Last Updated:June 09, 2025, 17:52 IST
AATMNIRBHARTA IN DEFENCE: भारत कुल 80 देशों को सैन्य उपकरण और बाकी साजो-सामान बेच रहा है. दुनिया के तमाम हथियार निर्माता देश भारत के साथ जुड़ने की कोशिशों में जुटे हैं. रक्षा मंत्रालय की तरफ से वित्तीय वर्ष 20...और पढ़ें

स्वदेशी हथियारों से लड़ेंगे भविष्य की जंग
हाइलाइट्स
भारत ने 80 देशों को सैन्य उपकरण बेचे.रक्षा उत्पादन 174% बढ़कर 1,27,265 करोड़ रुपये हुआ.2029 तक 3 लाख करोड़ के रक्षा उत्पादन का लक्ष्य.AATMNIRBHARTA IN DEFENCE: देश में बीजेपी की सरकार को 11 साल पूरे हो गए हैं. इन 11 सालों में सेना ने 3 बार पाकिस्तान और 2 बार चीन को कड़ा जवाब दिया गया. पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक और ऑपरेशन सिंदूर का सामना कराया. चीन को डोकलाम और पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना की ताकत का सामना करना पड़ा. पीएम मोदी से पहले डॉ. मनमोहन सिंह का 2004 से 2014 तक का कार्यकाल भी सेना के लिए महत्वपूर्ण रहा. उस समय सेना के लिए विदेशों से जमकर खरीदारी की गई. चीन और पाकिस्तान जैसी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए सेना की जरूरतों को पूरा किया गया. डिफेंस डील्स जटिल और लंबी होती हैं. कई डील्स जो यूपीए सरकार के समय शुरू हुईं, वे पीएम मोदी के कार्यकाल में पूरी हुईं. मनमोहन सरकार के दौरान कई मेगा डील्स हुईं, कुछ पूरी हो गईं और कुछ अधूरी रह गईं. मोदी सरकार ने आत्मनिर्भर भारत को एक हथियार बनाया और सेना को ताकतवर बनाना शुरू किया.
स्वदेशीकरण को मिला पुश
केन्द्र में NDA की बाजपेयी सरकार के दौरान 2001 से 2004 के बीच अमेरिका से 400 मिलियन डॉलर के करीब के हथियार खरीदे गए थे. मनमोहन सरकार के आने के बाद अमेरिका से डिफेंस डील में तेजी आई. 2005 से 2008 के बीच यह 3.2 बिलियन डॉलर के करीब पहुँच गई. 2009 से 2013 तक यह राशि बढ़कर 5.7 बिलियन डॉलर हो गई. 2014 में मनमोहन सरकार बदली और मोदी सरकार आई. नई सरकार ने सबसे पहले यह काम किया कि विदेशों पर निर्भरता कम की जाए और भारतीय डिफेंस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए रफ्तार पकड़ी. रक्षा उत्पादन पिछले 10 साल में 174 फीसदी बढ़ गया है. 2014-15 में जो डिफेंस प्रोडक्शन महज 46,429 करोड़ का था, वह 2023-24 में बढ़कर 1,27,265 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. 3 लाख करोड़ के रक्षा उत्पादन का टारगेट 2029 तक का रखा गया है.
UPA के काम मोदी सरकार में हुए पूरे
हाई एल्टीट्यूड एरिया में भारतीय फायर पावर को मजबूत बनाने के लिए बड़ी तोपों की जरूरत थी. ऐसी तोपें जो वजन में हल्की हों और हेलिकॉप्टर से आसानी से दुर्गम इलाकों में ले जाई जा सकें. चीन को ध्यान में रखकर मई 2012 में DAC ने अमेरिका से 145 M777 अल्ट्रा लाइट हॉवितसर की डील को मंजूरी दी. लेकिन वित्त मंत्रालय और CCS की मंजूरी के लिए प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ी. रक्षा मंत्रालय ने 2014 लोकसभा चुनावों से ठीक पहले इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया. 2015 में तत्कालीन रक्षामंत्री मनोहर परिकर ने फिर इस डील को आगे बढ़ाया और 2016 में डील पर दस्तखत हो गए. थलसेना की आर्टिलरी की ताकत को बढ़ाने के लिए M777 के साथ-साथ 100 155mm/52 कैलिबर की सेल्फ प्रोपेल्ड गन K-9 वज्र की खरीद की शुरुआत भी मनमोहन सरकार के समय हुई. 2007 में पहला रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) जारी किया गया था. 2011 में L&T टॉप बिडर के तौर पर सामने आया। ट्रायल के लिए बुलाया भी गया लेकिन डील नहीं हो सकी। पीएम मोदी ने इस डील को आगे बढ़ाया और 2018 में भारत को पहली K-9 वज्र तोप मिली.
एयरक्राफ्ट की खरीद में तेजी लाई गई
भारतीय वायुसेना के कम होते फाइटर स्क्वाड्रन को पूरा करने के लिए 126 MMRCA यानी मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट की खरीद प्रक्रिया शुरू की गई थी. मनमोहन सरकार ने 2007 में टेंडर जारी किया था. 2012 में फ्रांस के रफाल को चुना गया. लेकिन डील पूरी ही नहीं हो सकी.प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 126 रफाल की पूरी डील तो नहीं की लेकिन 2016 में 36 रफाल फ्रांस से खरीदे. स्वदेशी तेजस का प्रोग्राम तीन दशकों से ज्यादा से चल रहा था. डील तो मनमोहन सिंह सरकार के समय हुई थी. पहला स्क्वाड्रन 2017 में स्थापित हुआ. अटैक हेलिकॉप्टर अपाचे और हैवी लिफ्ट हेलिकॉप्टर की खरीद भी मनमोहन सिंह सरकार के दौरान शुरू हुई थी. 2009 में अमेरिका से खरीद के लिए प्रक्रिया शुरू की गई और 2012 तक इसे पूरा करने का टार्गेट रखा गया. रक्षा मंत्रालय और वित्त मंत्रालय में फाइल अटकी रही. 2015 में वित्त मंत्रालय ने 22 अपाचे और 15 चिनूक हेलिकॉप्टर खरीद की हरी झंडी दे दी। साथ ही सेना के लिए 6 अपाचे की डील को भी अंजाम दिया गया.
सबमरीन प्लान ने ली नई शक्ल
नौसेना के लिए 6 स्कॉर्पीन सबमरीन ट्रांसफर टेक्नोलॉजी के तहत डील 2005 में साइन हुई थी. मुंबई मजगांव डॉक लिमिटेड और फ्रांस की DCNS ग्रुप ने मिलकर देश में ही इसका निर्माण करना था. प्रोजेक्ट में काफी देरी हुई और डील साइन होने के 12 साल बाद पहली सबमरीन भारतीय नौसेना को मिली. इसी तरह पहली स्वदेशी न्यूक्लियर सबमरीन का प्रोजेक्ट 70 के दशक के अंत से ही चल रहा था. 26 जुलाई 2009 को मनमोहन सरकार के दौरान इस प्रोग्राम को लॉन्च किया गया. 2013 में सबमरीन परमाणु रिएक्टर एक्टिवेट किया गया और इसके तीन साल बाद पीएम मोदी ने देश की पहली न्यूक्लियर सबमरीन अरिहंत को देश को समर्पित किया. इसके बाद पिछले साल दूसरी सबमरीन अरिघात को भी शामिल कर लिया गया.