंगे कि क्या यह राहत स्थायी होगी या सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी जाएगी.
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पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
First Published :
December 24, 2025, 19:07 IST

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