Last Updated:September 30, 2025, 16:33 IST
Seawater to Drinking Water: IISc का साइफन-पावर्ड डीसैलीनेशन सिस्टम समुद्र के खारे पानी को भरोसेमंद तरीके से मीठा बनाने में सक्षम है. यह तेज, सस्ता और टिकाऊ है.

नई दिल्ली: पानी की कमी से जूझती दुनिया के लिए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) की टीम ने बड़ा ब्रेकथ्रू दिया है. पारंपरिक सोलर स्टिल्स जहां नमक जमने और सीमित स्केल की वजह से फेल हो जाते हैं, वहीं IISc का नया साइफन-बेस्ड थर्मल डीसैलीनेशन सिस्टम इन दोनों चुनौतियों को खत्म कर देता है. यह टेक्नोलॉजी खारे समुद्री पानी को तेज, सस्ता और भरोसेमंद तरीके से पीने लायक क्लीन वाटर में बदल सकती है. खास बात यह है कि यह यूनिट सस्टेनेबल है और एक्स्ट्रीमली सॉल्टी वाटर (20% तक नमक) को भी आसानी से प्यूरिफाई कर देती है. प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) के अनुसार, रिसर्चर्स का कहना है कि यह इनोवेशन स्केलेबिलिटी, साल्ट रेसिस्टेंस और सिंप्लिसिटी का परफेक्ट कॉम्बिनेशन है. गांवों से लेकर आइलैंड नेशंस तक, यह टेक्नोलॉजी करोड़ों लोगों को सेफ ड्रिंकिंग वाटर उपलब्ध कराने का रास्ता खोल सकती है.
साइफन टेक्नोलॉजी ने खत्म की सबसे बड़ी समस्या
पारंपरिक सोलर स्टिल्स में साल्ट बिल्डअप बड़ी दिक्कत है. नमक जमने से इवापोरेटर सतह पर पानी का फ्लो ब्लॉक हो जाता है. IISc की टीम ने साइफन प्रिंसिपल यूज कर इस समस्या को दूर किया है. कॉम्पोजिट साइफन में फैब्रिक विक और ग्रूव्ड मेटलिक सतह का कॉम्बिनेशन है. फैब्रिक खारे पानी को रिजर्वायर से खींचता है और ग्रैविटी लगातार फ्लो बनाए रखती है. नमक क्रिस्टल बनने से पहले ही यह सिस्टम उसे बाहर फ्लश कर देता है.
कुछ इस तरह काम करता है साइफन डीसैलीनेशन सिस्टम. (Photo : PIB)
दो मिलीमीटर एयर गैप से बढ़ी एफिशिएंसी
इस टेक्नोलॉजी की सबसे बड़ी ताकत है अल्ट्रा-नैरो एयर गैप. पानी मेटल सतह पर पतली परत में फैलता है, गर्मी से तुरंत इवापोरेट होता है और फिर सिर्फ 2 मिलीमीटर दूर कूल सतह पर कंडेंस होकर क्लीन वाटर बन जाता है. यह सेटअप प्रति स्क्वेयर मीटर प्रति घंटे 6 लीटर से ज्यादा फ्रेश वाटर जेनरेट करता है. यह आउटपुट पारंपरिक सोलर स्टिल्स के मुकाबले कई गुना ज्यादा है.
लैबोरेटरी में टेस्ट किया गया साइफन डीसैलीनेशन सिस्टम. (Photo : PIB)
गांवों से लेकर आइलैंड्स तक इस्तेमाल संभव
IISc का यह यूनिट सिंपल मटीरियल्स जैसे एल्युमिनियम और फैब्रिक से बना है. यह पूरी तरह लो-कॉस्ट और स्केलेबल है. इसे सोलर एनर्जी या वेस्ट हीट दोनों से चलाया जा सकता है. यही वजह है कि यह ऑफ-ग्रिड कम्युनिटीज, डिजास्टर जोन्स और ड्राई कोस्टल रीजन में गेम-चेंजर साबित हो सकता है.
जहां बाकी सिस्टम्स ज्यादा नमक वाली ब्राइन को क्लीन नहीं कर पाते, वहीं IISc का यह डिवाइस 20% तक नमक वाले पानी को भी बिना क्लॉगिंग प्रोसेस कर सकता है. यह फीचर इसे खास बनाता है क्योंकि ब्राइन ट्रीटमेंट आज की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.
Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...और पढ़ें
Deepak Verma is a journalist currently employed as Deputy News Editor in News18 Hindi (Digital). Born and brought up in Lucknow, Deepak's journey began with print media and soon transitioned towards digital. He...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 30, 2025, 16:31 IST