Last Updated:December 25, 2025, 07:05 IST
Brahmos ER Version: सामरिक हालात को देखते हुए भारत कटिंग एज डिफेंस टेक्नोलॉजी पर लगातार काम कर रहा है. अल्ट्रा मॉडर्न फाइटर जेट, ड्रोन और मिसाइल सिस्टम को लगातार मजबूत करने के साथ उसे अपग्रेड किया जा रहा है. भारत की सीमा एक तरफ चीन तो दूसीर तरफ पाकिस्तान से लगती है, ऐसे में एक साथ दो मोर्चों पर जंग जैस हालात से निपटने की तैयारी करना अनिवार्य है. भारत उसकी तैयारियों में जुटा है.
Brahmos ER Version: ब्रह्मोस-ER की टेस्टिंग चल रही है, जिसके बाद इसकी रेंज 800 किलोमीटर तक हो जाएगी. (फोटो: Reuters)Brahmos ER Version: किसी भी देश के डिफेंस पावर की मजबूती को समझने और उसका आकलन करने के लिए मिसाइल सिस्टम के बारे में जानना जरूरी होता है. जिस देश के पास जितनी ताकतवर मिसाइल्स हैं, उसकी अटैकिंग क्षमता भी उतनी ही बेहतर मानी जाती है. भारत दुनिया के उन गिनेचुने देशों में शामिल है, जिसके पास अल्ट्रा मॉडर्न मिसाइल सिस्टम है. एक तरफ ब्रह्मोस जैसी अचूक क्रूज मिसाइल है तो दूसरी तरफ अग्नि-5 जैसी इंटरकॉन्टिनेंटल मिसाइल है, जो दुश्मन की मांद में घुसकर उसे नेस्तनाबूद कर सकती है. अग्नि-5 मिसाइल ऐसी ICBM है जो MIRV टेक्नोलॉजी से लैस और न्यूक्लियर वॉरहेड ले जाने में सक्षम है. मतलब यह मिसाइल तबाही का दूसरा नाम है. भारत के पास एक और ऐसी ही मिसाइल है, जिससे दुश्मन खौफ खाते हैं और जिसका डंका पूरी दुनिया में बज रहा है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान दुनिया ने उसका अचूक निशाना और प्रचंड प्राक्रम भी देखा. जी हां…बात ब्रह्मोस क्रूज मिसाइल की हो रही है. भारत और रूस ने मिलकर इसे डेवलप किया है. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पाकिस्तान ने इसकी प्रंडता देखी थी. ब्रह्मोस के वार से पाकिस्तान चारों खाने चित्त हो हो गया था और शांति की गुहार लगाने लगा था. अब वही ब्रह्मोस नए अवतार में सामने आने वाला है. भारतीय वैज्ञानियों के इसका रेंज इतना बढ़ा दिया है कि अब दिल्ली से एक बटन दबाते ही लाहौल और इस्लामाबाद के चीथड़े उड़ जाएंगे. ब्रह्मोस के नए अवतार को ब्रह्मोस- ER का नाम दिया गया है.
दरअसल, भारत अपनी सामरिक और सैन्य क्षमता को एक नए स्तर पर ले जाने की दिशा में बड़ा कदम उठाने जा रहा है. देश 2028 से लगभग 800 किलोमीटर मारक क्षमता वाली विस्तारित रेंज की ब्रह्मोस-ईआर (BrahMos-ER) सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को सेना में शामिल करने की योजना बना रहा है. इस समय इस मिसाइल के लंबी दूरी वाली फ्लाइट प्रोफाइल को परखने के लिए परीक्षण चल रहे हैं. ब्रह्मोस-ER कार्यक्रम को ब्रह्मोस मिसाइल परिवार का अगला बड़ा चरण माना जा रहा है, जो आर्मी, नेवी और एयरफोर्स तीनों के लिए भारत की लंबी दूरी की सटीक प्रहार क्षमता को काफी मजबूत करेगा. ब्रह्मोस एयरोस्पेस पहले ही 450 किलोमीटर रेंज वाले ब्रह्मोस मिसाइल के उत्पादन की शुरुआत कर चुका है. यह वर्जन शुरुआती 300 किलोमीटर से कम रेंज वाली मिसाइलों की तुलना में एक बड़ा सुधार था. अब ब्रह्मोस-ER के जरिए इसकी मारक क्षमता को लगभग दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया है. खास बात यह है कि रेंज बढ़ने के बावजूद इस मिसाइल की सुपरसोनिक गति, उच्च सटीकता और मल्टी-प्लेटफॉर्म से दागे जाने की क्षमता बरकरार रखी जाएगी. यह मिसाइल जमीन, समुद्र और हवा तीनों प्लेटफॉर्म से दागी जा सकेगी.
ब्रह्मोस ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपने प्रचंड प्रहार से पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया था. (फोटो: Reuters)
फोर्स मल्टीप्लायर
भारतीय नौसेना और इंडियन आर्मी दोनों ही ब्रह्मोस-ER प्रोजेक्ट के मजबूत समर्थक हैं. नौसेना के लिए यह मिसाइल समुद्री क्षेत्र में ‘सी-डिनायल’ यानी दुश्मन की गतिविधियों को रोकने और लंबी दूरी से समुद्री हमले करने की क्षमता को काफी बढ़ाएगी. ‘इंडियन डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, इससे युद्धपोतों और तटीय बैटरियों को यह ताकत मिलेगी कि वे दुश्मन के जहाजों और ठिकानों को विवादित समुद्री इलाकों के काफी भीतर तक निशाना बना सकें. इससे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की रणनीतिक पकड़ और मजबूत होगी. आर्मी के लिए ब्रह्मोस-ईआर एक अहम ‘फोर्स मल्टीप्लायर’ साबित हो सकती है. इसकी 800 किलोमीटर तक की रेंज सेना को यह क्षमता देगी कि वह सामरिक क्षेत्र से काफी दूर स्थित हाई वैल्यू एसेट्स पर सटीक हमला कर सके. इससे न केवल भारत की प्रतिरोधक क्षमता (डेटरेंस) मजबूत होगी, बल्कि गहरे प्रहार (डीप स्ट्राइक) की रणनीति को भी नई धार मिलेगी. विशेषज्ञों के अनुसार, यह मिसाइल सीमावर्ती इलाकों से दूर बैठे विरोधियों के लिए भी एक मजबूत संदेश होगी.
| ब्रह्मोस-ER मिसाइल की रेंज | 800 किलोमीटर |
| दिल्ली से लाहौर की दूरी | 502 किलोमीटर |
| दिल्ली से इस्लामाबाद की दूरी | 740 से 800 किलोमीटर |
एयरफोर्स के लिए खास ब्रह्मोस-ER
इसी के साथ भारतीय वायुसेना के लिए ब्रह्मोस-ER का हल्का संस्करण विकसित करने की योजना भी चल रही है. इस एयर-लॉन्च्ड वर्जन का वजन करीब 2.5 टन रखने का लक्ष्य है, ताकि इसे लड़ाकू विमानों से आसानी से दागा जा सके. हल्का वजन होने से विमानों पर इसके एकीकरण (इंटीग्रेशन) में आने वाली तकनीकी चुनौतियां कम होंगी और मिशन के अनुसार पेलोड और रेंज के बेहतर विकल्प मिल सकेंगे. इससे वायुसेना की ऑपरेशनल फ्लेक्सिबिलिटी और बढ़ेगी. भारतीय वायुसेना को ब्रह्मोस मिसाइल के इस्तेमाल का वास्तविक युद्ध अनुभव भी है. हाल ही में पाकिस्तान के साथ हुए संघर्ष के दौरान वायुसेना ने ब्रह्मोस-ए (एयर-लॉन्च्ड) क्रूज मिसाइल के पुराने संस्करणों का इस्तेमाल किया था, जिनकी रेंज लगभग 290 किलोमीटर थी. इन मिसाइलों के सफल उपयोग ने सिस्टम की विश्वसनीयता को साबित किया और वायुसेना का भरोसा और मजबूत किया. इसी अनुभव के आधार पर अब ज्यादा रेंज और क्षमता वाली ब्रह्मोस-ER की जरूरत को और अधिक गंभीरता से देखा जा रहा है.
मल्टी-रेंज क्रूज मिसाइल
फिलहाल ब्रह्मोस-ER का परीक्षण अहम चरण में है. इन परीक्षणों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि मिसाइल लंबी दूरी पर भी अपनी गति, सटीकता और मारक क्षमता बनाए रखे. यदि तय समय-सीमा के अनुसार सब कुछ आगे बढ़ता है, तो 2028 से इसकी तैनाती भारत की सैन्य रणनीति में एक बड़ा बदलाव साबित होगी. इससे भारत को जमीन और समुद्र दोनों क्षेत्रों में गहरे, तेज और ज्यादा सुरक्षित सटीक हमले करने की क्षमता मिलेगी. कुल मिलाकर, 450 किलोमीटर रेंज वाले ब्रह्मोस के मौजूदा उत्पादन और भविष्य में 800 किलोमीटर रेंज की ब्रह्मोस-ER की तैनाती यह दर्शाती है कि भारत एक मजबूत, मल्टी-रेंज क्रूज मिसाइल शस्त्रागार की ओर तेजी से बढ़ रहा है. यह कदम बदलते क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य और उभरती चुनौतियों के बीच भारत की रणनीतिक तैयारी को नई मजबूती देगा.
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बिहार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली से प्रारंभिक के साथ उच्च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
December 25, 2025, 06:54 IST

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