शास्त्रों में लिखा है..बच्चे को संन्यासी बनाने चली थी मां, कोर्ट ने इसलिए रोका

9 hours ago

Last Updated:May 21, 2025, 13:23 IST

Surat minor diksha stopped: सूरत फैमिली कोर्ट ने 12 साल के बच्चे की दीक्षा पर रोक लगाई. पिता ने याचिका में कहा कि बच्चा नाबालिग है और दीक्षा का निर्णय अकेले मां नहीं ले सकती.

शास्त्रों में लिखा है..बच्चे को संन्यासी बनाने चली थी मां, कोर्ट ने इसलिए रोका

प्रतीकात्मक तस्वीर

हाइलाइट्स

सूरत कोर्ट ने 12 साल के बच्चे की दीक्षा पर रोक लगाई है.पिता बोले- मां अकेले फैसला नहीं ले सकती, मामला कोर्ट में लंबित.कोर्ट ने कहा- नाबालिग बच्चा खुद भविष्य का फैसला नहीं ले सकता.

सूरत की फैमिली कोर्ट ने मंगलवार को 12 साल के एक बच्चे की दीक्षा यानी संन्यास लेने की रस्म पर रोक लगा दी. यह फैसला उस वक्त आया जब बच्चे के पिता, जो मध्य प्रदेश के रहने वाले व्यापारी हैं, ने सोमवार को कोर्ट में याचिका दायर की थी. यह दीक्षा समारोह बुधवार और गुरुवार को सूरत में होने वाला था.

मां-बाप के बीच विवाद, कानूनी लड़ाई जारी
बच्चे के माता-पिता अलग हो चुके हैं और उसकी कस्टडी को लेकर अदालत में मुकदमा चल रहा है. पिता का कहना है कि जब तक कोर्ट में फैसला नहीं होता, तब तक बच्चे से जुड़ा कोई बड़ा फैसला अकेले मां नहीं ले सकती. उन्होंने कोर्ट को सोशल मीडिया पर वायरल हुआ दीक्षा समारोह का निमंत्रण पत्र भी सौंपा.

पिता की दलील- बच्चा छोटा है, फैसला समझ नहीं सकता
पिता के वकील ने कोर्ट में कहा कि उन्हें सोशल मीडिया पर इस समारोह का कार्ड देखकर झटका लगा. जब बच्चा अभी नाबालिग है और कस्टडी को लेकर मामला कोर्ट में लंबित है, तब उसकी मां कैसे अकेले उसे संन्यासी बनाने का फैसला ले सकती है? संन्यास लेने के बाद बच्चा अपने परिवार और दुनियावी रिश्तों से पूरी तरह अलग हो जाएगा. वकील ने यह भी कहा कि धर्म कानून से ऊपर नहीं है और 12 साल का बच्चा यह नहीं समझ सकता कि उसके लिए क्या सही है और क्या गलत.

मां की दलील- बेटा खुद करना चाहता है दीक्षा
वहीं बच्चे की मां की ओर से वकील ने कहा कि यह फैसला बच्चे ने खुद लिया है. मां का कहना है कि पति ने कभी बेटे की पढ़ाई या खर्च की चिंता नहीं की, लेकिन अब अचानक कस्टडी मांगने आ गए हैं. मां ने यह भी कहा कि पति से अलग होने के बाद वह ही बच्चे की परवरिश कर रही हैं.

कोर्ट की टिप्पणी- नाबालिग बच्चे का फैसला मान्य नहीं
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अभी बच्चा मां की कस्टडी में है. पिता की ओर से ‘गार्जियन एंड वॉर्ड्स एक्ट’ की धारा 7 और 25 के तहत याचिका दी गई है, जो अभी अदालत में चल रही है. कोर्ट ने साफ कहा कि 18 साल से कम उम्र का बच्चा अपने भविष्य का इतना बड़ा फैसला नहीं ले सकता. कोर्ट ने यह भी कहा कि भले ही संविधान में आर्टिकल 25 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है, लेकिन कोई भी फैसला बच्चे की समझ और उम्र के अनुसार ही होना चाहिए.

मां की प्रतिक्रिया- फैसले से संतुष्ट नहीं, करेंगे चुनौती
बच्चे की मां के वकील ने कहा कि वे कोर्ट के इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. वे पहले आदेश को अच्छे से पढ़ेंगे और फिर ऊपरी अदालत में इसे चुनौती देने पर विचार करेंगे. उनका कहना है कि धार्मिक शास्त्रों में भी आठ साल की उम्र के बाद दीक्षा की अनुमति दी गई है.

पिता की प्रतिक्रिया- कोर्ट ने सही फैसला दिया
पिता की ओर से वकील ने कोर्ट के आदेश का स्वागत किया और कहा कि जब तक बेटे की कस्टडी को लेकर तीन अलग-अलग मुकदमे लंबित हैं, तब तक दीक्षा लेने की अनुमति देना सही नहीं होता. अगर बच्चा संन्यास ले लेता, तो कस्टडी पर कोई भी फैसला बेकार हो जाता.

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