भारत को कॉपी करने चला था ये मुस्लिम मुल्क, 6 महीने में ही निकली हेकड़ी, हुआ फेल

3 hours ago

इंडोनेशिया की आबादी 28.5 करोड़ है, जो इसे  दक्षिण-पूर्व एशिया का सबसे बड़ा देश बनाता है. ये देश बच्चों में कुपोषण की समस्या से जूझ रहा है. इससे निपटने के लिए 2024 में राष्ट्रपति बने प्राबोवो सुबिअंतो ने भारत को देखते हुए यहां फ्री फूड प्रोग्राम शुरू किया. लेकिन ये योजना 6 महीने भी सही से नहीं चली.

यह इंडोनेशिया को अगले बीस साल में स्वर्णिम देश  बनाने की योजना का अहम हिस्सा था. लेकिन सात सौ द्वीपों पर आठ करोड़ बच्चों के तक ये सुविधा को पहुंचाना न सिर्फ मुश्किल और महंगा रहा बल्कि इस पर विवाद भी खूब हुए.  

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इंडोनेशिया में कुपोषण बड़ी समस्या

यहां का हर पांच में से एक बच्चा उम्र के हिसाब से कद में छोटा और हर 14 में से एक बच्चा कद के हिसाब से अंडरवेट है. इसका कारण सिर्फ पोषक आहार की कमी ही नहीं बल्कि पीने के साफ पानी की कमी भी है. 2022 यूनिसेफ की एक स्टडी के अनुसार, यहां के 70 प्रतिशत घरों में पीने के पानी में गटर के पानी के अंश मिले हैं.

गरीबी- कुपोषण खत्म करने का था वादा

अपने चुनाव प्रचार के दौरान प्राबोवो ने लोगों को लुभाने के लिए कई वादे किए थे. इसमें कुपोषण को जड़ से खत्म करना भी शामिल था. उन्होंने युवा माताओं और बच्चों को हफ्ते में पांच दिन, दिन में तीन बार मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने और गरीब तबके को आर्थिक सहायता का वादा किया था.

फेल हो रहा फ्री फूड प्रोग्राम

जूलिया लाउ सिंगापुर की आयसीज यूसुफ इशाक इंस्टीट्यूट में इंडोनेशिया अध्ययन विभाग की वरिष्ठ शोधकर्ता बताती हैं कि मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने की योजना 6 महीने से लागू है लेकिन केवल 50 लाख लोगों को ही मुफ्त भोजन दिया जा रहा है. सभी जरूरतमंद लोगों तक इस योजना को पहुंचाने के लिए देश के कुल बजट का दस प्रतिशत हिस्सा खर्च करना पड़ेगा. तभी 8 करोड़ लोगों तक मुफ्त खाना पहुंचाने का लक्ष्य पूरा हो सकता है.

भारत से इंडोनेशिया को और सीखने की जरूरत

इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने कार्यकाल के पहले साल में ही अपना प्रभाव दिखाने के लिए मिड डे मील को कॉपी करते हुए फ्री फूड प्रोग्राम शुरू किया था. लेकिन ये दांव उल्टा पड़ गया. कुछ बच्चे इसके कारण फूड पॉइजनिंग का भी शिकार हुए. यह दर्शाता है कि इंडोनेशिया को अभी भारत से और सीखने की जरूरत है.

मिड डे मील की सफलता का कारण

मिड डे मील जैसी योजनाएं रातों रात सफल नहीं हो सकती है. इसकी सफलता के लिए पहले ढांचागत समस्याओं को समझना जरूरी है. जिसके लिए भारत में  अधिक स्कूल बनाए गए, स्कूल के साथ लग कर रसोइयां बनायी गईं जहां बच्चों के लिए खाना पकाया जा सके. यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी, जिसके लिए बड़ी मात्रा में पैसों की जरूरत थी. 2001 में शुरू हुई इस योजना से आज कई सारे बच्चों को फायदा हो रहा है.

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