69 साल पुरानी वो कहानी, जब पानी में समा गई ट्रेन, करीब 154 लोगों की मौत

1 hour ago

Last Updated:November 23, 2025, 06:31 IST

Train Accident- 23 नवंबर 1956 को थूथुकुदी एक्सप्रेस अरियालुर तमिलनाडु में पुल टूटने से नदी में समा गई, 154 मौतें हुईं. लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दिया. बचाव में ग्रामीण आगे आए. ट्रेन चेन्नई से थूथुकुदी की ओर जा रही थी. इस ट्रेन में करीब 800 यात्री सवार थे. नदी के ऊपर रेलवे पुल बना था, जो भारी बाढ़ की वजह से ध्वस्त हो गया था.

69 साल पुरानी वो कहानी, जब पानी में समा गई ट्रेन, करीब 154 लोगों की मौतलगातार बारिश की वजह से नदी पर बना पुल घ्‍वस्‍त हो गया था.

नई दिल्‍ली. तेज बारिश की वजह से इलाके में बाढ़ आ गयी थी, नदियां उफना रहीं थीं. सड़कों में पानी भर गया था. आने-जाने के लिए ट्रेन ही एक साधन बचा था. लोग इसी के सहारे लंबी दूर तय कर रहे थे. दक्षिण भारत की एक नदी का जल स्‍तर बढ़ने से रेलवे पुल कमजोर हो चुका था. ट्रेन के गुजरते ही पुल ढह गया और ट्रेन पानी में समा गयी. यह हादसा आज से करीब 69 साल पहले आज ही के दिन हुआ था.

23 नवंबर 1956 को तमिलनाडु में भारी बारिश हो रही थी. इस वजह से तमाम इलाकों में बाढ़ के हालात थे. ट्रेन नंबर 16236 थूथुकुदी एक्सप्रेस चेन्नई से थूथुकुदी की ओर जा रही थी. इस ट्रेन में करीब 800 यात्री सवार थे. अरियालुर रेलवे स्टेशन से महज दो मील दूर मारुदैयारु नदी पूरी उफान पर थी. चारों तरफ पानी ही पानी दिख रहा था. इसी नदी के ऊपर रेलवे पुल बना था, जो भारी बाढ़ की वजह से ध्वस्त हो गया था.

थूथुकुदी एक्सप्रेस के लोको पायलट को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं दी गयी. ट्रेन अपनी स्‍पीड से आगे बढ़ रही थी. हालांकि उस समय संचार माध्‍यम आज जैसा नहीं था. जिससे तुरंत सूचना मिल जाती. सुबह करीब 4.30 बजे ट्रेन यहां पहुंची. घने बादलों की वजह से आसपास अंधेरा था. इस वजह से लोको पायलट को दूर तक नहीं दिख रहा था.

कई दिनों से लगातार बारिश

पिछले कई दिनों से हो रही मूसलाधार बारिश ने नदी का जलस्तर इतना बढ़ा दिया था कि पानी रेल की पटरी तक पहुंच गया. पुल के खंभे कमजोर पड़ चुके थे और कटाव से 20 फुट लंबा हिस्सा धंस गया था. ट्रेन  मारुदैयारु नदी पर बने पुल पर पहुंची और जब तक लोको पायलट कुछ समझ पाता. ट्रेन नदी में समा गयी है. कई कोच पानी में गिर गए. ट्रेन में ज्‍यादातर यात्री सोए थे. उन्‍हें समझ में नहीं आया कि क्‍या हुआ है. चारों तरफ हाहाकार मच गया. लोग मदद के लिए गुहार लगाने लगे.

सबसे पहले आसपास के गांवों के ग्रामीण मौके पर पहुंचे और बचाव कार्य शुरू किया.

लोको पायलट को नहीं था अलर्ट

कुछ स्रोतों में हादसे वाले स्थान को अरियानकावु, केरल बताया गया है, लेकिन ऐतिहासिक रिकॉर्ड्स से पुष्टि होती है कि यह अरियालुर, तमिलनाडु की घटना है, जो केरल सीमा के निकट है. रात 22 नवंबर को मद्रास (अब चेन्नई) से रवाना हुई यह ट्रेन 13 बोगियों वाली थी. यात्रियों में ज्यादातर दक्षिण भारत के आम लोग थे, जो परिवारों के साथ घर लौट रहे थे. सुबह होते-होते ट्रेन अरियालुर-कल्लागम स्टेशनों के बीच पुल पर पहुंची. रिपोर्ट के अनुसार ट्रेन के लोको पायलट को कोई चेतावनी नहीं मिली.

चार ट्रेन गुजरने के बाद हादसा

इस ट्रेन के गुजरने से पहले चार ट्रेनें गुजर चुकी थीं, लेकिन पांचवीं बार जब थूथुकुदी एक्सप्रेस आई, तो इंजन और सात बोगियां पटरी से उतर गईं. तेज धमाके के साथ पूरा हिस्सा नदी में लुढ़क गया.

पानी करे रेत समझकर कूदे यात्री

अंधेरे में यात्री पानी को रेत समझकर कूद पड़े, लेकिन उफनती धारा ने उन्हें लील लिया. कई बोगियां पूरी तरह डूब गईं, और मलबे में दबकर सैकड़ों फंस गए. हादसे की त्रासदी इतनी भयावह थी कि शुरुआती रिपोर्ट्स में 250 मौतों का अनुमान लगाया गया. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 154 लोग मारे गए, जबकि 110 से ज्यादा घायल हुए. दो दिनों तक चले बचाव कार्य में सिर्फ 150 लाशें बरामद हुईं. बाकी शव कभी नहीं मिले, क्योंकि नदी का तेज बहाव उन्हें बहा ले गया.

सबसे पहले ग्रामीण पहुंचे मौके पर

स्थानीय ग्रामीणों ने सबसे पहले मदद की. सिल्लाकुड़ी, मेट्टल और अरियालुर के लोग शोर सुनकर दौड़े. लोग बाढ़ में उतरकर बोगियों में घुसे और जीवित यात्रियों को खींचकर बाहर निकाला. कई लोग घंटों तक फंसे रहे, इसके बाद निकाला जा सका.  तिरुचिरापल्ली से बचाव दल पहुंचा.

जांच रिपोर्ट में पु‍ल कमजोर

सरकारी जांच रिपोर्ट के अनुसार पुल पुराना और कमजोर था. भारी बारिश के बावजूद रेलवे अधिकारियों ने ट्रेनों का संचालन जारी रखा. रिपोर्ट में कहा गया कि इंजीनियरिंग और मौसम की अनदेखी हादसे की मुख्य वजहें थीं. रिपोर्ट के अनुसार यह हादसा महज दो महीने पहले हुए महबूबनगर रेल हादसे (2 सितंबर 1956) से मिलता-जुलता था, जहां भी बाढ़ से पुल गिरा था.

लाल बहादुर शास्‍त्री ने दिया इस्‍तीफा

इस हादसे के बाद रेल मंत्री लाल बहादुर शास्त्री अपनी नैतिक जिम्मेदारी ली  और 7 दिसंबर 1956 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को इस्तीफा सौंप दिया. नेहरू ने इसे स्वीकार किया. हादसे के बाद रेलवे ने पुलों की मजबूती और बाढ़ चेतावनी तकनीक पर ध्‍यान दिया गया.

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Location :

New Delhi,New Delhi,Delhi

First Published :

November 23, 2025, 06:31 IST

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