Last Updated:November 04, 2025, 11:00 IST
Rare Earth Option : भारत सरकार ने रेयर अर्थ के विकल्प की तलाश तेज कर दी है और इसके लिए 50 हजार करोड़ के फंड के इस्तेमाल की भी छूट दे दी है. अभी रेयर अर्थ का 90 फीसदी हिस्सा चीन के पास है.
सरकार ने रेयर अर्थ मेटल के विकल्प की तलाश शुरू कर दी है. नई दिल्ली. भारत आज भी कई चीजों के लिए पूरी तरह चीन पर निर्भर है. सबसे मुश्किल हालात तो तब पैदा हो गए जब पिछले दिनों चीन ने रेयर अर्थ जैसे जरूरी धातु की सप्लाई बंद कर दी थी. इसका इस्तेमाल चिप बनाने और ऑटो इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा किया जाता है. खासकर ई-वाहनों को बनाने में रेयर अर्थ का इस्तेमाल सबसे महत्वपूर्ण होता है. चीन के दबाव में आकर भारत को अपने कदम भी पीछे खींचने पड़े थे. लेकिन, अब सरकार ने इसका तोड़ निकालने की तैयारी शुरू कर दी है. सरकार ने ऑटो इंडस्ट्री से कहा है कि वह ऐसे रिसर्च पर जोर दे जिससे रेयर अर्थ जैसी दुर्लभ धातुओं पर निर्भरता को कम किया जा सके.
मामले से जुड़े दो अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने चीन के प्रभुत्व से छुटकारा पाने के लिए यह योजना बनाई है. भारी उद्योग मंत्रालय ने इस रणनीति को अमलीजामा पहनाने के लिए 50 हजार करोड़ रुपये के फंड का इस्तेमाल करने की भी छूट दे दी है. यह फंड राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन के तहत जुटाई गई है. रेयर अर्थ पर अभी 90 फीसदी प्रभुत्व चीन का ही है और वह भारत सहित दुनियाभर के देशों को इसके जरिये दबाव में लाने की कोशिश करता है. ई-वाहनों के बढ़ते इस्तेमाल की वजह से रेयर अर्थ की डिमांड भी लगातार बढ़ती जा रही है.
रिसर्च में कितना है निवेश
भारत सरकार और यूनेस्को के आंकड़ों के अनुसार, भारत का R&D निवेश मौजूदा GDP का 0.6-0.7% है, जबकि अमेरिका में यह 3.5% और चीन में 2.4% है. राष्ट्रीय अनुसंधान फंड का लक्ष्य अगले तीन साल में इस अंतर को पाटने का है. इस फंड में 14 हजार करोड़ रुपये केंद्र सरकार ने डाले हैं, जबकि शेष राशि, सरकारी और कंपनियों, संगठनों और परोपकारी संस्थाओं से जुटाई गई है. सरकार ने कहा है कि रेयर अर्थ का विकल्प तलाशने के रिसर्च के लिए जल्द ही 7,300 करोड़ रुपये की राशि जारी की जाएगी.
अप्रैल के संकट से लिया सबक
इसी साल अप्रैल में चीन ने रेयर अर्थ की सप्लाई रोक दी थी, जिससे कई उद्योग सेक्टर्स में घबराहट फैल गई थी. इस रेयर अर्थ का सबसे ज्यादा उपयोग रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स, नवीकरणीय ऊर्जा और ऑटोमोबाइल जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में किया जाता है. जैसे-जैसे भंडार घटता गया भारत के ऑटोमोबाइल निर्माताओं जैसे ओला इलेक्ट्रिक लिमिटेड और टीवीएस मोटर कंपनियों ने रेयर अर्थ से हटकर दुर्लभ चुंबकीय विकल्पों पर दांव लगाया. हालांकि, बाद में चीन ने 4 भारतीय कंपनियों को दुर्लभ पृथ्वी चुंबकों के आयात की अनुमति दे दी.
क्या होगा इससे फायदा
जैसा कि पहले ही जाहिर हो चुका है कि दुनिया का 90 फीसदी रेयर अर्थ चीन के पास है तो वह इसके निर्यात के लिए दूसरे देशों को अपनी शर्तों पर झुका सकता है. भारत ऐसी किसी भी स्थिति से बचने के लिए अभी से तैयारी करना चाहता है. यही वजह है कि उसने रेयर अर्थ का विकल्प तलाशना शुरू कर दिया है. कुछ ऐसा जो बिना इस मेटल के ही ऑटो और सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री को आगे बढ़ा सके. इसका इस्तेमाल सीमित कर सके. फिलहाल देखना यह है कि शोध की यह दिशा किस तरह से शुरू होगी और कैसे आगे बढ़ेगी.
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...और पढ़ें
प्रमोद कुमार तिवारी को शेयर बाजार, इन्वेस्टमेंट टिप्स, टैक्स और पर्सनल फाइनेंस कवर करना पसंद है. जटिल विषयों को बड़ी सहजता से समझाते हैं. अखबारों में पर्सनल फाइनेंस पर दर्जनों कॉलम भी लिख चुके हैं. पत्रकारि...
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
November 04, 2025, 11:00 IST

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