Last Updated:September 30, 2025, 19:14 IST
Bihar Chunav: अमित शाह की 'चाणक्य नीति' ने क्या पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात करवाई? क्या एनडीए में सीट शेयरिंग विवाद अब कम हो जाएगा?

पटना. क्या बीजेपी के ‘चाणक्य’ अमित शाह का गुप्त दांव काम कर गया? बिहार की राजनीति में अब मनोवैज्ञानिक दांव-पेंच का खेल भी शुरू हो गया है. अक्सर राजनीति में जो सामने से नजर आता है, वह पूरी सच्चाई नहीं होती. उसके पीछे कोई बड़ी कहानी, चाल या फिर ‘चाणक्य नीति’ का कमाल भी होता है. मंगलवार को दिल्ली में भोजपुरी फिल्मों के पावर स्टार पवन सिंह और एनडीए के पार्टनर उपेंद्र कुशवाहा के बीच हुई मुलाकात के अब मायने तलाशे जा रहे हैं. क्योंकि, पवन सिंह पहले उपेंद्र कुशवाहा से मिले फिर बीजेपी के ‘चाणक्य’ और देश के गृह मंत्री अमित शाह से उनकी मुलाकात हुई. क्या मंगलवार की ये मुलाकातें सामान्य मुलाकत थीं? या फिर बीजेपी के ‘चाणक्य’ की चाल? क्या बिहार चुनाव में सीट शेयरिंग के विवाद से बचने के लिए पवन सिंह बने ‘पुल’?
बीते 15 सालों से अमित शाह की रणनीति हमेशा सीधे और सरल समाधान से बचने की रही है. पवन सिंह को उपेंद्र कुशवाहा से पहले मिलवाने का सीधा अर्थ है सहयोगी दलों को सम्मान. शाह ने पवन सिंह जैसे हाई-प्रोफाइल कैंडिडेट को पहले कुशवाहा, जो एनडीए में एक छोटे लेकिन महत्वपूर्ण सहयोगी हैं से मिलवाकर यह संदेश दिया कि गठबंधन में सभी की राय मायने रखती है. इससे उपेंद्र कुशवाहा की आरएलजेडी का महत्व बढ़ा और गठबंधन के भीतर एक अच्छा माहौल बना.
भाजपा में दोबारा शामिल होने पर अभिनेता और गायक पवन सिंह ने कहा, “हम अलग हुए ही कहां थे? हम साथ हैं.”
पवन सिंह और कुशवाहा की क्यों हुई मुलाकात?
क्योंकि, 2024 के लोकसभा चुनाव में पवन सिंह की वजह से काराकाट सीट से उपेंद्र कुशवाहा हारे थे. पवन सिंह निर्दलीय कैडिडेट बनकर उपेंद्र कुशवाहा के हार का कऱण बने थे. इसलिए कुशवाहा से मिलवाकर बीजेपी ने उनको सम्मान दिया. पवन सिंह अगर आरा से चुनाव लड़ते हैं तो वहां के कुशवाहा वोटर को भी ये मैसेज चला गया कि पवन सिंह ने अपनी गलती मान ली है. दूसरा राजपूत-कुशवाहा गठजोड़ से डेहरी-ऑन-सोन में एक बार फिर से एनडीए को वापसी कराना है. क्योंकि बीते चुनाव में 24 में से से मात्र दो सीटों पर एनडीए का कब्जा हुआ था. पवन सिंह राजपूत जाति से आते हैं औऱ उपेंद्र कुशवाहा कोयरी जाति से ताल्लुक रखते हैं. दोनों जाति का वोट बैंक इस एरिया में एक मजबूत सामाजिक इंजीनियरिंग का संकेत है.
क्या सीट शेयरिंग के विवाद को खत्म करना
अमित शाह का यह ‘सीक्रेट प्लान’ इसलिए सफल माना जा रहा है, क्योंकि यह गठबंधन में आने वाले संभावित विवादों को शुरू होने से पहले ही समाप्त कर देता है. शाह जानते हैं कि सीट शेयरिंग की घोषणा से पहले हर सहयोगी दल अपने लिए अधिकतम सीटें चाहेगा. पवन सिंह को कुशवाहा से मिलवाकर शाह ने कुशवाहा के ज्यादा सीट की डिमांड को भी थोड़ा कम कर दिया. अब कुशवाहा भी एनडीए के हित में उन सीटों पर दावा करना छोड़ सकते हैं, जिस पर अभी तक वह अड़े हुए हैं.
बीजेपी के चाणक्य की इस रणनीति से एनडीए ने अपनी एकता और सामाजिक तालमेल को मजबूत किया?
कुलमिलाकर बीजेपी के चाणक्य की इस रणनीति से एनडीए ने अपनी एकता और सामाजिक तालमेल को मजबूत दिखाया, जिससे महागठबंधन पर दबाव बढ़ गया है. अमित शाह की इस ‘चाणक्य नीति’ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एनडीए का सीट शेयरिंग प्लान अब कागजों पर नहीं, बल्कि जमीन पर कैंडिडेट, सहयोगी के साथ तालमेल के साथ शुरू हो चुका है.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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First Published :
September 30, 2025, 19:14 IST