'धनुष' की मार बोफोर्स से भी ज्यादा धारदार, कर दी गई है ऑपरेशनल तैनाती

12 hours ago

Last Updated:July 29, 2025, 18:00 IST

DHANUSH ARTILLERY GUN: क्यों कहा जाता है बोफोर्स किंग ऑफ दी बैटल फील्ड, वह कारगिल की जंग में साफ हो गया. एक देसी किंग ऑफ दी बैटल फील्ड धनुष भी अब अपना रौद्र रूप दिखाने को तैयार है. कारगिल में ताबड़तोड़ और लगाता...और पढ़ें

'धनुष' की मार बोफोर्स से भी ज्यादा धारदार, कर दी गई है ऑपरेशनल तैनातीदेसी बोफोर्स धनुष गरजने को तैनात

हाइलाइट्स

धनुष तोप की तैनाती लद्दाख में हुई.धनुष बोफोर्स से ज्यादा मारक क्षमता वाली है.धनुष पूरी तरह से स्वदेशी तोप है.

DHANUSH ARTILLERY GUN: 1999 में शुरू हुए सेना के आधुनिकीकरण के प्लान में आर्टिलरी तोपें सबसे अहम थीं. इसमें साल 2027 तक 2800 तोपें भारतीय सेना में शामिल करने का लक्ष्य है. 155 mm की अलग-अलग कैलिबर की तोपें ली जा रही हैं. खास बात यह है कि आत्मनिर्भर भारत के तहत देश में ही देसी बोफोर्स भी बनाई गई है. इसका नाम दिया गया है धनुष. अब तक इसकी दो से ज्यादा रेजिमेंट सेना को मिल चुकी हैं. एक रेजिमेंट में 3 गन बैटरी होती हैं और हर बैटरी में 6 गन होती हैं. भारतीय सेना को कुल 114 गन लेनी हैं और इसकी डेडलाइन 2026 रखी गई है. धनुष के ट्रायल की तस्वीरें और वीडियो पहले से ही सभी ने देखी हैं, लेकिन ऑपरेशनल तैनाती के बाद पहली बार द्रास में यह गन दिखाई दी. 26 साल पहले जिस जगह से पाकिस्तानियों को बोफोर्स ने मार भगाया था, उसी जगह से बोफोर्स के साथ देसी बोफोर्स नजर आया.

धनुष है बोफोर्स से दो कदम आगे
बोफोर्स यानी बिग गन. नाम सुनते ही दो चीजें सामने आती हैं – एक तो बोफोर्स घोटाला और दूसरी कारगिल की जंग. भले ही बोफोर्स विवादों में रही हो, लेकिन इसकी मारक क्षमता पर किसी ने सवाल नहीं उठाया. इसकी मार का स्वाद तो सिर्फ पाकिस्तान ने ही चखा है. कारगिल की जंग में ढाई लाख से ज्यादा आर्टिलरी फायर हुए थे, जिसमें अकेले 70-80 हजार राउंड पाकिस्तानी सेना पर दागे गए थे. अब इसका साथ देने के लिए धनुष की भी तैनाती कर दी गई है. धनुष पूरी तरह से स्वदेशी है. आर्मी प्रवक्ता कर्नल निशांत ने यह समझाने की कोशिश की कि आखिर कैसे स्वदेशी धनुष घातक है. कर्नल निशांत ने कहा, “आर्टिलरी के आधुनिकीकरण के दौर से गुजर रहा है. अब हम मास फायर से प्रीशिसन फायर की तरफ बढ़ चुके हैं. इसमें सटीकता सबसे अहम है. धनुष बोफोर्स से इंप्रूवड वर्जन है. बोफोर्स 155mm 39 कैलिबर थी, उससे इंप्रूव होकर 155mm 45 कैलिबर की धनुष हम इस्तेमाल कर रहे हैं. इसी बैरल की लंबाई ज्यादा होने के चलते इसकी रेंज भी बोफोर्स से ज्यादा है.” कर्नल निशांत ने बताया कि हाई एल्टिट्यूड में इसकी मारक क्षमता भी बढ़ जाती है. बड़े कैलिबर का इफेक्ट ज्यादा होता है. इसमें ऑटोमेटिक लेइंग सिस्टम इस्तेमाल किया गया है जिससे गन का इन एक्शन टाइम कम हो जाता है और हम दुश्मन पर कारगर कार्रवाई कर सकते हैं.

बोफोर्स बूढ़ी जरूर पर मारक क्षमता अब भी घातक
कारगिल की जंग को 26 साल हो गए हैं. बोफोर्स जरूर बूढ़ी हो चुकी है, लेकिन फायर पावर में कोई कमी नहीं आई है. सेना के एक अधिकारी के मुताबिक, आज भी बोफोर्स गन देश की सबसे बेस्ट गन है. 1986 में स्वीडन से ली गई 410 155mm 39 कैलिबर होवित्सर गन अब भी सेना के आर्टिलरी की बैकबोन है. फिलहाल भारतीय सेना में 250 के करीब एक्टिव गन मौजूद हैं. भले ही भारत ने कारगिल के बाद कोई जंग नहीं लड़ी जिसमें आर्टिलरी गन का इतना ज्यादा इस्तेमाल किया हो. थोड़ी बहुत फायरिंग पीओके में पाकिस्तानी सीज फायर के जवाब में जरूर होती रही. फिर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इन तोपों का मुंह फिर से खोल दिया गया. एक गन ने पाकिस्तान को दो बार गहरी चोट दी. 50 साल बाद भी बोफोर्स जैसे पहले दिन फायर करती थी, आज भी वैसे ही फायर करती है. इसकी खासियत है कि यह 30 किलोमीटर दूर से दुश्मन के किसी ठिकाने को तबाह कर सकती है. इसका रेट ऑफ फायर भी जबरदस्त है. बोफोर्स 9 सेकंड में 4 राउंड फायर कर सकती है. यह एक जगह पर ही 360 डिग्री घूम सकती है और किसी भी एंगल में फायर कर सकती है। और यह 6 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से मूव भी कर सकती है.

homenation

'धनुष' की मार बोफोर्स से भी ज्यादा धारदार, कर दी गई है ऑपरेशनल तैनाती

Read Full Article at Source