आज चौराहे पर खड़ी कांग्रेस को निश्चित ही अपने वे तमाम दिग्गज क्षत्रप याद आ रहे होंगे, जिनके दम पर वह न केवल राज्यों में अपनी सत्ता के किले को बचाए रखती थी, बल्कि केंद्र में भी जिन्हें पार्टी की सबसे बड़ी ताकत माना जाता था. समय के साथ ये सभी एक-एक करके या तो पार्टी से दूर हो गए या दुनिया को अलविदा कह गए. उन्हीं में से एक नाम था तरुण गोगोई का. आज 23 नवंबर को उनके निधन के पांच वर्ष पूरे हो रहे हैं. असम के कांग्रेसियों के लिए यह दिन उनकी रहनुमाई, बेबाकी और राजनीतिक दृढ़ता को याद करने का अवसर है. खासकर ऐसे वक्त में जब कुछ ही महीनों बाद राज्य में चुनाव होने वाले हैं और कांग्रेस राष्ट्रवादी नैरेटिव तथा धार्मिक ध्रुवीकरण के सामने पस्त नजर आ रही है.
सालों उग्रवाद झेलने वाले असम में मुख्यमंत्री के तौर पर इतनी लंबी पारी (करीब 15 साल) खेलकर राज्य को सामान्य स्थिति में लाने वाले तरुण गोगोई वहां पार्टी के आखिरी ऐसे सिपहसालार रहे, जिन पर वहां के मतदाताओं का अटूट भरोसा था. गोगोई असम में क्रांतिकारी बदलाव के अगुआ बने वो चेहरे थे, जिन्होंने 2001 से 2016 के बीच कांग्रेस को लगातार तीन बार जीत दिलाई. दुर्भाग्य यह रहा कि उनका निधन ऐसे समय में हुआ जब पार्टी के लिए नई लीडरशिप तैयार करने में उनकी भूमिका बहुत अहम हो सकती थी.
राजनीतिक प्रबंधन के जबरदस्त उस्ताद
सियासी मैदान में गोगोई 1976 में उस समय प्रमुखता से उभरे, जब उन्हें भारतीय युवा कांग्रेस का पदाधिकारी बनाया गया. कहा जाता है कि इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी ने तत्कालीन एआईसीसी (AICC) प्रमुख देवकांत बरूआ से युवा गोगोई पर गौर करने को कहा था. बरूआ ने ही गोगोई को एआईसीसी के गुवाहाटी सत्र के आयोजन की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी. गोगोई ने इसे इतने बेहतरीन तरीके से अंजाम दिया था कि स्वयं प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी यह कहने से खुद को नहीं रोक पाई थीं- ‘अब युवा ही हमारी असली ताकत बन गए हैं.’
उस समय स्तंभकार सुनील सेठी ने उस सत्र के बारे में एक राष्ट्रीय पत्रिका के लिए लिखा था: गुवाहाटी ने ऐसा नजारा पहले कभी नहीं देखा था. उथल-पुथल के बीच पांच दिन सूरते-हाल एकदम अलग ही नजर आए, क्योंकि देश के दूरदराज के इलाकों तक से तमाम लोग भव्य पैमाने पर आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र को देखने या उसमें हिस्सा लेने उमड़ पड़े. शहर से लगभग 10 किमी दूर कभी घने जंगलों से घिरे रहे समतल इलाके में तो ऐसा लग रहा था, मानो किसी ने जादू की छड़ी फिरा दी और यह जगह जगमगाती ‘जवाहरनगर बस्ती’ में बदल गई. कांग्रेस का तिरंगा बैज ही यहां प्रवेश के लिए एक टिकट की तरह था.
इसके बाद गोगोई ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. संजय गांधी के निधन और राजीव गांधी के उदय के बाद जब कई युवा कांग्रेस नेता हाशिये पर चले गए, तब भी गोगोई ने अपनी जगह बरकरार रखी. वे अहमद पटेल, दिग्विजय सिंह और तारिक अनवर जैसे नेताओं की कतार में शामिल रहे, कई बार केंद्रीय मंत्री बने और अंततः 2001 से 2016 तक लगातार तीन बार असम के मुख्यमंत्री रहे.
सरमा को करार दिया था ‘शनि’!
गांधी परिवार का भरोसा गोगोई पर हमेशा मजबूत रहा और यह कुछ लोगों को खासा नागवार भी गुजरा. यही वजह है कि हिमंत बिस्वा सरमा जैसे महत्वाकांक्षी नेताओं ने भाजपा का दामन थाम लिया. मार्च 2016 में असम में स्थानीय मीडिया से बातचीत के दौरान गोगोई ने सरमा को ‘शनि’ (चर) करार दिया था. मई 2021 से असम के मुख्यमंत्री पद पर आसीन सरमा कभी उनके सबसे भरोसेमंद सहयोगी हुआ करते थे. गोगोई ने तंज कसते हुए कहा था, ‘हां, मैं कई सालों तक शनि ग्रह से प्रभावित था.’
जब बेटे से कहा, पहले राजनीति का ‘क ख ग’ सीखकर आओ
अमेरिका से पढ़कर लौटे गौरव गोगोई ने जब राजनीति में आने की इच्छा जताई तो उनके पिता ने उन्हें 1970 के दशक के अपने पुराने साथियों के बीच कुछ समय बिताने को कहा, ताकि वे राजनीति की बारीकियां, चुनौतियां और जटिलताएं समझ सकें. यह अनुभव गौरव के व्यक्तित्व और नेतृत्व शैली के विकास में बेहद अहम साबित हुआ. 38 वर्ष की आयु में वे लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता बने और पार्टी में एक ऐसे नेता के रूप में उभरे, जो युवाओं और वरिष्ठों दोनों के बीच स्वीकार्य हैं. आज वे असम कांग्रेस का सबसे प्रमुख चेहरा भी हैं.
बड़ा सवाल, क्या गौरव संभाल पाएंगे पिता की विरासत?
गौरव गोगोई को निश्चित रूप से राजनीति विरासत में मिली है. उन्हें वह लंबा संघर्ष नहीं करना पड़ा जो उनके पिता ने किया था. लेकिन अब जो चुनौती उनके सामने है, वह कहीं अधिक कठिन है- ध्रुवीकृत और विभाजित होते असम में हिंदू राष्ट्रवाद के उभार के बीच कांग्रेस को सत्ता में लौटाना. इस लक्ष्य के लिए आज कांग्रेस के पास उनसे बेहतर कोई चेहरा नहीं है.
तरुण गोगोई कांग्रेस के साथ लंबे जुड़ाव के बावजूद समाज से जुड़े एक जमीनी नेता बने रहे. करुणाकरण की तरह वे अपनी हिंदू पहचान को उभारने से परहेज नहीं करते थे. 5 अगस्त 2020 को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखी तो गोगोई की टिप्पणी थी कि इस दिन को निस्संदेह राष्ट्रीय स्तर पर एक महान दिवस के रूप में याद किया जाएगा, क्योंकि इसने दो भिन्न धर्मों से संबंधित विवाद में दो पक्षों के बीच की कड़वाहट को खत्म किया है.
सवाल यह है कि क्या गौरव भी अपने पिता की तरह सॉफ्ट हिंदुत्व को अपनाते हुए भाजपा और मुस्लिम केंद्रित कट्टरपंथी पार्टियों के बीच की कोई राह निकाल पाएंगे? और इससे भी बड़ा सवाल- क्या कांग्रेस आलाकमान उन्हें उनके राज्य में पर्याप्त फ्री हैंड दे सकेगा?
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1 hour ago
