BNP Stance on India: बांग्लादेश इस समय राजनीतिक अस्थिरता से गुजर रहा है. देश के कई जगहों पर हिंसा हो रही है. हिंदुओं पर भी अत्याचार हो रहा है, यहां पर अगले साल फरवरी में चुनाव होना है और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार हालात को संभालने में नाकाम साबित हो रही है. इसी बीच बांग्लादेश में 17 साल बाद बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के एक्टिंग चेयरमैन और पूर्व पीएम खालिदा जिया के बेटे तारिक रहमान ने 25 दिसंबर 2025 को वतन वापसी की है. जानकारों की मानें तो BNP आगामी चुनाव में बड़ा उलटफेर कर सकती है, हालांकि BNP के इतिहास की बात करें तो उसका रुख एंटी-इंडिया रहा है, ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि अगर सत्ता में BNP आती है तो क्या रिश्ता भारत से ठीक हो जाएगा? आखिर बीएनपी का रुख भारत के खिलाफ क्यों रहा है? आइए समझते हैं.
बीएनपी भारत के खिलाफ क्यों है?
BNP का उदय बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की हत्या से पैदा हुए राजनीतिक खालीपन के दौरान हुआ था, इस पार्टी में वो लोग शामिल थे जो आजादी की भावना और नए देश के संविधान के बुनियादी उसूलों के जवाब में राजनीतिक रूप से एकजुट होना चाहते थे, ये लोग बंगबंधु की घरेलू और विदेशी पॉलिसी को पूरी तरह से बदलना चाहते थे, बंगबंधु के रिश्ते भारत के साथ अच्छे थे, बंगबंधु के रिश्ते अच्छे थे इसलिए ये लोग बगावत पर आ गए और यहीं से पार्टी का भारत विरोध अभियान शुरू होता है.
जियाउर रहमान की लीडरशिप वाली मुजीब-विरोधी सरकार ने अपनी फॉरेन पॉलिसी को मुजीब से हटाकर US, चीन और पाकिस्तान के पक्ष में कर दिया, तब से भारत के साथ BNP के रिश्ते ऊपर-नीचे होने लगे. इसके साथ ही भारत विरोधी राजनीति बांग्लादेश की राजनीति पर हावी होने लगी.
इंदिरा-मुजीब में क्या हुई थी डील?
साल 1972 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान के बीच 25 सालों के लिए 'भारत-बांग्लादेश मैत्री, सहयोग और शांति संधि' हुई थी. इसके तहत ये तय हुआ कि कोई भी देश दूसरे के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देगा और न ही किसी ऐसे गठबंधन का हिस्सा बनेगा जो दूसरे के लिए खतरा हो, दोनों देश एक-दूसरे की आजादी, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करेंगे. साथ ही साथ ये भी कहा गया कि दोनों ऐसे किसी भी संगठन का हिस्सा नहीं बनेंगे जो दोनों देशों की सुरक्षा के खिलाफ हो. हालांकि मुजीब और इंदिरा द्वारा साइन की गई बांग्लादेश और भारत के बीच मिलिट्री और स्ट्रेटेजिक दोस्ती की संधि को BNP ने गुलामी की संधि बताया और 1997 में डील खत्म होने तक इसे बांग्लादेश के हितों के खिलाफ बताया.
खालिदा जिया ने किया विरोध
1996 में भारत के साथ साइन की गई गंगा वॉटर शेयरिंग ट्रीटी और 1997 में पर्वतीय चटगांव जनसंघति समिति के साथ साइन किया गया चटगांव हिल ट्रैक्ट्स पीस अकॉर्ड, उस समय की हसीना की सरकार की दो बड़ी उपलब्धियां मानी गईं, हालांकि खालिदा जिया के नेतृत्व में BNP ने अपनी भारत विरोधी राजनीति जारी रखी और दोनों संधियों का विरोध किया, उन्होंने गंगा वॉटर शेयरिंग ट्रीटी को गुलामी का सौदा कहा, उन्होंने यह भी दावा किया कि शांति समझौते पर साइन होने के बाद CHT इलाके भारत का हिस्सा बन गए थे, पार्टी ने शांति समझौते के खिलाफ सड़क पर भी आंदोलन किया था. BNP ने धमकी दी थी कि अगर पार्टी सत्ता में लौटी तो वह इन दोनों संधियों को रद्द कर देगी लेकिन सत्ता में आने के बाद उसने ऐसा करने से परहेज किया.
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से नहीं की थी मुलाकात
अपने पूरे इतिहास में पार्टी ने भारत के साथ करीबी व्यापार और कम्युनिकेशन कनेक्टिविटी का भी विरोध किया है, BNP चीफ खालिदा जिया ने मार्च 2013 में ढाका आए भारतीय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से शिष्टाचार भेंट करने से इनकार कर दिया था. ये आलम साल 2024 में BNP ने इंडिया आउट कैंपेन चलाया और भारतीय उत्पादों का बहिष्कार किया.
भारत के लिए क्या खतरा है?
साल 2004 में चटगांव हथियार तस्करी कांड हुआ, जिसके बाद बीएनपी सरकार पर आरोप लगा कि उन्होंने भारत के उल्फा (ULFA) जैसे उग्रवादियों के लिए हथियार सप्लाई किए, भारत BNP को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है. BNP की सरकार में भारत के उत्तर-पूर्व में अस्थिरता बढ़ी, सीमा पर हिंसाए हुई इतना ही नहीं स्मगलिंग बढ़ी. अपने पिछले शासनकाल में BNP ने उग्रवादी समूहों जैसे ULFA को शरण और हथियार दिए, ये भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के समूह थे, ऐसे में अगर BNP फिर सरकार में आती है और यही रवैया जारी रखती है तो भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है. बीएनपी की नजदीकियां हमेशा से पाकिस्तान और चीन के करीब रही है, ये आलम फिर से देखा जा सकता है जो भारत के लिए चुनौती का सबब बन सकता है.

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