भारत-नेपाल के बीच क्या हैं विवाद? ओली खूब उछलते थे, सुशीला कैसे करेंगी हैंडल

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Last Updated:September 15, 2025, 10:28 IST

Nepal PM Sushila Karki India News: भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी जैसे कई विवाद हैं. पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली इन मुद्दों को भारत के खिलाफ हवा देते रहे थे. हालांकि Gen-Z आंदोलन के बाद उनकी सत्ता उखड़ चुकी है और अब सभी की नजर नई प्रधानमंत्री सुशील कार्की पर टिकी है.

भारत-नेपाल के बीच क्या हैं विवाद? ओली खूब उछलते थे, सुशीला कैसे करेंगी हैंडलप्रधानमंत्री सुशीला कार्की भारत के साथ रिश्तों को कैसे आगे बढ़ाती हैं? इस पर सबकी नजर...

नेपाल में जेन-ज़ी (Gen-Z Protest) आंदोलन के बाद अब वहां नई प्रधानमंत्री सुशीला कार्की ने देश की बागडोर संभाल ली है. नेपाल में भड़की हिंसा पर भारत में भी कई लोगों की नजर टिकी थी. भारत और नेपाल के बीच सदियों से बेटी-रोटी का रिश्ता रहा है, लेकिन इसके बावजूद दोनों देशों के बीच समय-समय पर सीमाओं को लेकर विवाद उठते रहे हैं.

सबसे बड़ा और पुराना विवाद लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी इलाकों से जुड़ा है, जिसे लेकर नेपाल की संसद ने 2020 में नया राजनीतिक नक्शा जारी किया था. उस वक्त के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस मुद्दे को लेकर काफी आक्रामक रुख अपनाया था. भारत की आपत्ति के बावजूद ओली सरकार ने संसद से संशोधन पारित कर नए नक्शे को आधिकारिक मान्यता दी, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया.

क्या है लिपुलेख विवाद?

लिपुलेख दर्रा भारत, नेपाल और चीन की त्रि-जंक्शन सीमा पर स्थित है. यह इलाका सामरिक दृष्टि से बहुत अहम है, क्योंकि यह भारत को कैलाश मानसरोवर और तिब्बत से जोड़ता है. भारत का कहना है कि काली नदी के पूर्वी किनारे से नेपाल की सीमा शुरू होती है, जबकि नेपाल का दावा है कि काली नदी का उद्गम लिम्पियाधुरा से होता है, जिसके हिसाब से लिपुलेख और कालापानी उसके हिस्से में आते हैं.

भारत ने 2015 में चीन के साथ मिलकर लिपुलेख के जरिये कैलाश मानसरोवर यात्रा को बढ़ावा देने का समझौता किया था. नेपाल को इस बात पर एतराज हुआ और तब से यह विवाद फिर से उभर आया. 2019 में भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के नए नक्शे जारी किए, जिसमें कालापानी क्षेत्र को भारतीय सीमा में दिखाया गया. इसी के बाद ओली सरकार ने नया नक्शा जारी कर विवाद को और गहरा दिया.

काली नदी और सीमा का पेच

भारत-नेपाल की सीमा 1,800 किलोमीटर लंबी है और ज्यादातर जगहों पर स्पष्ट रूप से तय है. लेकिन काली नदी के उद्गम को लेकर दोनों देशों में मतभेद है. 1816 की सुगौली संधि में कहा गया था कि काली नदी के पश्चिम का इलाका भारत (तब ब्रिटिश शासन) का होगा और पूर्व का इलाका नेपाल का. विवाद इसी बात से है कि काली नदी का वास्तविक उद्गम कहां है. भारत इसे एक धारा मानता है जबकि नेपाल लिम्पियाधुरा को इसका स्रोत बताता है. यही कारण है कि कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा तीनों क्षेत्र विवाद की जड़ बनते हैं.

केपी ओली का आक्रामक रुख

पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली के कार्यकाल में यह विवाद चरम पर पहुंच गया था. उन्होंने इसे नेपाल की ‘राष्ट्रीय अस्मिता’ से जोड़ दिया था. नेपाली संसद में सर्वसम्मति से नया नक्शा पास कर उन्होंने भारत को सीधी चुनौती दी. यहां तक कि ओली ने कई बार भारत पर ‘नेपाली भूभाग कब्जाने’ का आरोप लगाया. यह रुख नेपाल में राष्ट्रवाद को भुनाने की कोशिश के रूप में भी देखा गया. लेकिन इस आक्रामकता का असर यह हुआ कि भारत-नेपाल के पारंपरिक रिश्तों में खटास आ गई और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध ठंडे पड़ गए.

सुशीला कार्की पर टिकी नजर

अब जब नेपाल की बागडोर प्रधानमंत्री सुशीला कार्की के हाथ में आई है, तो चुनौती उनके सामने है कि वे इस विवाद को कैसे संभालती हैं. कार्की नेपाल की पहली महिला पीएम बनी हैं और उनकी छवि संतुलित और संस्थागत सुधारों की समर्थक नेता के रूप में रही है. उम्मीद की जा रही है कि कार्की, ओली की तरह टकराव की राह पर न जाकर संवाद और कूटनीति पर जोर देंगी.

कार्की के सामने एक ओर नेपाली जनता की भावनाएं हैं, जो अपने क्षेत्रीय अधिकारों को लेकर संवेदनशील रहती है, वहीं दूसरी ओर भारत के साथ मजबूत संबंधों की जरूरत भी है, क्योंकि नेपाल की अर्थव्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता में भारत की भूमिका अहम है. यही कारण है कि कार्की शायद विवादित नक्शे पर फिलहाल कोई आक्रामक कदम न उठाएं, बल्कि संयुक्त आयोग, द्विपक्षीय बातचीत और तकनीकी सर्वेक्षण जैसी प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाएं.

भारत के लिए कितना अहम?

भारत के लिए भी यह इलाका बेहद महत्वपूर्ण है. लिपुलेख मार्ग चीन की सीमा से जुड़ता है और सामरिक दृष्टि से उत्तरी सीमाओं की सुरक्षा के लिए अहम है. यही कारण है कि भारत इसे अपने क्षेत्र का हिस्सा मानते हुए यहां सड़क और सैन्य ढांचे का विकास कर चुका है. भारत ने हमेशा कहा है कि नेपाल के साथ सीमा विवाद को आपसी बातचीत से सुलझाया जाएगा और किसी तीसरे पक्ष की दखल की जरूरत नहीं है.

सुशीला कार्की के सामने सबसे बड़ी परीक्षा यही होगी कि वे नेपाली राष्ट्रवाद और व्यावहारिक कूटनीति के बीच संतुलन बनाए रखें. अगर वे संवाद और पारदर्शिता की राह पर चलती हैं तो संभव है कि भारत-नेपाल संबंधों में नई ऊष्मा आए. वरना ओली की तरह केवल उग्र राष्ट्रवाद पर जोर देने से रिश्तों में खटास और गहराएगी.

कुल मिलाकर, लिपुलेख और काली नदी का विवाद सिर्फ नक्शे की लकीरों का मामला नहीं है, बल्कि यह नेपाल के भीतर राजनीति का भी बड़ा मुद्दा है. अब देखना होगा कि सुशीला कार्की इस संवेदनशील मसले को कैसे संभालती हैं? क्या वे ओली की तरह उछलेंगी या फिर संवाद और समझदारी की नई मिसाल कायम करेंगी?

Saad Omar

An accomplished digital Journalist with more than 13 years of experience in Journalism. Done Post Graduate in Journalism from Indian Institute of Mass Comunication, Delhi. After Working with PTI, NDTV and Aaj T...और पढ़ें

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Location :

New Delhi,New Delhi,Delhi

First Published :

September 15, 2025, 10:28 IST

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