Digital Arrest: देश में डिजिटल अरेस्ट की घटनाएं सबसे ज्यादा कहां होती हैं? किस आयु वर्ग के पुरुष या महिला सबसे ज्यादा डिजिटल अरेस्ट का शिकार हो रहे हैं? भारतीय जांच एजेंसी डिजिटल अरेस्ट करने वालों पर कैसे नकेल कस रही है? क्या जिन लोगों के पास ब्लैक मनी या अवैध पैसा होता है, वही लोग सबसे ज्यादा डिजिटल अरेस्ट का शिकार होते हैं? क्या साइबर ठगों के निशाने पर धन कुबेर आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर्स और इंजीनियर्स सबसे ज्यादा होते हैं? डिजिटल अरेस्ट होने के बाद क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? डिजिटल अरेस्ट होने के बाद अगर किसी की मौत हो जाती है, तो किस कानून के तहत मामला दर्ज होगा? जानिए देश के जाने-माने साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल से डिजिटल अरेस्ट सहित अन्य प्रकार के साइबर फ्रॉड के बारे में राय.
डिजिटल अरेस्ट में साइबर फ्रॉड करने वाला शख्स किसी व्यक्ति को अरेस्ट करने का डर दिखा कर उसी के घर में कैद कर लेता है. बाद में वह साइबर फ्रॉड एक दिन, दो दिन नहीं महीनों डिजिटल अरेस्ट कर करोड़ों रुपये ठग लेता है. पैसों का ट्रांजेक्शन ऑनलाइन होता है, जिसमें बैंक की भूमिका की भी जांच के सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं. इस ठगी के शिकार अनपढ़ तो छोड़िए, आईएएस, आईपीएस, डॉक्टर, इंजीनियर्स के साथ-साथ बिल्डर्स और कारोबारी भी हो रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल साइबर फ्रॉड के शिकार होने वाले लोग किस आयु वर्ग के सबसे ज्यादा होते हैं? साइबर फ्रॉड के शिकार कौन-कौन लोग सबसे ज्यादा हो रहे हैं?
डिजिटल अरेस्ट से कैसे बचें?
डिटिजल अरेस्ट करने वाले कस्टम अधिकारी, पुलिस, सीबीआई या ईडी अधिकारी बनकर लोगों को वीडियो कॉल पर धमकाते हैं. वे लोग कहते हैं कि आपका नाम किसी सीरियस केस जैसे स्मगलिंग, मनी लॉड्रिंग, ह्यूमन ट्रैफिकिंग में शामिल है. कुछ मामलों में तो नकली पुलिस वाले लोगों को बताते हैं कि आपके नाम से ड्रग्स या नकली पासपोर्ट मिले हैं. वीडियो कॉल के जरिए ही स्कैमर्स लोगों को बरगलाते हैं कि ये केस दूसरे शहर में रजिस्टर है, इसलिए आपको जांच पूरी होने तक वीडियो कॉल पर ही रहना होगा. इसमें साइबर क्रिमिनल अक्सर एआई-जनरेटेड वॉयस या वीडियो तकनीक का इस्तेमाल करते हैं. वे भी ये भी कहते हैं कि अगर कॉल आप डिसकनेक्ट करेंगे तो आपको जेल में डाल देंगे. ऐसे में लोगों को सोचने आऔर समझने का समय नहीं मिलता है और वह उनके बहकावे में आकर मोटी रमक ट्रांसफर करते जाते हैं.
डिजिटल अरेस्ट करने वाले कौन होते हैं और उनके निशाने पर कौन-कौन लोग होते हैं? देश के सबसे बड़े साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल ने इस तरह समझाया.
सवाल- देश में डिजिटल अरेस्ट की घटना कहां सबसे ज्यादा होती है?
जवाब- पहले दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े महानगरों में होते थे. अब तो पूरे देश में हो रहे हैं.
सवाल- किस आयु वर्ग के महिला या पुरुष सबसे ज्यादा डिजिटल अरेस्ट के हो रहे हैं शिकार?
जवाब- नाबालिग औऱ अबोध बच्चों को छोड़ दीजिए तो हर आयु वर्ग के महिला और पुरुष जिनके हाथ में स्मार्ट फोन हैं, डिजिटल अरेस्ट हो रहे हैं.
सवाल- भारतीय जांच एजेंसियां और पुलिस डिजिटल अरेस्ट करने वालों पर कैसे नकेल कस रही है?
जवाब- भारत जांच एजेंसियां, आरबीआई और पुलिस लोगों को जागरूक कर रही है. अब तो डिजिटल अरेस्ट के शिकार लोगों का पैसों के ट्रेल को चेक कर कुछ केस तो सुलझाए भी गए हैं.
सवाल- जिन लोगों के पास ब्लैक मनी या अवैध पैसा रहता है, वे लोग सबसे ज्यादा डिजिटल अरेस्ट के शिकार होते हैं?
जवाब- कुछ हद तक यह बात सही लगती है. लेकिन अब ब्लैक मनी या अवैध पैसा रखने वालों से मेहनत से अर्जित पैसे अर्जित करने वाले भी पीड़ित बन रहे हैं.
सवाल-डिजिटल अरेस्ट होने के बाद क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
जवाब-आपको लगता है कि मैं डिजिटल अरेस्ट का शिकार हो गया हूं तो संदिग्ध कॉल और नंबर के बारे में तुरंत शिकायत करें. टोल फ्री नंबर, स्थानीय पुलिस या फिर साइबर क्राइम पोर्टल http://www.cybercrime.gov.in पर शिकायत करें. अगर हो सके तो टोल फ्री नंबर 1930 पर भी शिकायत दर्ज करा दें
सवाल-डिजिटल अरेस्ट होने से कैसे बचें?
जवाब- किसी अज्ञात नंबर, मैसेज या लिंक पर क्लिक नहीं करें. एटीएम में जाते समय पासवर्ड किसी को न बताएं औऱ न ही डालते समय कोई देख पाए. किसी भी तरह का व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें, कोई अगर आपको गिरफ्तार या किसी तरह का धमकी देता है तो उससे घबराए नहीं, किसी भी अननोन मैसेज या वीडियो कॉल न उठाएं.
डिजिटल अरेस्ट को लेकर कानून कितना सख्त?
देश के जाने-माने साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल कहते हैं, साइबर ठगी के मामलों में कानून की कमजोरियों के कारण अपराधियों पर लगाम लगाना मुश्किल हो रहा है. साइबर ठगी के मामले आइटी एक्ट की धारा 66 व 67 में दर्ज होते हैं जो स्पेशल एक्ट यानी विशेष कानून है. इस कानून में इतने पेंच हैं कि साइबर ठग आसानी से बाहर निकल जाते हैं. आईटी एक्ट जमानती और हल्की धारा है, जिसमें थाने से जमानत मिलने का प्रविधान है. इसे गैर-जमानती बनाने के लिए पुलिस को इस धारा के साथ धोखाधड़ी व अन्य धाराएं जोड़नी पड़ती हैं. साइबर लुटेरे पीड़ित से यूपीआई, आरटीजीएस या आइएमपीएस के जरिये पैसे ट्रांसफर कराते हैं. डिजिटल लेन-देन में पुलिस को जांच करने का पूरा समय मिलना चाहिए, लेकिन पुलिस को तय समय पर आरोप पत्र दायर करना होता है.
दुग्गल कहते हैं इस मामले की जांच जैसे-तैसे होती है. मजबूत साक्ष्यों के अभाव में आरोपी बरी हो जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट का दिशानिर्देश है कि सात साल से कम सजा के प्रविधान वाले मामलों में आरोपित को गिरफ्तार नहीं किया जाय. साइबर ठगी के मामलों में तीन साल तक की सजा का ही प्रविधान है. उसमें भी साक्ष्य नहीं मिल पाने के कारण ही देश में साइबर अपराधियों के मामले में सजा की दर महज दो से चार प्रतिशत ही है. ऐसे में सरकार को डिजिटल अरेस्ट या साइबर ठगी के मामले को लेकर सख्त कानून बनाना चाहिए.

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