भारतीय सेना में 60% से ज्यादा हथियार रशियन! कैसे हुई थी भारत-रूस की दोस्ती?

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भारत ने अभी-अभी आज़ादी की सांस ली थी. देश की सरहदें सुरक्षित करने की एक बहुत बड़ी चुनौती सामने थी, और हाथ में था क्या? जंग के नाम पर बस कुछ पुराने और थके हुए हथियार. नई, मज़बूत और भरोसेमंद सेना खड़ी करना वक़्त की ज़रूरत थी, लेकिन दुनिया के बड़े-बड़े ताकतवर देश अपने हथियार बेचने में आनाकानी कर रहे थे, खासकर तब जब भारत किसी भी एक गुट में शामिल होने को तैयार नहीं था. गुटनिरपेक्षता की जो नीति भारत ने अपनाई, वही मुश्किल भी खड़ी कर रही थी.

जहां एक तरफ अमेरिका और पश्चिमी देश भारत को एक ‘शर्तों वाला’ दोस्त मानते थे, वहीं सोवियत संघ (USSR) की नज़र इस नए-नए आज़ाद हुए देश पर थी. सोवियत यूनियन जानता था कि भारत का साथ मिलना कितना ज़रूरी है, खासकर शीत युद्ध (Cold War) के उस माहौल में, जहां दुनिया दो खेमों में बंटी हुई थी.

बस यहीं से शुरू होती है भारत और रूस (तब सोवियत संघ) के बीच एक ऐसी दोस्ती की दास्तान, जो वक्त के हर इम्तिहान पर खरी उतरी. ये रिश्ता सिर्फ़ हथियारों के सौदों का नहीं था, बल्कि एक गहरे भरोसे, साथ खड़े रहने और एक-दूसरे की आज़ादी का सम्मान करने का था.

अभी रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत के दौरे पर हैं.

शुरुआत: वो ‘ना’ जो ‘हां’ में बदल गई

जब भारत आज़ाद हुआ, तो शुरुआती दिनों में हमारी सेना के पास ज़्यादातर हथियार ब्रिटेन के थे. लेकिन 1960 का दशक आते-आते, खासकर चीन के साथ 1962 की लड़ाई के बाद, भारत को अहसास हुआ कि हमें आधुनिक और ताकतवर हथियारों की बहुत सख़्त ज़रूरत है.

भारत ने अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों से मदद मांगी. लेकिन पश्चिमी देश हमेशा कोई न कोई शर्त लगा देते थे- जैसे कि आप हमारी बात मानिए, गुटनिरपेक्षता छोड़िए, या फिर कोई दूसरा राजनीतिक दबाव. ऐसे में, भारत को लगा कि अगर हमें अपनी रक्षा नीति ख़ुद तय करनी है, तो हमें एक ऐसे दोस्त की ज़रूरत है जो बिना किसी शर्त के साथ खड़ा हो.

सुखोई फाइटर जेट.

ठीक उसी वक़्त, सोवियत संघ ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया. सोवियत संघ के लिए यह एशिया में अपनी पकड़ मज़बूत करने का एक मौका था, और भारत के लिए ये अपनी सेना को आत्मनिर्भर बनाने का सबसे अच्छा और कह सकते हैं कि एकमात्र रास्ता था.

पहला बड़ा कदम: मिग फाइटर जेट्स की कहानी

1960 के दशक की शुरुआत में सोवियत संघ ने भारत को मिग-21 फाइटर जेट्स देने की पेशकश की. ये उस वक़्त के सबसे आधुनिक जेट्स में से एक थे. पश्चिमी देशों ने जब भारत को अपने एडवांस्ड जेट्स देने से मना कर दिया, तो मिग-21 का सौदा एक गेम-चेंजर साबित हुआ.

सबसे बड़ी बात ये थी कि सोवियत संघ सिर्फ़ हथियार बेचने को तैयार नहीं था, बल्कि टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने को भी राजी था. इसका मतलब था कि भारत खुद इन फाइटर जेट्स को अपने देश में बना सकता था. इसे भारत के लिए आत्मनिर्भरता की तरफ पहला बड़ा कदम माना जा सकता है. इस डील ने साबित कर दिया कि सोवियत यूनियन सिर्फ एक विक्रेता (Seller) नहीं है, बल्कि एक सच्चा और भरोसेमंद सामरिक साथी (Strategic Partner) है.

अमेरिका फ्लीट को रूस ने रोका

1971 का वो मुश्किल वक़्त, जब भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर था. बांग्लादेश की आज़ादी की जंग चल रही थी. उस समय, अमेरिका और उसके दोस्त खुलेआम पाकिस्तान का साथ दे रहे थे. अमेरिका का सातवां बेड़ा (Seventh Fleet) भारत को डराने के लिए बंगाल की खाड़ी की तरफ बढ़ रहा था. पूरी दुनिया की नजरें इस पर टिकी थीं कि आखिर होगा क्या.

वो सस्पेंस का माहौल था. भारत को लगने लगा था कि वो अकेला पड़ गया है. लेकिन तभी सोवियत संघ ने अपनी दोस्ती का हाथ और कसकर थाम लिया. सोवियत यूनियन ने एक बहुत बड़ा राजनीतिक रिस्क लेते हुए अपने जंगी जहाजों को भारतीय सीमा के पास तैनात कर दिया.

सोवियत संघ का ये कदम भारत के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं था. अमेरिकी बेड़े को पीछे हटना पड़ा. इस घटना ने भारत के लोगों के दिल में सोवियत संघ के लिए एक अटूट भरोसा और सम्मान पैदा कर दिया. दुनिया ने देख लिया कि जब असली ज़रूरत पड़ी, तो कौन-सा देश बिना किसी शर्त के भारत के साथ खड़ा रहा. 1971 की वो जीत सिर्फ सेना की नहीं थी, बल्कि इस गहरी दोस्ती की भी थी.

सोवियत संघ टूटा, मगर भारत से दोस्ती नहीं

1991 में सोवियत संघ टूट गया. उसकी जगह रूस नाम का नया देश बना. एक वक्त लगा कि क्या भारत-सोवियत की दोस्ती टूट जाएगी? क्या अब रूस भी पश्चिमी देशों की राह पर चल पड़ेगा? दोनों के रिश्तों के बीच ये एक नाजुक मोड़ था. भारत की सेना के पास उस वक्त T-72 टैंकों से लेकर सुखोई फाइटर जेट्स तक सब सोवियत मूल का था. अगर स्पेयर पार्ट्स और मेंटेनेंस मिलना बंद हो जाता, तो हमारी सेना की 60-70 फीसदी ताकत एक झटके में खो देती.

लेकिन रूस ने इस दोस्ती की विरासत को कायम रखा. वो पुरानी दोस्ती, जो वक़्त के साथ भाईचारे में बदल चुकी थी, टूटी नहीं. रूस ने वादा निभाया और स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई जारी रखी. बल्कि, रूस तो अब और ज़्यादा एडवांस्ड हथियार देने को तैयार हो गया.

ये सिलसिला 1960 के दशक से आज तक बदस्तूर जारी है. दोनों देशों के बीच हुए कुछ सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण डील्स ने भारत की रक्षा को एक नई पहचान दी-

1980 का दशक: भारत ने रूस से मिग-29 फाइटर जेट्स और T-72 टैंकों का एक बड़ा जखीरा खरीदा. 1990 का दशक: दोनों देशों ने मिलकर ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल प्रोग्राम की नींव रखी. ये मिसाइल आज दोनों देशों की सामरिक ताकत का प्रतीक है. 2004: भारत ने रूस से एडमिरल गोर्शकोव जहाज खरीदा, जिसे एक नए एयरक्राफ्ट कैरियर के रूप में तैयार किया गया और INS विक्रमादित्य नाम दिया गया. 2010 के बाद: रूस ने भारत को सबसे एडवांस्ड T-90 भीष्म टैंक बेचे, और आज ये भारतीय सेना की रीढ़ हैं. सबसे बड़ी और अहम डील हुई S-400 ट्रायम्फ एयर डिफेंस मिसाइल सिस्टम की. 2018 में हुए इस सौदे पर अमेरिका ने दबाव भी बनाया, लेकिन भारत ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए 5.4 अरब डॉलर से ज़्यादा की ये डील पूरी की. S-400 आज भारत की हवाई सुरक्षा की सबसे मजबूत ढाल है, जो दुश्मन के हवाई जहाजों को 400 किलोमीटर दूर तक मार गिराने की ताक़त रखता है. परमाणु पनडुब्बी: रूस ने भारत को चक्र क्लास की परमाणु पनडुब्बियां पट्टे पर दीं, जो भारत की समुद्री ताकत के लिए एक बहुत बड़ा कदम था. ये दर्शाता है कि रूस सबसे संवेदनशील और आधुनिक तकनीक भी भारत के साथ साझा करने को तैयार है.

आज कहां है ये दोस्ती और कितना है कारोबार

आज की तारीख में भी भारत और रूस के बीच का रक्षा कारोबार (Defense Trade) मजबूत बना हुआ है. पिछले पांच सालों में, भारत ने रूस से अरबों डॉलर के हथियार खरीदे हैं, जिसमें S-400 जैसी एडवांस्ड चीजें शामिल हैं.

दोनों देशों के बीच सालाना 2-3 अरब डॉलर (लगभग 16,000-24,000 करोड़ रुपये) का रक्षा व्यापार होता है, जो भारत के कुल हथियार इम्पोर्ट का एक बड़ा हिस्सा है. आज भारतीय सेना के पास जो कुछ भी है, उसका एक बहुत बड़ा हिस्सा रशिया से है, जिसमें सुखोई-30MKI फाइटर जेट्स, मिग-29, T-90 टैंक, INS विक्रमादित्य और S-400 मिसाइल शामिल हैं. यह हिस्सेदारी आज भी 60-70 फीसदी तक है.

भारत ने भी दिया है रूस का पूरा साथ

जब रूस और यूक्रेन के बीच जंग 24 फरवरी 2022 को शुरू हुई, तो अमेरिका और यूरोप ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए और पूरी दुनिया से रूसी तेल खरीदना बंद करने को कहा. भारत पर भी जबरदस्त राजनयिक दबाव बनाया गया, लेकिन भारत ने किसी की नहीं सुनी. भारत ने रूस से पहले के मुकाबले कई गुना ज्यादा कच्चा तेल खरीदा. FY 2021-22 में रूस भारत के कुल क्रूड ऑयल इंपोर्ट का महज 2 फीसदी हिस्सा था (कुल 4.2 मिलियन बैरल प्रति दिन), और वैल्यू 2.5 बिलियन डॉलर से कम थी. लेकिन युद्ध के बाद FY 2022-23 में यह शेयर 21.6 फीसदी हो गया, वॉल्यूम 50.85 मिलियन मेट्रिक टन (MMT) पहुंचा, और वैल्यू 31 बिलियन डॉलर से ज्यादा (13 गुना बढ़ोतरी) हो गई.

FY 2023-24 तक वॉल्यूम 83.02 MMT हो गया (शेयर 40%), और कैलेंडर ईयर 2024 में वैल्यू 52.73 बिलियन डॉलर रही. भारत रातों-रात रूस का सबसे बड़ा तेल आयातक बन गया. 2023 में भारत ने रूस के क्रूड एक्सपोर्ट का 36% हिस्सा ले लिया. FY 2024-25 में भी ट्रेंड जारी रहा. अक्टूबर 2025 में अकेले 1.48 मिलियन बैरल प्रति दिन (bpd) इंपोर्ट हुआ है.

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