इमर्जेंसी लगाने से पहले इंदिरा गांधी ने क्यों मंगाई संविधान की मूल प्रति

4 hours ago

इमर्जेंसी लगाने से पहले 24 जून 1975 की दोपहर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति भवन और विधि मंत्रालय से संविधान की मूल प्रति मंगवाई. वह सुनिश्चित करना चाहती थीं कि संविधान के किस प्रावधान के जरिए इमर्जेंसी लगाई जा सकती है. उनके सलाहकार बता चुके थे कि भारतीय संविधान में आपातकाल लगाने का एक लचीला सा प्रावधान है. अब इसे देखकर खुद आश्वस्त होना चाहती थीं. संविधान की मूल प्रति आई. उन्होंने पन्ने खोले. नजरें आर्टिकल 352 पर आकर टिक गईं.

इंदिरा गांधी के सलाहकारों ने उन्हें संविधान का यही आर्टिकल पढ़ने के लिए कहा. ये था – आर्टिकल 352. यही वो प्रावधान था, जिसने 25 जून 1975 के दिन भारत का भाग्य तय किया. उसे देखने के बाद वह आश्वस्त हो गईं. उन्होंने अपने सलाहकारों को इस प्रावधान को पारिभाषित करने के लिए कहा, जिसके बाद तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली बगैर हिचकिचाहट आपातकाल के आदेश पर दस्तखत कर सकें.

संविधान के अनुच्छेद 352 में कहा गया था कि देश में ‘आंतरिक अशांति’ की स्थितियों में आपातकाल लगाया जा सकता है. ये अनुच्छेद कहता है कि अगर राष्ट्रपति को लगता है कि भारत की सुरक्षा पर आंतरिक अशांति, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से ख़तरा है, तो आपातकाल घोषित किया जा सकता है. तब ‘आंतरिक अशांति’ यानि इंटरनल डिस्टर्बेंस शब्द का मतलब बहुत लचीला था. इसका मतलब युद्ध या सशस्त्र विद्रोह जैसा साफ़ परिभाषित नहीं था.

भारतीय संविधान के आर्टिकल 352 के जरिए इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने का संवैधानिक अधिकार हासिल हुआ. (news18)

तो इस आर्टिकल ने इंदिरा गांधी को वो हथियार दे दिया

आर्टिकल 352 के जरिए इंदिरा गांधी को ऐसा संवैधानिक हथियार हासिल हो रहा था, जिसके जरिए वो राष्ट्रपति से आपातकाल की घोषणा पर दस्तखत करा सकती थीं. फिर 25 जून 1975 की देर रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से अनुच्छेद 352 के तहत ही आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कराया गया.

आधिकारिक वजह दी गई, “देश में आंतरिक अशांति और अस्थिरता, विपक्ष द्वारा सरकार गिराने की साजिश और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा”. राष्ट्रपति के दस्तख़त के साथ ही देश में नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की आज़ादी और न्यायिक निगरानी स्थगित हो गईं.

अगर इंदिरा गांधी उस दिन संविधान की प्रति मंगाकर अनुच्छेद 356 (राज्य सरकारों का निलंबन) या अनुच्छेद 360 (आर्थिक आपातकाल) देखतीं तो उन्हें ऐसा अधिकार नहीं मिलता. अनुच्छेद 352 ही ऐसा अनुच्छेद था जिसमें आंतरिक स्थिति का हवाला देकर केंद्र सरकार पूरे देश में सीधे शासन कर सकती थीं.

सियासी बवंडर लाने वाला इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

दरअसल 1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली सीट से विपक्ष के बड़े नेता राजनारायण को हराया था. इसके बाद राजनारायण ने इस चुनाव को अदालत में चुनौती दी. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया. उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी. 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. इस फैसले ने राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया.

जब इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंदिरा गांधी को चुनावी भ्रष्टाचार का दोषी ठहराया और उनके चुनाव को रद्द कर दिया तो संवैधानिक संकट की स्थिति खड़ी हो गई.  (Image:News18)

इसके बाद देश का सियासी चक्र तेजी से घूमने लगा. पूरा विपक्ष जयप्रकाश नारायण (जेपी) की अगुवाई में इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग करने लगा. देशभर में विरोध-प्रदर्शन तेज़ हो गए. जेपी ने खुलेआम सेना और पुलिस से सरकार की आज्ञा न मानने की अपील कर दी.

इंदिरा ने विश्वस्त सलाहकारों और कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा शुरू की

इस संकटपूर्ण स्थिति में इंदिरा गांधी ने अपने विश्वस्त सलाहकारों और कानूनी विशेषज्ञों से चर्चा शुरू की. सबसे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रधान सचिव पी.एन. धर और वरिष्ठ नौकरशाह ओम मेहता से विचार-विमर्श हुआ. उनकी सलाह पर ही भारतीय संविधान की मूल प्रति मंगवाई. प्रधानमंत्री निवास 1 सफदरजंग रोड पर मंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों की एक बंद कमरे की बैठक हुई.

आर्टिकल 352 में ‘आंतरिक अशांति’ पर इमर्जेंसी का प्रावधान था

संविधान की प्रति मंगवाने के बाद इंदिरा गांधी को यह समझाने और बताने का जिम्मा उस समय के कानून मंत्री एच.आर. गोखले, अटॉर्नी जनरल एन.एन. पाराशर और वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ओम मेहता ने निभाया. इन्होंने प्रधानमंत्री को संविधान के अनुच्छेद 352 के बारे में विस्तार से बताया. विचार-विमर्श के दौरान सबसे अहम बात यह सामने आई कि उस समय संविधान में ‘Internal Disturbance’ (आंतरिक अशांति) शब्द का मतलब काफी लचीला और अस्पष्ट था. सत्ता में बैठे लोग अपनी सुविधा से इसकी व्याख्या दे सकते थे. न तो सुप्रीम कोर्ट और न ही संसद ने अब तक इसकी सटीक परिभाषा तय की थी.

इंदिरा गांधी को उनके सलाहकारों ने बताया कि आपातकाल लागू करने के लिए संसद से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है. इसकी वजह भी बताई. (news18)

क्या संसद की पूर्व मंजूरी भी जरूरी थी

इंदिरा गांधी ने यह भी जानना चाहा कि क्या बिना संसद की पूर्व मंजूरी के आपातकाल लगाया जा सकता है. अटॉर्नी जनरल एन.एन. पाराशर ने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री की लिखित सलाह पर राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर सकते हैं. संसद में इसकी पुष्टि बाद में करानी होती है. यह सुनकर इंदिरा गांधी ने स्थिति का पूरा राजनीतिक मूल्यांकन किया और आपातकाल लगाने का मन बना लिया.

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 25 जून 1975 की शाम पहले राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से मिलने गईं और फिर रात में. वह इंदिरा गांधी के करीबी और विश्वस्त माने जाते थे. इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा संबंधी दस्तावेज राष्ट्रपति को पेश किए. उन्होंने वही तर्क दिए जो उनके सलाहकारों ने सुझाए थे. देश में कानून व्यवस्था बिगड़ रही है, आंतरिक स्थिति अस्थिर है, विपक्ष साजिश कर रहा है, प्रधानमंत्री की सुरक्षा को खतरा है. साथ ही जेपी ने सेना-पुलिस से सरकार का आदेश न मानने की अपील की है.

25 जून की रात फखरुद्दीन अली अहमद ने दस्तावेज पर बिना विशेष आपत्ति के हस्ताक्षर कर दिए. इसी के साथ 25 जून 1975 की रात 12 बजे देशभर में आपातकाल लागू कर दिया गया. आपातकाल की अधिसूचना 25 जून की रात राष्ट्रपति भवन से जारी कर दी गई.

आंतरिक अशांति को कैसे पारिभाषित किया गया

एक सवाल ये भी था कि आंतरिक अशांति को कैसे देश की तत्कालीन स्थितियों के साथ पारिभाषित किया जाए. तो इंदिरा गांधी ने इन गतिविधियों को आंतरिक अशांति के रूप में गिनाया.
– जयप्रकाश नारायण द्वारा देशभर में चलाए जा रहे भ्रष्टाचार विरोधी और सरकार विरोधी आंदोलन को इंदिरा गांधी ने सबसे बड़ा खतरा बताया.
– लाखों की संख्या में छात्र और नौजवान सड़कों पर उतर आए थे.
– सरकारी कार्यालयों, ट्रेनों, पुलिस स्टेशनों और अदालतों के घेराव किए जा रहे थे।
– जेपी ने सेना और पुलिस से सरकार के अवैध आदेश न मानने का आह्वान किया था, जिसे इंदिरा गांधी ने संवैधानिक व्यवस्था के लिए सीधा ख़तरा कहा
– 1973-74 के बीच देश में लगातार श्रमिक हड़तालें हो रही थीं।
– सबसे बड़ी 1974 की रेलवे हड़ताल, जिसमें 17 लाख कर्मचारी शामिल थे और पूरा रेल तंत्र ठप हो गया था.
– कोयला, बिजली, बैंक और बंदरगाहों में भी कामकाज ठप होने लगा था
– इंदिरा गांधी ने ये प्रचारित किया कि विपक्षी नेता देशभर में लोगों को भड़काकर, दिल्ली कूच कर सरकार को जबरन गिराने की योजना बना रहे हैं.
-पेट्रोल-डीजल की कमी, खाद्यान्न संकट, महंगाई और बेरोजगारी के कारण देश के कई हिस्सों में असंतोष था. सरकार ने इसे भी ‘आंतरिक व्यवस्था के लिए खतरा’ बताया.

इंदिरा गांधी के सलाहकारों एच.आर. गोखले (कानून मंत्री), एन.एन. पाराशर (अटॉर्नी जनरल) और ओम मेहता ने उन्हें बताया कि इस शब्द के अंतर्गत सामाजिक-राजनीतिक उथल-पुथल, सड़कों पर आंदोलन, विरोध प्रदर्शन, सरकारी तंत्र की अवहेलना,प्रशासन का पक्षाघात आ सकता है. जब इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को आपातकाल की फाइल दी, तो उसमें यही बिंदु लिखे गए.
– देश में व्यापक राजनीतिक अस्थिरता
– सरकार को गिराने की साजिश
– विरोध प्रदर्शनों से राष्ट्रीय सुरक्षा और प्रशासन ठप होने की आशंका
– प्रधानमंत्री की जान को खतरा
– संविधान व्यवस्था के लिए संकट

बाद में 1978 में जब मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी शासन में आई तो उसने संविधान संशोधन (44वां संशोधन) कर ‘Internal Disturbance’ शब्द हटाकर उसकी जगह ‘Armed Rebellion’ (सशस्त्र विद्रोह) कर दिया गया, ताकि भविष्य में कोई सरकार इस शब्द का दुरुपयोग न कर सके.

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