'जब तक मजबूत केस नहीं, तब तक दखल नहीं', वक्फ पर सिब्बल को CJI की दो टूक

6 hours ago

Waqf Act Case Hearing LIVE: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई शुरू हो चुकी है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बीआर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. कोर्ट ने पिछले हफ्ते याचिकाकर्ताओं और केंद्र को 19 मई तक संक्षिप्त नोट दाखिल करने का निर्देश दिया था. इसके बाद दोनों पक्षों ने अपनी लिखित दलीलें सौंप दी हैं. वहीं, सरकार की ओर से एसजी तुषार मेहता तो याचिकाकर्ताओं की ओर कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी दलीलें पेश कर रहे हैं.

Waqf Act Case Hearing LIVE:- 

-कपिल सिब्बल ने दलील दी थी कि वक़्फ़ को जब्त और कब्जा किया जा रहा है. यह संविधान के आर्टिकल 26 और 27 का उल्लंघन है, जिसमें मैनेज टू रिलिजियस अफेयर्स होता है. अभी संशोधन के अनुसार CEO गैर मुस्लिम हो सकता है जो कि पहले केवल मुस्लिम होता था. वहीं, उन्होंने वक्फ संशोधन कानून पर कहा कि यह पूर्ण रूप से अलग है. यह वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का प्रयास है.

– कपिल सिब्बल ने कोर्ट से कहा कि वक़्फ़ करने के लिए 5 साल प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की शर्त लगाई गई, लेकिन यह कौन निर्णय करेगा और अगर मैं अपने मौत के बिस्तर पर हूं तो फिर क्या यह असंवैधानिक है ?

अंतरिम राहत पर सीजेआई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह संवैधानिकता के बारे में है. मगर जब तक याचिकाकर्ता को एक मजबूत केस नहीं बना लेते हैं, तब तक हम हस्तक्षेप नहीं करेंगे. 

सिब्बल ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि मेरा केस अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है. इसपर सीजेआई ने कहा कि नागरिकों से उनके धार्मिक अभ्यास को जारी रखने का अधिकार छीन लिया जाएगा. इसलिए, यह अनुच्छेद 25 और 26 का उल्लंघन है. मेहता इसे रिकॉर्ड करें. इसपर एसजी मेहता ने कहा कि हम रिकॉर्ड कर रहे हैं, तथ्यात्मक रूप से गलत है. सुनते ही सीजेआई भड़क उठे और कहा, ‘हम यह नहीं पूछ रहे हैं…’

कपिल सिब्बल ने कहा कि तत्कालीन सीजेआई ने कहा था कि हम मामले की सुनवाई करेंगे और देखेंगे कि अंतरिम राहत क्या दी जानी चाहिए ? अब हम तीन मुद्दों तक सीमित नहीं रह सकते. यह वक्फ भूमि पर कब्जे के बारे में है. साथ ही सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि हां, कोई भी सुनवाई टुकड़ों में नहीं हो सकती. दोनों के सवालों के बाद एसजी मेहता ने तत्कालीन सीजेआई संजीव खन्ना द्वारा दर्ज किए गए आदेश को सुनवाई के दौरान पढ़े.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कि कोर्ट ने तीन मुद्दे चिन्हित किए थे. हमने इन तीन मुद्दों पर अपना जवाब दाखिल किया था. हालांकि याचिकाकर्ता के लिखित बयान अब कई अन्य मुद्दों से आगे निकल गए हैं. मेरा अनुरोध है कि इसे केवल तीन मुद्दों तक ही सीमित रखा जाए.

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बहस शुरू करते हुए कहा कि तर्क केवल तीन मुद्दों तक सीमित होने चाहिए जो हैं:-

कोर्ट द्वारा वक्फ के रूप में घोषित संपत्तियों को वक्फ के रूप में डि-नोटिफाइड नहीं किया जाना चाहिए, चाहे वे वक्फ-बाय-यूजर द्वारा हों या कार्य के लिए हो, जब तक कोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है. संशोधन अधिनियम की शर्त, जिसके अनुसार वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा. कलेक्टर इस बात की जांच कर रहा है कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, को प्रभावी नहीं किया जाएगा. वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए, सिवाय पदेन सदस्यों के.

कपिल सिब्बल ने कहा कि यह कानून ऐसा है जो पूरे वक्फ संपत्तियों पर अतिक्रमण के लिए है. वक्फ क्या है? एक बार कोई संपत्ति वक्फ की हो जाती है तो वह हमेशा वक्फ की रहती है. यह ऐसा मामला है जिसमें 2025 का अधिनियम वक्फ की सुरक्षा के लिए बनाया गया है, लेकिन इसकी रूपरेखा ऐसी है कि इसका उद्देश्य वक्फ पर कब्जा करना है. राज्य किसी धार्मिक संस्था को वित्तीय सहायता नहीं दे सकता. अगर आप मस्जिद में जाएं, तो वहां कोई चढ़ावा नहीं होता, उनके पास हजारों करोड़ नहीं हैं.

दरअसल, पूर्व CJI संजीव खन्ना की बेंच ने 5 मई को मामले को स्थगित कर दिया था. उनका कहना था कि इस मामले पर फैसला सुरक्षित सही नहीं रहेगा क्योंकि वह 13 मई को रिटायर होने वाले थे. 15 मई को CJI गवई की बेंच ने मामले को 20 मई के लिए सूचीबद्ध किया था.

कौन हैं याचिका डालने वाले?

याचिकाकर्ताओं में AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी और अन्य शामिल हैं. इन्होंने संक्षिप्त नोट दाखिल कर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई थीं. उनकी मुख्य चिंता ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान को हटाने, केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति और जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्ति की जांच का अधिकार देने से संबंधित है.

तुषार मेहता: बिना सुनवाई के रोक न लगाएं

केंद्र ने पहले 17 अप्रैल को कोर्ट को आश्वासन दिया था कि 5 मई तक न तो वक्फ संपत्तियों, जिसमें ‘वक्फ बाय यूजर’ शामिल हैं, को गैर-अधिसूचित किया जाएगा और न ही केंद्रीय वक्फ परिषद या बोर्डों में कोई नियुक्ति की जाएगी. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र की ओर से यह भी आग्रह किया था कि बिना सुनवाई के कानून पर रोक न लगाई जाए.

केंद्र: संशोधन जरूरी था

केंद्र ने अपनी 1,332 पेज की प्रारंभिक हलफनामे में कहा कि 2013 के बाद वक्फ संपत्तियों में 116% की वृद्धि हुई, जिसे रोकने के लिए यह संशोधन जरूरी था. हालांकि, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने केंद्र पर गलत डेटा देने का आरोप लगाया है. यह सुनवाई वक्फ कानून की संवैधानिकता और धार्मिक स्वतंत्रता पर एक अहम फैसले की दिशा में कदम है.

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