भारत में मुगल और अंग्रेज जब आए तो वो यहां कैसे नहाते थे, सुबह या शाम को

3 weeks ago

ब्रिटेन और सेंट्रल एशिया से मुगल और अंग्रेज जब भारत आए तो ये देश उनके लिए नया था. वहां उनके नहाने के तौरतरीके अलग थे लेकिन भारत आते ही उनको यहां के तौरतरीकों से एडजस्ट करना पड़ा. ये तो उत्सुकता की बात जरूर है कि मुगल और अंग्रेज जब भारत आए तो वो कैसे नहाते थे. उनके नहाने का समय सुबह था या शाम को

तब के ग्रंथों और किताबों में दोनों समुदायों की नहाने की आदतों के बारे में काफी कुछ मिलता है. कुछ जानकारी उस समय भारत आने वाले विदेशी यात्रियों ने अपने संस्मरण में लिखीं हैं.

मुगलों ने भारत में 16वीं से 19वीं सदी तक शासन किया. उनकी नहाने की आदतें इस्लामी परंपराओं, फारसी संस्कृति और भारतीय जलवायु से प्रभावित थीं. मुगलों को भारत में आने पर यहां की नहाने के तौरतरीके थोड़ा अजीब लगे, क्योंकि तब भारत में लोग आमतौर पर नदियों, तालाबों और कुओं के पास सार्वजनिक तौर पर नहाते थे.

मुगलों ने हमाम बनवाए

मुगल शासक और मुगल अमीर वर्ग ने अपने लिए यहां खास हमाम बनवाए. वो उसी में नहाते थे. ये सामूहिक स्नानघर फारसी और तुर्की परंपराओं से प्रेरित थे, जहां गर्म पानी, भाप और मालिश का उपयोग होता था. दिल्ली के लाल किले और आगरा के किले में हमाम के अवशेष आज भी देखे जा सकते हैं. इस नहाने के पानी में सुगंधित तेलों, फूलों और जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता था. उसको पानी में मिलाया जाता था. ये हमाम अक्सर शाही महलों, बागों, सरायों में बनाए जाते थे. हमामों में अलग-अलग कमरे होते थे, जिसमें ठंडा स्नान, गुनगुना या गर्म स्नान और भाप स्नान की व्यवस्था होती थी.

लाल किले में मुगल बादशाहों का प्राचीन हम्माम, जिसकी खूबसूरती देखते ही बनती है

साबुन का उपयोग उस समय कम था. इसकी बजाय हल्दी, चंदन और बेसन से बनने वाले उबटन मिश्रण या प्राकृतिक सामग्री जैसे रीठा और शिकाकाई का इस्तेमाल होता था. मुगल स्वच्छता पर बहुत ध्यान देते थे. नहाने के बाद इत्र (अत्तर) और सुगंधित तेलों का उपयोग आम था, खासकर शाही परिवार और कुलीन वर्ग में.

वो सुबह जल्दी नहाते थे

मुगल आमतौर पर सुबह जल्दी नहाते थे. क्योंकि इस्लामी परंपराओं में नमाज़ से पहले स्वच्छता महत्वपूर्ण मानी जाती थी. फज्र यानि सुबह की नमाज से पहले नहाना आम बात थी.

शाही परिवार और अमीर लोग दिन में दो बार नहा सकते थे -सुबह और दोपहर में, खासकर गर्मियों में, क्योंकि भारत की गर्म जलवायु में पसीना और धूल आम थी. मुगल अपनी फारसी और मध्य एशियाई परंपराओं को भारत लाए, लेकिन स्थानीय भारतीय रीति-रिवाजों को भी अपनाया. तब गंगा नदी में स्नान को पवित्र माना जाता था. कई मुगल शासक भी गंगा पानी मंगाकर स्नान करने लगे.

गंगा के पानी से नहाने वाले मुगल शासक

जहांगीर के दरबार में लिखी गई “जहांगीरनामा” (Tuzuk-i-Jahangiri) में उल्लेख है कि उसे गंगा के पानी की विशेष शुद्धता पर भरोसा था. वह अपने दरबार और यात्रा के लिए गंगा का पानी मंगवाता था. उसे बोतलों और बड़े चांदी और तांबे के बर्तनों में भरकर लाहौर, आगरा और काबुल तक पहुंचाया जाता था. वह इस पानी को पीने के साथ स्नान के लिए भी इस्तेमाल करता था.

लाहौर पर मुगलों का शाही हम्माम (फाइल फोटो)

शाहजहां भी गंगा जल के “पवित्र और हल्के” गुणों पर विश्वास करता था. दरबार की परंपरा बन गई थी कि “गंगाजल” को स्नान और शाही रसोई दोनों के लिए लाया जाए. फ्रांसीसी यात्री फ्रांस्वा बर्नियर ने लिखा है कि गंगा का पानी दिल्ली और आगरा में शाही उपयोग के लिए विशेष रूप से पहुंचाया जाता था. औरंगज़ेब ने भी इस परंपरा को जारी रखा. कई फारसी दस्तावेज़ों में दर्ज है कि उसकी सेनाओं के साथ-साथ “गंगाजल लाने वाले विशेष पानी-बरदार होते थे.

मुग़ल शासक बाबर ने “ठंडे स्नान” को लाभदायक माना, क्योंकि भारत में गर्मी, धूल, गर्म हवाएं आदि ज्यादा होती थीं. भोपाल का हमाम ए कादिमी आज भी मालिश और तेल से स्नान आदि की परंपरा निभाता है.

अंग्रेज टब में नहाना पसंद करते थे

अंग्रेज 17वीं सदी से भारत में आए. पहले व्यापारी के रूप में ईस्ट इंडिया कंपनी के सौदागर बनकर. फिर ये कंपनी अपना प्रभाव बढ़ाने लगी. अपने व्यापार की सुरक्षा की आड़े में उसने सेनाएं खड़ीं की. फिर जमीनों को खरीदना और जीतना शुरू किया.फिर वो इस देश के ही औपनिवेशिक शासक बन गए. उनकी नहाने की आदतें यूरोपीय संस्कृति और भारत की जलवायु से प्रभावित थीं.

अंग्रेजी अभिजात वर्ग और अधिकारी टब में नहाना पसंद करते थे. नौकर गर्म पानी से भरे टब तैयार करते थे, जिनमें अक्सर साबुन और सुगंधित तेल मिलाए जाते थे. यह प्रथा यूरोप से आई थी, जहां टब स्नान अमीरों के बीच लोकप्रिय था.

अंग्रेज अपने टायलेट के सामान ब्रिटेन से ही लेकर यहां आए. यहां उसे अपने बंगलों में फिट कराया. (फाइल फोटो)

सामान्य अंग्रेज सैनिक या निम्न वर्ग के लोग नदियों, झीलों या कुओं में नहाते थे. हालांकि भारत की नदियों में नहाने को लेकर अंग्रेज शुरू में संकोच करते थे, क्योंकि वे स्थानीय जल स्रोतों को “अस्वच्छ” मानते थे. बाद में वो इसके आदी हो गए.

अंग्रेज ही नहाने के लिए साबुन लेकर आए

अंग्रेजों ने साबुन को भारत में लोकप्रिय बनाया. 19 सदी में आयातित साबुन, जैसे पियर्स या लाइफबॉय धीरे-धीरे उपलब्ध होने लगे. वैसे अंग्रेज सैनिकों और यात्रियों के लिए “पोर्टेबल टब” या “कैंप स्नान” का उपयोग होता था, जहां पानी डालकर स्नान किया जाता था.

आमतौर पर सुबह स्नान

अंग्रेज आमतौर पर सुबह नहाते थे, क्योंकि यह उनकी यूरोपीय दिनचर्या का हिस्सा था. गर्मियों में भारत की तपती गर्मी के कारण, वे दोपहर या शाम को भी नहाया करते थे. आमतौर पर वो शाम को नहीं आते थे. भारतीय आबोहवा में वह सुबह या दोपहर में ही नहाते थे. औपनिवेशिक अधिकारी और उनके परिवार दिन में एक बार नहाने को काफी मानते थे. भारत के धूल और पसीने के कारण कई बार उन्हें दिन में दो बार नहाना पड़ता था.

रविवार को सुबह नहाने की प्रथा विशेष रूप से प्रचलित थी, क्योंकि यह ईसाई परंपराओं में स्वच्छता और चर्च जाने से पहले की तैयारी का हिस्सा था. वैसे अंग्रेज बेशक भारतीयों के नदी स्नान को “अजीब” मानते थे, लेकिन समय के साथ उनमें से भी कई ने स्थानीय तरीकों को अपना लिया. बहुत से अंग्रेज गर्मियों में नदियों में जाकर स्नान करते थे. 19वीं सदी के अंत तक अंग्रेजों ने भारत में आधुनिक स्नानघरों की शुरुआत की, खासकर कोलकाता, मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में.

अंग्रेजों ने शहरों में पाइप-लाइन जल आपूर्ति, वाटर क्लोजेट्स, सीवर लाइन्स आदि जैसी सुविधाएं विकसित कीं. ये सुविधाएं मुख्य तौर पर अंग्रेजों, उच्च अधिकारी वर्ग और भारतीय अभिजात वर्ग के लिए बनीं. आम जनता तक ये सुविधाएं बहुत देर से पहुंची. रेलवे स्टेशनों, डाक घरों, सरकारी कार्यालयों आदि में अंग्रेजों ने आधुनिक बाथरूम और वॉशरूम की व्यवस्था की गई.

स्रोत

यह जानकारी ऐतिहासिक ग्रंथों, जैसे आइन-ए-अकबरी (मुगल काल के लिए), बर्नियर और टैवर्नियर जैसे यात्रियों के वृत्तांत, और अंग्रेजी औपनिवेशिक लेखों पर आधारित है.

Tuzuk-i-Jahangiri (जहाँगीरनामा) – जहांगीर का आत्मवृत्तांत, जिसमें गंगा जल का उल्लेख है.
Bernier, François. Travels in the Mogul Empire (1656-1668). London, 1891 edition – इसमें गंगा जल को “सर्वश्रेष्ठ और पवित्र” मानकर शाहजहां और औरंगज़ेब द्वारा उपयोग का वर्णन है.
Niccolao Manucci, Storia do Mogor (1653–1708) – इसमें मुग़लों द्वारा गंगाजल का दूर-दराज़ तक मंगवाने की चर्चा है.

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