Last Updated:July 31, 2025, 17:12 IST
Bihar Chunav 2025: बिहार चुनाव 2025 में गठबंधन और सीट शेयरिंग की जटिलताएं नेताओं को नए रास्ते तलाशने के लिए मजबूर कर सकती हैं. मुकेश सहनी, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और पप्पू यादव पर सबकी नजर...और पढ़ें

हाइलाइट्स
मुकेश सहनी ने 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा किया है.चिराग पासवान ने 40 सीटों की मांग की है.उपेंद्र कुशवाहा को 4-5 सीटें मिलने की संभावना है.पटना. बिहार में पार्टियों के गठबंधन और जातीय समीकरण से कब क्या हो जाए, यह कहा नहीं जा सकता है. साल 2020 में जिस तरह से वीआईपी पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी तेजस्वी यादव के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस से उठकर एनडीए खेमे में पहुंच गए थे, वही घटना इस बार बिहार में फिर से दोहरा जाए तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि कमोबेश साल 2020 वाले हालात और सियासी समीकरण 2025 में भी नजर आ रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या बिहार चुनाव 2025 में गठबंधन और सीट शेयरिंग की जटिलताएं नेताओं को नए रास्ते तलाशने के लिए मजबूर कर सकती हैं? क्या मुकेश सहनी, चिराग पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतन राम मांझी और कुछ हद तक पप्पू यादव जैसे नेता भी नए सियासी समीकरणों को तलाश सकते हैं? जातीय वोट बैंकों और वोटर लिस्ट के बदलाव के साथ यह चुनाव बिहार की सत्ता की नई दिशा तय करेगा? आइए उन पांच चेहरों पर नजर डालें जिन पर सबकी नजर है.
मुकेश सहनी (वीआईपी)
विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने हाल ही में 60 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा किया है, जो महागठबंधन के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है. निषाद समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले सहनी ने 2020 में एनडीए छोड़कर महागठबंधन का साथ दिया था. यदि सीट बंटवारे में उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो वह फिर से गठबंधन छोड़ दें तो हैरानी नहीं होगी. बुधवार को महागठबंधन की बैठक से अनुपस्थित रहकर सहनी ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं.
चिराग पासवान (एलजेपी-रामविलास)
एलजेपी रामविलाग से सुप्रीमो और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान की राजनीति भी अभी पूरी तरह से साफ नजर नहीं आ रही है. पिछला विधानभा चुनाव में 5.31% वोट हासिल करने वाले चिराग एनडीए में हैं, लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा और 40 सीटों की मांग ने गठबंधन में तनाव पैदा किया है. नीतीश कुमार को लेकर वह अंदर ही अंदर नाखुश नजर आ रहे हैं. ऐसे में यदि बीजेपी और जेडीयू उनकी मांगों को पूरा नहीं करती है तो वह अकेले चुनाव लड़ सकते हैं, जैसा कि 2020 में किया था.
उपेंद्र कुशवाहा (राष्ट्रीय लोक मंच)
कुशवाहा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले उपेंद्र कुशवाहा एनडीए में हैं, लेकिन उनकी पार्टी को केवल 4-5 सीटें मिलने की संभावना है. 2020 में उनकी पार्टी ने थर्ड फ्रंट बनाया था, जो असफल रहा. यदि सीट बंटवारे में उनकी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं तो वह फिर से गठबंधन छोड़ सकते हैं. हालांकि, इसकी संभावना न के बराबर है. क्योंकि कुशवाहा समुदाय में अब कई नेता उभर गए हैं, जिनकी चमक कुशवाहा से ज्यादा ही है.
जीतन राम मांझी (हम)
एक सीट जीतकर मोदी सरकार में मंत्री बनने वाले जीतन राम मांझी महादलित और मुसहर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अब जीतन राम मांझी ने एनडीए में रहते हुए 6-7 सीटों की मांग की है. चिराग के साथ उनकी तकरार और सीटों की सीमित संख्या के कारण वह गठबंधन से बाहर जा सकते हैं. हालांकि,इसकी संभावना फिलहाल न के बराबर है.
पप्पू यादव (जन अधिकार पार्टी)
पूर्णया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव अपनी पार्टी जन अधिकार पार्टी का विलय कांग्रेस में कर लिया है. लेकिन कांग्रेस से उपेक्षा और हाल ही में राहुल गांधी की पटना में बिहार बंद के दौरान उनको मंच पर जगह नहीं मिलने से विवाद हो गया है. सीमांचल इलाके में पप्पू यादव प्रभावशाली चेहरा हैं. ऐसे में अगर वह कांग्रेस का साथ छोड़ते हैं तो एनडीए में उनको जगह मिल सकती है. सीमांचल इलाके में पप्पू यादव का यादव और मुस्लिम वोटों पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. फिलहाल कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं.
कुलमिलाकर बिहार चुनाव 2025 कई घटनाक्रमों का गवाह बनने जा रहा है. अभी बेशक लोगों को लग रहा है कि फलां नेता फलां नेता के साथ हर जगह नजर आ रहा है. लेकिन जैसे ही सीट बंटवारे की शुरुआत होगी और सीट शेयरिंग पर बात नहीं बनेगी, वही नेता झटके में नेताओं और पार्टियों का साथ छोड़े सकते हैं. बीजेपी के दिग्गजों के साथ-साथ महागठबंधन के नेताओं की भी नजर वैसे नेताओं पर टिकी हुई है. सीट शेयरिंग में एनडीए ने जेडीयू और बीजेपी को 101-103 सीटें, एलजेपी (रामविलास) को 25-28, हम को 6-7, और राष्ट्रीय लोक मंच को 4-5 सीटें देने का फॉर्मूला तय किया है. वहीं, महागठबंधन में आरजेडी 140-150 सीटें, कांग्रेस 40-50 और वाम दलों को 20-30 सीटें मिल सकती हैं. लेकिन मुकेश सहनी की 60 सीटों की मांग और छोटे दलों की महत्वाकांक्षाएं गठबंधन में दरार डाल रही हैं. इससे गणित बिगड़ने की संभावना प्रबल हो सकती हैं.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
और पढ़ें