Last Updated:May 16, 2025, 16:45 IST
PK Shaw returned but 54 Indian soldiers still in Pakistan: BSF कांस्टेबल पीके शॉ की वापसी राहत की खबर है, लेकिन "गुमशुदा 54" और कुलभूषण जाधव जैसे कई जवान आज भी पाकिस्तान की कैद में हैं. उनके परिवार आज भी इंतजार...और पढ़ें

BSF जवान PK शॉ की वतन वापसी ने जहां राहत दी, वहीं 'गुमशुदा 54' जैसे वीरों की यादें फिर ताज़ा कर दीं. (फाइल फोटो)
हाइलाइट्स
पीके शॉ की वापसी राहत की खबर है.54 भारतीय सैनिक अभी भी पाकिस्तान में कैद हैं.कुलभूषण जाधव 2016 से पाकिस्तान की जेल में बंद हैं.PK Shaw returned but 54 Indian soldiers still in Pakistan: अप्रैल की एक दोपहर जब BSF कांस्टेबल पीके शॉ गलती से पाकिस्तान की सरहद में दाखिल हो गए. शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि 20 दिन के भीतर वह वतन की मिट्टी चूम लेंगे. उनकी वापसी की खबर ने जरूर राहत की सांस दी लेकिन यह कहानी अधूरी है. पीके शॉ तो लौट आए पर क्या आप उन वीर सपूतों के बारे में जानते हैं जिनकी आजादी आज भी सरहद पार कैद है?
उनकी दास्तानें अनसुनी हैं उनके परिवार आज भी इंतजार की आग में जल रहे हैं. आइए आज उन गुमनाम नायकों की यादों के पन्ने पलटते हैं जिनकी रिहाई की उम्मीद धुंधली पड़ गई है. उनके परिवार की आंखें इंतजार में पथरा गई है. कइयों को तो ये भी नहीं मालूम कि उनके साथ क्या हुआ या क्या हो रहा है.
गुमशुदा 54: जिनका इंतजार अब भी जारी है
इन गुमनाम नायकों में सबसे लंबी दास्तान है “गुमशुदा 54” की. यह कहानी 1971 के युद्ध के बाद शुरू हुई. जब बांग्लादेश आजाद हुआ तो भारत ने पाकिस्तान के 90,000 से ज्यादा सैनिकों को पकड़ा. बदले में पाकिस्तान ने भी 400 भारतीय जवानों को बंदी बनाया. शिमला समझौते के बाद कैदियों का आदान-प्रदान हुआ. ज्यादातर सैनिक अपने-अपने घर लौट गए. मगर एक स्याह रात ने 54 भारतीय परिवारों की खुशियां छीन लीं. उनके बेटे पति, भाई कभी वापस नहीं आए.
पाकिस्तान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सबसे बड़ा उल्लंघन. (FB)
विंग कमांडर हरसर्न सिंह गिल उनमें से एक थे. 1971 में उनका विमान सिंध में गिरा दिया गया. उनके भाई गुरबीर सिंह गिल तब से लेकर आज तक 54 सालों से उन्हें ढूंढ रहे हैं. उन्होंने पाकिस्तान की कई जेलों के चक्कर काटे हर दरवाजे पर उम्मीद की दस्तक दी लेकिन हर बार निराशा ही हाथ लगी. कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें दूसरे युद्धबंदियों की चिट्ठियों से पता चला कि हरसर्न और बाकी जवान तो 1980 के दशक तक भी जिंदा थे. सोचिए आधी सदी से ज्यादा वतन से दूर कैद की अंधेरी कोठरियों में एक उम्मीद के साथ जीना कैसा होता होगा?
कारगिल के शहीद: सौरभ कालिया और साथियों की दर्दनाक कहानी
फिर आई कारगिल की जंग. कैप्टन सौरभ कालिया और उनके पांच साथियों को 15 मई 1999 को दुश्मन ने पकड़ लिया. 23 दिन बाद उनकी लाशें वापस आईं. उनके शरीर पर टॉर्चर के निशान थे. उन्हें सिगरेट से जलाया गया था और हाथ-पैर तक काट दिए गए थे. यह जिनेवा संधि का सीधा उल्लंघन था.
सौरभ कालिया
चंदू बाबूलाल: 114 दिन की कैद, ज़ुल्म की दास्तान
सितंबर 2016 में सिपाही चंदू बाबूलाल चव्हाण गलती से LoC पार कर गए. उन्हें 114 दिन तक कैद में रखा गया. जब वह लौटे तो उन्होंने बताया कि उन्हें पीटा गया, भूखा रखा गया और एक अंधेरी कोठरी में दवा देकर सुला दिया जाता था.
अभिनंदन वर्धमान 58 घंटे में वापसी, लेकिन कई सवाल बाकी
फरवरी 2019 में विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की कहानी तो सबको याद होगी. हवाई लड़ाई में उनका विमान गिर गया और वह पाकिस्तान की गिरफ्त में आ गए. 58 घंटे बाद, उन्हें वापस भेजा गया. पाकिस्तान ने इसे शांति का पैगाम बताया, लेकिन उनकी पूछताछ के वीडियो ने कई सवाल खड़े कर दिए थे.
अभिनंदन वर्धमान
कुलभूषण जाधव: 9 साल से पाकिस्तान की जेल में कैद
और फिर हैं कुलभूषण जाधव. मार्च 2016 से वह पाकिस्तान की जेल में बंद हैं. उन्हें जासूसी के आरोप में मौत की सजा सुनाई गई है. अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने उनकी फांसी पर रोक लगा दी है लेकिन नौ साल से ज़्यादा वक़्त बीत चुका है वह आज भी आज़ादी की राह देख रहे हैं. वह उन गुमनाम नायकों में से एक हैं जो आज भी दुश्मन की कैद में जिंदा हैं.
कुलभूषण जाधव 2016 से वह पाकिस्तान की जेल में बंद हैं
सच छुपाता है आ रहा है पाकिस्तान
सरकार अकसर अभिनंदन जैसे मामलों का उदाहरण देती है. लेकिन “गुमशुदा 54” के मामले दिखाते हैं कि व्यवस्था में कमियां हैं. भारत सरकार ने 1990 के दशक में माना था कि 54 में से 15 जवान मारे गए थे. लेकिन फिर भी उन्हें लापता बताया जाता है. पाकिस्तान हमेशा कहता है कि उसके पास कोई भी भारतीय युद्धबंदी नहीं है. लेकिन वापस लौटे सैनिकों और पत्रकारों के सबूत कुछ और ही कहते हैं. ऐसा लगता है कि पाकिस्तान सच छुपा रहा है. शायद वह इन सैनिकों का इस्तेमाल सौदेबाजी के लिए करना चाहता है.
गुरबीर सिंह गिल जैसे परिवारों को आज तक इंसाफ नहीं मिला. यह दोनों देशों के लिए शर्म की बात है. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कानूनों का पालन नहीं किया और इंसानी जिंदगियों से ज्यादा राजनीतिक फायदे को महत्व दिया गुरबीर सिंह गिल जैसे परिवारों के लिए यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं है यह उनकी जिंदगी का सवाल है. सालों बीत गए लेकिन उन्हें आज भी अपने अपनों का इंतजा है. यह पाकिस्तान के लिए शर्म की बात है कि वह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान नहीं करता और राजनीतिक फायदे के लिए इंसानी जिंदगियों को दांव पर लगाता है.
कई सवाल?
पीके शॉ का 20 दिन में लौट आना जरूर एक राहत की खबर है. लेकिन “गुमशुदा 54” और कुलभूषण जाधव जैसे अनगिनत जवान आज भी सरहद पार कैद में हैं. उनकी कहानियां हमें याद दिलाती हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव की कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ती है. न्यूज18 हिंदी हमेशा से ही सीमा पर होने वाली ऐसी घटनाओं को दिखाता रहा है, जहां आम लोगों की जिंदगी बुरी तरह से प्रभावित होती है. पीके शॉ की रिहाई के साथ इन पुरानी कहानियों को बताने का मकसद यही है कि हमारे पाठक समझें कि सरहद पर क्या दांव पर लगा है और अतीत की गलतियों से सबक लेकर भविष्य को बेहतर बनाया जा सके.
Sumit Kumar is working as Senior Sub Editor in News18 Hindi. He has been associated with the Central Desk team here for the last 3 years. He has a Master's degree in Journalism. Before working in News18 Hindi, ...और पढ़ें
Sumit Kumar is working as Senior Sub Editor in News18 Hindi. He has been associated with the Central Desk team here for the last 3 years. He has a Master's degree in Journalism. Before working in News18 Hindi, ...
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