कौन थे नजीब अहमद, जो रहस्यमय हालात में जेएनयू से हुए लापता, क्या था पूरा मामला

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Last Updated:July 01, 2025, 12:29 IST

Najeeb Ahmed: जेएनयू के छात्र नजीब अहमद 15 अक्टूबर 2016 को लापता हुए थे. एक दिन पहले नजीब की एबीवीपी के सदस्य छात्रों से हॉस्टल में हाथापाई हुई थी. नौ साल पहले के इस मामले को कोर्ट ने बंद करने की अनुमति दे दी ह...और पढ़ें

कौन थे नजीब अहमद, जो रहस्यमय हालात में जेएनयू से हुए लापता, क्या था पूरा मामला

नजीब अहमद 15 अक्टूबर 2016 को विश्वविद्यालय के माही-मांडवी हॉस्टल से लापता हो गए थे.

हाइलाइट्स

नजीब अहमद 15 अक्टूबर 2016 को जेएनयू से लापता हुए थेसीबीआई ने नजीब अहमद मामले की जांच बंद कर दी हैनजीब की मां ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी थी

Najeeb Ahmed: दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पूर्व छात्र नजीब अहमद के लापता होने के मामले को बंद करने की अनुमति दे दी. नजीब 15 अक्टूबर 2016 को लापता हो गए थे. 2018 में संघीय जांच एजेंसी ने मामले की जांच बंद कर दी थी. क्योंकि नजीब अहमद का पता लगाने के उसके प्रयासों से कोई नतीजा नहीं निकला था. इसके बाद सीबीआई ने दिल्ली हाईकोर्ट से ऐसा करने की अनुमति मिलने के बाद अदालत के समक्ष अपनी क्लोजर रिपोर्ट दायर की. 

नजीब अहमद की मां फातिमा नफीस ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी. उनके वकील ने कोर्ट के सामने दलील दी थी कि यह एक ‘राजनीतिक मामला’ है. उन्होंने कहा कि सीबीआई ‘अपने आकाओं के दबाव में आ गई है.” जेएनयू में एमएससी बायोटेक्नोलॉजी के छात्र 27 वर्षीय नजीब अहमद 15 अक्टूबर 2016 को विश्वविद्यालय के माही-मांडवी हॉस्टल से लापता हो गए थे. इससे पहले रात में कथित तौर पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से जुड़े कुछ छात्रों के साथ उनकी हाथापाई हुई थी. हालांकि हॉस्टल वार्डन ने नजीब को ऑटो से विश्वविद्यालय परिसर से बाहर जाते हुए देखने की पुष्टि की थी.

इलाज कराने से किया इनकार
गुमशुदगी के इस मामले की जांच पहले दिल्ली पुलिस कर रही थी, उसे बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया. केंद्रीय एजेंसी ने अप्रैल की शुरुआत में अदालत को सूचित किया था कि नजीब अहमद ने एबीवीपी से जुड़े छात्रों द्वारा कथित तौर पर हमला किए जाने के बाद सफदरजंग अस्पताल में इलाज कराने से इनकार कर दिया था. इसमें यह भी कहा गया कि अहमद की यात्रा की पुष्टि करने वाले दस्तावेजों के अभाव के कारण अस्पताल के डॉक्टर और मेडिकल अटेंडेंट के बयान नहीं लिए जा सके. जांच अधिकारी ने दावा किया, “अस्पताल जाने पर नजीब को एमएलसी तैयार करने की सलाह दी गई थी. हालांकि, वह अपने दोस्त मोहम्मद कासिम के साथ हॉस्टल वापस चला गया और उसने कोई एमएलसी (मेडिको-लीगल सर्टिफिकेट) तैयार नहीं करायी.”

नजीब अहमद की मां फातिमा नफीस ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी.

2016 में क्या हुआ नजीब के साथ?
नजीब अहमद की मां फातिमा नफीस के अनुसार वह छुट्टियों के बाद 13 अक्टूबर 2016 को जेएनयू लौटा था. 15-16 अक्टूबर की मध्य रात्रि में उसने अपनी मां को फोन करके बताया था कि उसके साथ कुछ गलत हुआ है. अपनी एफआईआर में फातिमा नफीस ने यह भी कहा कि अहमद के रूममेट कासिम ने उन्हें बताया कि झगड़ा हुआ था और वह घायल हो गया था. अगले दिन उन्होंने अपने बेटे से मिलने के लिए उत्तर प्रदेश के बदायूं से बस पकड़ने का फैसला किया. जब वह दिल्ली पहुंची तो उन्होंने नजीब से बात की और उसे अपने हॉस्टल में मिलने के लिए कहा. लेकिन जब वह माही-मांडवी हॉस्टल के कमरा नंबर 106 में पहुंचीं तो नजीब अहमद का कोई पता नहीं था. वह तब से लापता था.

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क्या था पूरा मामला
नजीब अहमद ने 14 अक्टूबर की रात को जेएनयू के माही-मांडवी छात्रावास में अपने कमरे के बाहर एबीवीपी के तीन सदस्यों के साथ कथित तौर पर हाथापाई की थी. एक दिन बाद वह लापता हो गया. तत्कालीन जेएनयूएसयू निकाय ने एबीवीपी पर नजीब के अपहरण का आरोप लगाया था. हालांकि एबीवीपी ने कहा है कि नजीब के रहस्यमय ढंग से लापता होने में उसकी कोई भूमिका नहीं है. इस मामले में कथित ढिलाई के लिए जेएनयू प्रशासन की हर ओर आलोचना हुई. जेएनयू प्रशासन की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में नजीब अहमद को उसके छात्रावास में हुई मारपीट का आरोपी बताया गया. छात्र ‘नजीब के लिए न्याय’ और ‘नजीब कहां है’ अभियान पर अड़े हुए थे. इस बीच एबीवीपी नेता सौरभ शर्मा ने दावा किया कि नजीब ने स्वीकार किया है कि जब तीनों उसके कमरे में गए थे तो उसने विक्रांत कुमार नामक एबीवीपी सदस्य को थप्पड़ मारा था. उन्होंने कहा कि इसके बाद उसे 21 अक्टूबर तक हॉस्टल छोड़ने के लिए कहा गया था.

छात्रों ने ‘नजीब के लिए न्याय’ और ‘नजीब कहां है’ अभियान चलाया था.

जांच में एबीवीपी सदस्य दोषी मिला
जेएनयू प्रशासन ने प्रॉक्टोरियल जांच शुरू की थी. जांच में एबीवीपी सदस्य विक्रांत कुमार को 14 अक्टूबर को हाथापाई के दौरान नजीब अहमद पर हमला करने का दोषी पाया गया. एक आधिकारिक आदेश में कहा गय, “प्रॉक्टोरियल जांच में विक्रांत कुमार को 14 अक्टूबर को नजीब अहमद पर हमला करने और भड़काऊ व्यवहार के साथ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने में शामिल पाया गया है. यह अनुशासनहीनता और कदाचार का कृत्य है.” उन्हें अपना बचाव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया कि उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए. एबीवीपी सदस्य और जेएनयूएसयू के पूर्व सदस्य सौरभ शर्मा ने जांच को एकतरफा होने पर सवाल उठाया था. उन्होंने कहा, “प्रॉक्टर ने उन छात्रों के बयान को ध्यान में रखा है जो वहां मौजूद ही नहीं थे. न केवल जांच पक्षपातपूर्ण है बल्कि प्रशासन भी वामपंथी छात्र संघ का पक्ष ले रहा है.”

एसआईटी और अपराध शाखा ने की जांच
अक्टूबर में दिल्ली पुलिस ने उत्तर प्रदेश के बदायूं के रहने वाले नजीब का पता लगाने के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया था. एसआईटी का नेतृत्व एडिशनल डीसीपी-II (दक्षिण) मनीषी चंद्रा कर रहे थे. हालांकि, एसआईटी को कोई सफलता नहीं मिली और बाद में मामला दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा को सौंप दिया गया. इस मामले में नौ छात्रों को संदिग्ध बताया गया और हाईकोर्ट ने पुलिस को पॉलीग्राफ परीक्षण कराने तथा अन्य सुराग तलाशने का निर्देश दिया था. अदालत ने साल 2017 फरवरी में टिप्पणी की थी, “छात्र अक्टूबर 2016 में लापता हो गया था, अब फरवरी आ गई है. लगभग चार महीने बीत चुके हैं और कोई सुराग कहीं नहीं पहुंच रहा है. हमने पॉलीग्राफ टेस्ट के लिए कहा क्योंकि अन्य सुरागों से कोई नतीजा नहीं निकला है.” 

मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की याचिका
पीठ ने यह टिप्पणी नौ संदिग्धों में से एक की याचिका पर सुनवाई करते हुए की थी. इस याचिका में हाईकोर्ट के 14 दिसंबर और 22 दिसंबर 2016 के आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी. इसने कहा कि इन आदेशों के जरिए न्यायालय जांच और उसके आगे बढ़ने के तरीके को नियंत्रित कर रहा है. आरोप लगाया कि इससे जांच पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है. इसने कहा कि इन आदेशों ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 22 के तहत दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है. इसी आवेदक ने पुलिस से मिले नोटिस को चुनौती दी थी, जिसमें उसे ट्रायल कोर्ट में उपस्थित होकर झूठ पकड़ने वाले परीक्षण के लिए सहमति देने या इनकार करने का निर्देश दिया गया था. 

जानकारी देने वाले को रखा था नकद इनाम
हाईकोर्ट ने पहले ही उसी आवेदक द्वारा दूसरे वकील के माध्यम से दायर की गई इसी तरह की याचिका का निपटारा कर दिया था. कोर्ट ने उसे आगे आकर जांच में शामिल होने के लिए कहा था. दिल्ली सरकार के वकील ने उसके आवेदन का विरोध करने के लिए इस बिंदु को उजागर किया. दिल्ली पुलिस ने कहा था कि वह नौ संदिग्धों का झूठ पकड़ने वाला परीक्षण करने में असमर्थ है, क्योंकि किसी भी छात्र ने नोटिस का जवाब नहीं दिया है. नजीब की मां फातिमा नफीस ने पहले बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर जांच एजेंसियों को अपने बेटे का पता लगाने के आदेश देने की मांग की थी. दिल्ली पुलिस ने नजीब के बारे में जानकारी देने वाले को 10 लाख रुपये का इनाम रखा था.

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New Delhi,Delhi

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