भारतीय राजनीति में उम्र का सवाल हमेशा से बहस का विषय रहा है. यह हमेशा से सिर्फ एक आंकड़ा नहीं रही, बल्कि वह सोच, ऊर्जा और दिशा का भी संकेत मानी जाती रही है. एक तरफ अनुभव की धरोहर तो दूसरी तरफ युवा ऊर्जा का वादा. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने बिहार के पथ निर्माण मंत्री और पांच बार के विधायक नितिन नबीन को अपना नया राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है. 45 साल के नवीन दिवंगत बीजेपी नेता नवीन किशोर प्रसाद सिन्हा के पुत्र हैं. वह इस पद पर जेपी नड्डा की जगह लेंगे.
वहीं, कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 83 साल के हैं, जो दशकों के राजनीतिक अनुभव के साथ पार्टी का नेतृत्व कर रहे हैं. यह अंतर सिर्फ संख्याओं का नहीं, बल्कि दो बड़ी पार्टियों के विजन का प्रतीक बन गया है. सवाल उठता है: कौन सी पार्टी भविष्य को देख रही है? क्या उम्र राजनीतिक सफलता का पैमाना है, या अनुभव की गहराई? चलिये इस मुद्दे को गहराई से समझते हैं…
कांग्रेस में बुजुर्गों की भरमार
सबसे पहले फैक्ट्स को देखें तो मल्लिकार्जुन खरगे का जन्म 1942 में हुआ, और वे 2022 से कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. उन्होंने कर्नाटक में मंत्री पद से लेकर केंद्र में मंत्री तक का सफर तय किया है. उनका अनुभव निर्विवाद है… गांधी परिवार के बाद वे पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता हैं. लेकिन कांग्रेस में युवा नेतृत्व की कमी एक पुरानी शिकायत रही है. 55 साल के राहुल गांधी और 53 वर्षीय प्रियंका गांधी को पार्टी के युवा चेहरों में गिना जाता हैं, लेकिन पार्टी का शीर्ष नेतृत्व अभी भी 70-80 के दशक के नेताओं पर टिका है. उदाहरण के लिए, 79 वर्षीय सोनिया गांधी अभी भी प्रभावशाली हैं, और कई राज्य इकाइयों में बुजुर्ग नेता हावी हैं. यह स्थिति कांग्रेस को ‘पुरानी पीढ़ी की पार्टी’ का टैग देती है, जहां युवा कैडर की महत्वाकांक्षा दब जाती है.
जेनरेशनल शिफ्ट कर रही बीजेपी
दूसरी तरफ, बीजेपी का फैसला एक ‘जनरेशनल शिफ्ट’ का संकेत है. 45 साल के नितिन नबीन एक युवा और गतिशील नेता माने जाते हैं. वे बिहार में PWD मंत्री हैं, और उनकी विचारधारा जमीनी स्तर से जुड़ी है. बीजेपी की संसदीय बोर्ड ने उनकी नियुक्ति को ‘समर्पण और जमीनी काम’ का इनाम बताया.
यह पहली बार नहीं, जब बीजेपी ने युवाओं को आगे बढ़ाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद 2014 में 64 साल के थे, लेकिन उन्होंने किरेन रिजिजू, अनुराग ठाकुर, तेजस्वी सूर्य, अन्नामलई जैसे युवा नेताओं को प्रमोट किया. वहीं बीजेपी आईटी सेल और युवा मोर्चा में 30-40 साल के नेता सक्रिय हैं. वहीं नबीन की नियुक्ति को पार्टी की मेरिट-बेस्ड प्रमोशन की संस्कृति के रूप में देखा जा रहा है.
अब सवाल भविष्य का?
अगर हम लोकतंत्र की बात करें, तो सभी पार्टियां 18 से 35 साल के मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए युवा नेतृत्व चाहती हैं. भारत की आबादी में 65% युवा हैं, जो डिजिटल, रोजगार और इनोवेशन पर फोकस करते हैं. बीजेपी इस मामले में आगे लगती है. नबीन की उम्र उन्हें सोशल मीडिया, ग्रासरूट कैंपेन और नए वोटर्स से जोड़ती है. बीजेपी ने 2024 के चुनावों में युवा उम्मीदवारों को टिकट दिए, और अब राष्ट्रीय स्तर पर यह शिफ्ट. इससे पार्टी को ‘डायनामिक’ इमेज मिलती है, जो मोदी-शाह की विरासत को आगे ले जाएगी.
वहीं, कांग्रेस में खरगे का नेतृत्व स्थिरता देता है, लेकिन क्या यह भविष्य-उन्मुख है? कांग्रेस युवा कांग्रेस और NSUI जैसी इकाइयों से युवाओं को लाती है, लेकिन शीर्ष पर पहुंचने में देरी होती है. भारत की ग्रैंड ओल्ड पार्टी में ज्योत्सना सिद्धार्थ या कन्हैया कुमार जैसे कई युवा चेहरे जरूर हैं, हालांकि उन्हें अभी तक कोई विशेष जिम्मेदारी नहीं दी गई हैं.
अनुभव की भी अपनी कीमत
वैसे उम्र का सवाल इतना सरल नहीं. अनुभव की कीमत भी है. खरगे ने 50 साल की राजनीति में सामाजिक न्याय, दलित अधिकार और संसदीय डिबेट्स में महारत हासिल की है. वे कांग्रेस को एकजुट रख रहे हैं, खासकर 2024 के चुनावों के बाद जहां पार्टी ने 99 सीटें जीतीं. उम्रदराज नेतृत्व की ताकत स्थिरता है, जैसे अमेरिका में 82 साल के जो बाइडेन ने अपने अनुभव के दम पर 2020 के राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल की थी. लेकिन बाइडेन का उदाहरण भी सवाल उठाता है: उनकी उम्र पर बहस ने डेमोक्रेट्स को नुकसान पहुंचाया. इसी तरह, कांग्रेस में खरगे की उम्र पर भी सवाल उठते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या वे 2029 तक पार्टी को लीड कर पाएंगे?
एक स्टडी के मुताबिक, युवा वोटर्स युवा चेहरों से जुड़ते हैं, जैसे AAP में अरविंद केजरीवाल (57) ने युवाओं को आकर्षित किया. वहीं भविष्य की बात करें तो बीजेपी फिलहाल आगे लगती है. नवीन की नियुक्ति एक सिग्नल है कि पार्टी 2030 की पीढ़ी को तैयार कर रही है.

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