कृष्ण के दुनिया से जाते ही क्यों खत्म हुई अर्जुन के गांडीव की ताकत, तब ये हुआ

9 hours ago

महाभारत युद्ध में अर्जुन को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के तौर पर याद किया जाता है. उस युद्ध में पांडवों की जीत का सबसे बड़ा सेहरा उन्हीं पर था. इससे पहले भी अर्जुन ने बार- बार अपने तीर और धनुष से अपनी श्रेष्ठता ऐसी जाहिर की कि बड़े से बड़ा योद्धा और बड़ी से बड़ी सेना भी उनके छूटते तीरों के सामने हार मान जाती थी. इन्हीं अर्जुन के तीर धनुष ने बाद में जवाब दे दिया. वो लाख तीन धनुष चलाते रहे लेकिन साधारण से डाकुओं ने उन्हें हरा दिया.

ये बात हैरान जरूर करती है लेकिन है सच. जब अर्जुन कृष्ण के निधन के बाद द्वारिका गए तो वहां से लौटते हुए उनका बुरा हाल हो गया. वह उनके महल की सैकड़ों महिलाओं को हिफाजत में लेकर हस्तिनापुर लौट रहे थे. वजह ये थी कि कृष्ण के निधन के बाद द्वारिका का डूबना शुरू हो गया था. ये समुद्र में समाने लगी थी. ऐसे में अर्जुन से सभी ने कहा कि वह इन महिलाओं को लेकर हस्तिनापुर ले जाएं, वहां ये सुरक्षित रहेंगी.

साधारण डाकुओं को भी नहीं हरा पाए

लेकिन लौटते समय रास्ते में उन्होंने देखा कि उनके तीर-धनुष की धार खत्म हो चुकी थी. उनकी धनुर्विद्या गायब हो गई. इसने जवाब दे दिया. कृष्ण के निधन के बाद हस्तिनापुर लौटते हुए उनका दस्युओं का सामना हुआ. दस्यु अर्जुन के साथ जा रही कई महिलाओं को उठा ले गए. अर्जुन कुछ नहीं कर सके. उन्होंने धनुष पर तीर चढ़ाए लेकिन वो चल ही नहीं रहे. चल भी रहे थे तो इनका असर नहीं हो रहा था.

कृष्ण के निधन के बाद जब अर्जुन जब द्वारिका की महिलाओं की रक्षा करते हुए हस्तिनापुर लेकर लौट रहे थे तो रास्ते में उन्हें साधारण डाकुओं ने ना केवल हराया बल्कि कई महिलाओं का भी हरण कर ले गए. तब अर्जुन केवल देखते रह गए. (Image generated by Leonardo AI)

कृष्ण के निधन का क्या असर पड़ा

इसका कारण उनकी धनुर्विद्या में कमी नहीं, बल्कि गहरे आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और दैवीय वजहें. दरअसल अर्जुन की धनुर्विद्या की जबरदस्त ताकत का प्रमुख स्रोत भगवान कृष्ण की कृपा और उपस्थिति थी. कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. युद्ध में उनके सारथी के रूप में मार्गदर्शन किया था. उनकी गंभीर शक्ति और युद्ध-कौशल में कृष्ण का आशीर्वाद महत्वपूर्ण था. कृष्ण के निधन के बाद वह दैवीय समर्थन समाप्त हो गया, जिसके कारण अर्जुन की शक्ति कमजोर पड़ गई.

गांडीव धनुष की शक्ति खत्म हो गई

अर्जुन का गांडीव धनुष उन्हें अग्निदेव से मिला था. ये दैवीय अस्त्र था. यह धनुष कृष्ण की मौजूदगी के साथ दैवीय उद्देश्य के लिए काम करता था. युद्ध के बाद और कृष्ण के निधन के बाद गांडीव की शक्ति का उद्देश्य खत्म हो गया. इस वजह से ये धनुष केवल एक साधारण हथियार बन गया, जिसके कारण अर्जुन इसे पहले की तरह प्रभावी ढंग से उपयोग नहीं कर पाए.

द्वारिका के लौटने के रास्ते में जिस तरह दस्युओं ने अर्जुन जैसे महान धनुर्धर को हराया, उसके बाद उनका आत्मविश्वास डोल गया. उन्हें महसूस हो गया कि एक योद्धा के रूप में उनका समय अब खत्म हो चुका है. (News18 AI)

अर्जुन का आत्मविश्वास भी डोल गया

कृष्ण के निधन ने अर्जुन को गहरे मानसिक आघात में डाल दिया. कृष्ण न केवल उनके मित्र और मार्गदर्शक थे, बल्कि उनके आत्मविश्वास का आधार भी थे. उनकी अनुपस्थिति में अर्जुन का आत्मविश्वास डगमगा गया. इससे उनका युद्ध कौशल पर भी प्रभावित हुआ. दस्युओं के सामने उनकी असफलता का कारण यह मानसिक कमजोरी भी थी.

खत्म हो गया था अर्जुन का युग

महाभारत में ये दिखाया गया हर योद्धा का समय और कर्म उसकी शक्ति को प्रभावित करता है. युद्ध के बाद अर्जुन का युग समाप्त हो चुका था. दस्युओं के सामने उनकी असफलता यह संकेत थी कि उनका युद्ध-काल खत्म हो गया, इसके साथ ही उनके गांडीव और धनुर्विद्या का असर भी.

दस्युओं के सामने अर्जुन की नाकामी प्रतीकात्मक थी. जिसने उन्हें अहसास कराया कि बिना दैवीय समर्थन और आत्मविश्वास के सबसे महान योद्धा भी असफल हो सकता है. यह घटना अर्जुन को उनकी नश्वरता और कृष्ण पर उनकी निर्भरता का अहसास कराने के लिए भी थी.

तब अर्जुन की समझ में क्या आया

कृष्ण के निधन और दस्युओं के सामने असफलता के बाद अर्जुन को जीवन की नश्वरता का अंदाज हो गया. उन्हें लग गया कि उनका युग खत्म हो गया. ये भी समझ में आया कि अब तक वो जो कुछ थे, उसमें कृष्ण का योगदान बहुत ज्यादा था. ये भी समझ में आया कि समय अब बदल गया है. अब उन्हें अलग दृष्टिकोण के साथ जीवन बिताने की जरूरत है.

अर्जुन को यह उम्मीद नहीं थी कि उनके साथ दस्युओं के सामने ऐसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि उनकी शक्ति, गांडीव, और कृष्ण का साथ उन्हें अपराजेय बनाता था. हालांकि कृष्ण के उपदेश और यादव विनाश जैसे घटनाक्रमों ने उन्हें जीवन की क्षणभंगुरता के बारे में तो समझा ही दिया था. दस्युओं के सामने उनकी असफलता उनके लिए अप्रत्याशित थी.

फिर अर्जुन ने क्या फैसला किया

दस्युओं के सामने असफलता के बाद अर्जुन ने अपने प्रिय गांडीव धनुष को त्यागने का निर्णय लिया. ये धनुष उनकी शक्ति और पहचान का प्रतीक था, अब वो केवल एक साधारण हथियार में बदल चुका था. महाभारत के अनुसार, अर्जुन ने गांडीव को अग्निदेव को लौटा दिया, जिससे उन्हें ये मिला था. इसका मतलब था कि एक योद्धा के रूप में उनका जीवन खत्म हो गया है.

इसके बाद उन्होंने अपने साथ तीर धनुष रखना बिल्कुल छोड़ दिया. कहा जा सकता है कि उन्हें सांसारिकता के जिन साधनों ने बांधकर रखा था, उससे उन्होंने छुटकारा पा लिया. ऐसे भी कृष्ण के नहीं रहने और दस्युओं से ऐसी हार के बाद अर्जुन को लगने लगा था कि अब इस दुनिया में उनका काम नहीं रह गया. लिहाजा अब उन्हें यहां से कूच के बारे में सोचना चाहिए.

इसके बाद उन्होंने और अन्य पांडवों ने हस्तिनापुर का शासन युधिष्ठिर के पुत्र परीक्षित को सौंपकर वैराग्य की ओर जाने का फैसला किया. वे हिमालय की ओर तप और मोक्ष की खोज में निकल पड़े. वो हिमालय की ओर निकल पड़े, जो उनकी अंतिम यात्रा थी.

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