Last Updated:September 23, 2025, 13:16 IST
भारत अंतरिक्ष में भी सुरक्षा के लिए कदम उठा रहा है, जिसके लिए 'बॉडीगार्ड' सैटेलाइट' बनाया जा रहा है. इसके अलावा ये जान लेतें है कि कितने प्रकार के सैटेलाइट्स होते हैं.

जल, थल और वायु में सुरक्षा के बाद अब भारत अंतरिक्ष में भी सुरक्षा के लिए कदम उठाने जा रहा है. भारत अब अंतरिक्ष में मौजूद संभावित खतरों से निपटने के लिए तैयारी तेज कर दी है. इसलिए भारत अब अंतरिक्ष में उपस्थिति अपनी सैटेलाइट को सुरक्षा देने के लिए एक ‘बॉडीगार्ड सैटेलाइट’ बनाने जा रहा है. यह सैटेलाइट उन सैटेलाइट को सुरक्षा प्रदान करेगी जो इस समय अलग-अलग क्षेत्र में सेवाएं दे रही है.
भारतीय अंतरिक्ष स्थिति आकलन रिपोर्ट (ISSAR) के अनुसार, 2024 के अंत तक भारत के पास कुल 53 सरकारी सैटेलाइट हैं. इनमें से 22 लॉअर अर्थ ऑर्बिटल (LEO) में और 31 जियोसिंक्रोनस अर्थ आर्बिटल(GEO) हैं. यह सैटेलाइट्स युद्ध जैसी स्थिति में सहायता देते, जैसा कि हमने ऑपरेशन सिंदूर में देखा है. इस दौरान इन सैटेलाइट्स ने अहम भूमिका निभाई थी, ऐसे में भारत इनकी सुरक्षा पुख्ता करना चाहता है. इसलिए ये कदम उठाए जा रहे हैं. इसके इलावा जान लें कि सैटेलाइट्स कितने प्रकार के होते हैं.
कितने प्रकार के होते हैं सैटेलाइट्स
वैसे तो सैटेलाइट्स को उनकी कार्य या प्रयोग के आधार पर बांटा जाता है. लेकिन अब इसरों के अनुसार इनके उपयोग को लेकर जान लेते हैं कि सैटेलाइट कितने प्रकार के होते हैं.
कम्युनिकेशन सैटेलाइट
ये सैटेलाइट टेलीकम्युनिकेशन सेवाओं के लिए उपयोग किए जाते हैं, जैसे टेलीविजन, इंटरनेट सेवाएं, टेलीफोन और डेटा ट्रांसफर के लिए इनका इस्तेमाल होता है। ये सिग्नल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक रिले करते हैं और इनसे वैश्विक कनेक्टिविटी संभव हो सकती है। ISRO के INSAT और GSAT सीरीज़ इनके उदाहरण हैं. जो आवाज, डेटा और प्रसारण सेवाएं प्रदान करते हैं। ये भू-स्थिर कक्षा (GEO) में स्थित होते हैं और तीन प्रकार की सेवाएं प्रदान करते हैं, जैसे टेलीकम्युनिकेशन, टेलीकास्ट और डेटा ट्रांसफर ।
नेविगेशन सैटेलाइट
ये सैटेलाइट जीपीएस जैसी सेवाएं के लिए इस्तेमाल होते हैं, जो वाहनों, जहाजों, और विमानों को उनकी सटीक स्थिति बताते हैं। वे रेडियो सिग्नल भेजते हैं, जिन्हें रिसीवर दूरी मापकर स्थान निर्धारित करते हैं। भारत का IRNSS या NavIC इसका प्रमुख उदाहरण है, जो ISRO द्वारा तैयार किये गए हैं। ये मध्यम पृथ्वी कक्षा (MEO) में कार्यरत होते हैं।
अर्थ ऑबजर्वर सैटेलाइट
ये सैटेलाइट पृथ्वी की सतह की ऑबजर्वेशन करते हैं, जिसमें खेत, जल संसाधन, अर्बन प्लानिंग, ग्रामीण विकास, पर्यावरण और आपदा प्रबंधन शामिल हैं। वे हाई-रिज़ॉल्यूशन इमेज कैप्चर करते हैं। ISRO के IRS (Indian Remote Sensing) और Cartosat सीरीज इसमें शामिल हैं.
मौसम सैटेलाइट
ये सैटेलाइट मौसम पैटर्न, चक्रवात, जलवायु परिवर्तन और वायुमंडलीय स्थितियों की निगरानी करते हैं। वे बादल कवर, तापमान, वायु दाब, वर्षा और रासायनिक संरचना मापते हैं। ISRO के INSAT-3D जैसे सैटेलाइट मौसम पूर्वानुमान के लिए उपयोग होते हैं। ये भू-स्थिर या ध्रुवीय कक्षा में स्थित होते हैं और खोज एवं बचाव प्रणालियों के रूप में भी कार्य करते हैं।
वैज्ञानिक अनुसंधान सैटेलाइट
ये सैटेलाइट अंतरिक्ष अनुसंधान, खगोल विज्ञान और वायुमंडलीय अध्ययन के लिए उपयोग किए जाते हैं। वे दूर की आकाशगंगाओं की इमेज कैप्चर करते हैं और ग्रहों, क्षुद्रग्रहों, धूमकेतुओं की स्टडी करते हैं। ISRO के सैटेलाइट जैसे Aryabhata या चंद्रयान मिशन इनका हिस्सा हैं।
सैन्य सैटेलाइट
ये सैटेलाइट रक्षा, जासूसी और खुफिया जानकारी इकठ्ठा करने के लिए कारगर होते हैं, जैसे दुश्मन गतिविधियों की निगरानी करना, मिसाइल लॉन्च का पता लगाना इसमें अहम हैं। NRO के सैटेलाइट इसी के काम आते हैं।
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First Published :
September 23, 2025, 12:46 IST
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