Last Updated:July 22, 2025, 19:46 IST
Why Vice President Resigned: संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही भारतीय राजनीति में एक असाधारण मोड़ आया. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपना इस्तीफा दे दिया. धनखड़ का इस्तीफा यूं तो ‘स्वास्थ्य कारणों’ की आड़ में आया, लेकिन इसके पीछे की टाइमलाइन और घटनाओं का सिलसिला बताता है कि सत्ता के गलियारों में कुछ बहुत असहज घटा है. सोमवार (21 जुलाई 2025) के घटनाक्रम की टाइमलाइन से पता चलता है कि आखिर हुआ क्या था.

सूत्रों के मुताबिक, असली फसाद एक जज के खिलाफ प्रस्ताव से शुरू हुआ. यह प्रस्ताव राज्यसभा में लाया गया और धनखड़ ने बतौर सभापति इसे स्वीकार करते हुए इसकी घोषणा कर दी. यही वह पल था जब केंद्र सरकार चौंक गई. दरअसल, सरकार को इस प्रस्ताव के बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं थी. आमतौर पर ऐसी संवेदनशील कार्यवाहियों में सरकार और सभापति के बीच समन्वय होता है. लेकिन इस बार, धनखड़ ने यह कदम सरकार से हटकर उठाया. बिना किसी जानकारी के.

सरकार का प्लान था कि यह प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा, विपक्ष को साथ लेकर. लेकिन धनखड़ की इस घोषणा से पूरा समीकरण बिगड़ गया. NDTV रिपोर्ट के अनुसार, आनन-फानन में प्रधानमंत्री कार्यालय सक्रिय हुआ. वरिष्ठ मंत्रियों की बंद कमरे में बैठकें शुरू हुईं, रक्षा मंत्री के कक्ष को अस्थायी युद्धकक्ष बना दिया गया. राज्यसभा के सांसदों को समूहों में बुलाया गया, उनसे गोपनीयता की शपथ लेकर प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कराए गए.

इसके बाद, वरिष्ठ नेताओं ने सांसदों को बताना शुरू किया कि कैसे उपराष्ट्रपति पिछले कुछ समय से बार-बार ‘सीमा पार’ कर रहे थे. कभी सरकार की नीतियों पर सवाल, कभी विपक्ष को विशेष महत्व. यह नाराजगी धीरे-धीरे जमा होती गई और इस प्रस्ताव की घटना आखिरी बिंदु बन गई.

फिर जगदीप धनखड़ को बुलाया गया. बातचीत हुई. लेकिन तब तक वह निर्णय ले चुके थे. उन्होंने राष्ट्रपति को त्यागपत्र सौंप दिया.

विपक्ष ने इस घटनाक्रम को राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. कांग्रेस ने कहा कि यह सिर्फ स्वास्थ्य कारण नहीं, बल्कि सत्ता के दबाव में लिया गया फैसला है. वहीं शिवसेना (यूबीटी) जैसी सहयोगी पार्टियों ने भी कांग्रेस की बयानबाजी पर सवाल उठाए, याद दिलाया कि खुद विपक्ष ने कभी धनखड़ पर पक्षपात का आरोप लगाकर उन्हें हटाने की मांग की थी.

भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि विपक्ष को इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से राजनीतिक रंग नहीं देना चाहिए. पार्टी सांसदों ने यह भी कहा कि धनखड़ अगर संवैधानिक दायरे में रहते, तो यह नौबत नहीं आती. अब जब राष्ट्रपति ने त्यागपत्र स्वीकार कर लिया है, तो चुनाव आयोग को जानकारी दी जाएगी. इसके बाद उपराष्ट्रपति पद के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी.