Last Updated:June 25, 2025, 10:42 IST
50 years of emergency: आज इमर्जेंसी की 50वीं बरसी है. इस मौके पर देश में इमर्जेंसी थोपने वाली पूर्व पीएम इंदिरा गांधी को लेकर नीरजा चौधरी ने एक सुंदर लेख लिखा है. इस लेख में नीजरा चौधरी ने इंदिरा गांधी के तीन रूपों दुर्गा, तानाशाह और लोकतंत्र के पहरुआ की चर्चा की है. उनका यह तीनों रूप 1970 से 1975 के बीच देखा गया.

50 years of emergency: आज यानी बुधवार को आपातकाल की 50वीं बरसी है. 25 जून, 1975 को इंदिरा गांधी ने भारत के लोकतंत्र को एक काली रात में धकेल दिया था. लेकिन उनकी कहानी सिर्फ आपातकाल तक सीमित नहीं. वह दुर्गा थीं. वह तानाशाह कहलाईं. वह लोकतांत्रिक भी थीं. उनका यह तीनों रूप केवल पांच साल के भीतर यानी 1970 से 1975 के बीच देखा गया. फोटो- AP.

50 years of emergency: इंडियन एक्सप्रेस में सीनियर जर्नलिस्ट नीरजा चौधरी ने आपातकाल के 50 साल पर एक लेख लिखा है. इसमें उन्होंने इंदिरा की जिंगदी की तीन धाराओं को उजागर किया गया है. यह भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री की वह कहानी है, जो शक्ति, विवाद और जनता के प्रति समर्पण की त्रिवेणी बनकर बही. फोटो- एएफपी

50 years of emergency: इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को इलाहाबाद में हुआ. नेहरू खानदान की इकलौती संतान. स्वतंत्रता संग्राम उनके खून में था. इंदिरा की पढ़ाई ऑक्सफोर्ड और शांतिनिकेतन में हुई. लेकिन सियासत की असली पाठशाला उनकी जिंदगी थी. 1964 में नेहरू की मृत्यु के बाद वह लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनीं.

50 years of emergency: 1966 में वह भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. शुरुआत में उन्हें गूंगी गुड़िया कहा गया. लेकिन इंदिरा ने अपनी ताकत दिखाई. 1971 का भारत-पाक युद्ध. बांग्लादेश का निर्माण. अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें दुर्गा का अवतार बताया. गरीबी हटाओ का नारा. बैंकों का राष्ट्रीयकरण. ये कदम उन्हें जनता की मसीहा बनाते थे. लेकिन उनकी शख्सियत का दूसरा रंग भी था. वह सत्ता को अपने हाथ में रखना चाहती थीं. उनके फैसले कठोर थे.

50 years of emergency: 25 जून, 1975. वह तारीख जब इंदिरा ने आपातकाल लागू किया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनका रायबरेली से चुनाव रद्द कर दिया था. जेपी आंदोलन ने सरकार को घेर लिया था. इंदिरा ने संविधान के अनुच्छेद 352 का इस्तेमाल किया. प्रेस पर सेंसरशिप लगी. विपक्षी नेता जेल गए. नागरिक अधिकार निलंबित कर दिए गए. यह इंदिरा का तानाशाह वाला चेहरा था. उनके बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में नसबंदी अभियान ने जनता में भय पैदा किया.

50 years of emergency: 1977 में इंदिरा ने आपातकाल हटाया. चुनाव कराए. यह उनका लोकतांत्रिक चेहरा था. जनता ने उन्हें सबक सिखाया. कांग्रेस हारी. इंदिरा सत्ता से बाहर. लेकिन उनकी हिम्मत नहीं टूटी. 1980 में वह फिर सत्ता में लौटीं. जनता का भरोसा जीता. लेकिन पंजाब में सिख उग्रवाद ने नया संकट खड़ा किया. 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार. स्वर्ण मंदिर में सेना भेजी गई. यह फैसला इंदिरा के लिए घातक साबित हुआ. 31 अक्टूबर, 1984 को उनके अंगरक्षकों ने उनकी हत्या कर दी.

50 years of emergency: इंदिरा की जिंदगी विरोधाभासों से भरी थी. वह दुर्गा थीं, जिन्होंने युद्ध जीता. वह तानाशाह थीं, जिन्होंने लोकतंत्र को जोखिम में डाला. वह लोकतांत्रिक थीं, जिन्होंने हार के बाद भी जनता का विश्वास जीता. नीरजा चौधरी की रिपोर्ट में उनकी तुलना एक ऐसी नेता से की गई है, जो सत्ता और सेवा के बीच संतुलन बनाती रहीं. उनकी गलतियां थीं. लेकिन उनके इरादे देश को मजबूत करने के थे.

50 years of emergency: आज, आपातकाल की 50वीं बरसी पर, इंदिरा गांधी की विरासत पर बहस जारी है. उनकी नीतियां. उनके फैसले. उनकी जीत और हार. यह सब भारत के इतिहास का हिस्सा है. इंदिरा आज भी जीवित हैं. हर उस चर्चा में, जो लोकतंत्र की ताकत और कमजोरियों को टटोलती है. उनकी त्रिवेणी आज भी बह रही है.