अकबर को भांग की लत, जहांगीर जबरदस्त पियक्कड़, जहांआरा बेगम थी शराब की शौकीन

2 hours ago

हालांकि इस्लाम में शराब पीने पर पाबंदी है लेकिन ये मनाही मुगल बादशाहों पर तो कम से कम लागू नहीं दिखती है, क्योंकि कई मुगल शंहशाह जमकर शराब पीते थे. लेकिन कुछ बादशाहों को इससे एलर्जी थी. कुछ बादशाहों को तंबाखू बिल्कुल पसंद नहीं थी. वैसे अकबर भांग का सेवन करता था. कभी कभार शराब पीता था.

मुगल बादशाहों में खासकर बाबर, हुमायूं और जहांगीर ने शराब का सेवन किया. उन्हें शराब का बहुत शौक था. अकबर के दरबार में आए पहले जेसुइट फादर मॉन्स्टर्रेट ने लिखा है कि अकबर शायद ही कभी शराब पीते थे क्योंकि उन्हें भांग ज़्यादा पसंद थी.

बाबर अपनी आत्मकथा “बाबरनामा” में खुलकर अपनी शराब पीने की आदत और बाद में पछतावे का जिक्र करता है. उसने एक बार अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक शराब बनाने की विधि भी तैयार की थी. हालांकि जीवन के आखिरी दिनों में उसने इसका त्याग कर दिया.

हुमायूं अफीम का खूब सेवन करने के लिए जाना जाता था. कहा जाता है कि वह इसे सीधे या जाम के रूप में लेता था. अक्सर इसके असर में भी रहता था. अब्दुल कादिर बदायूंनी और हुमायूं की बहन गुलबदन बेगम के लेखन में इसके संकेत मिलते हैं.

अकबर भांग का सेवन करता था

अकबर युवावस्था में जरूर शराब पीता था लेकिन बाद के वर्षों में उसने इसे छोड़ दिया. अलबत्ता वह भांग का सेवन जरूर करता था. सलमा हुसैन की पुस्तक “द एम्परर्स टेबल: द आर्ट ऑफ मुगल कुजीन” भी कहती है कि अकबर नियमित रूप से भांग का सेवन करते थे. लेकिन ये भी कहा जाता है कि ये सेवन वह औषधि के रूप में लेता था.

स्पेनिश जेसुइट पादरी फादर एंटोनी मॉन्स्टर्रेट 1580-1582 के दौरान अकबर के दरबार में रहे. उन्होंने लिखा है कि अकबर शराब नहीं पीते थे, लेकिन वह “एक प्रकार की ऐसी शराब पीते थे जो भांग के पौधे से बनती थी”.

अबुल फ़ज़ल ने “आईन-ए-अकबरी” में स्पष्ट रूप से “माजुन” नामक एक मिश्रण का उल्लेख किया है, जो भांग, विभिन्न मेवों, मसालों और कभी-कभी अफीम को मिलाकर बनाया जाता था. इसे स्वास्थ्यवर्धक और मन को प्रसन्न करने वाला माना जाता था. अकबर इसका सेवन करते थे, विशेषकर त्योहारों या विशेष अवसरों पर. आईन-ए-अकबरी में “भंग-की-बुंद” (भांग की बूंदें) नामक एक तैयारी का भी जिक्र है. 16वीं सदी में भांग को एक औषधि माना जाता था. इसे सिरदर्द, अनिद्रा, पाचन संबंधी समस्याओं और यहां तक कि मनोदशा में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जाता था.

जहांगीर बड़ा पियक्कड़ था

मुगल बादशाहों में सबसे बड़ा पियक्कड़ जहांगीर को माना जाता है. जो जबरदस्त शराब पीने के लिए कुख्यात था. उसके पिता अकबर ने भी उसको कई बार रोकने की कोशिश की लेकिन उस पर इसका कोई असर नहीं पड़ा. उसकी आत्मकथा “तुजुक-ए-जहांगीरी” में वह अक्सर अपने शराब सेवन और बाद में होने वाली बीमारी का जिक्र करते हैं. वह रोजाना शाम को शराब पीते थे. कहा जाता है कि अपने शासनकाल के दौरान वह बड़े शराबी बन चुके थे. जहांगीर के बारे में कहते हैं कि उन्होंने अफीम का भी सेवन किया, जिसे वह अक्सर शराब के साथ मिलाकर लेते थे.

शाहजहां और औरंगजेब संयमी थे

शाहजहां संयमी थे और औरंगज़ेब भी. शाहजहां की बेटी जहांआरा बेगम शराब की बहुत शौकीन थी. उसे फारस, काबुल और कश्मीर से शराब आयात की जाती थी. हालांकि लिखा तो ये भी है कि औरंगजेब की बेटी भी चोरीचुपके शराब का नशा कर लेती थी.

औरंगजेब कट्टर इस्लामी सम्राट थे. उसने शराब तथा सभी प्रकार के नशीले पदार्थों को सख्ती से प्रतिबंध लगा दिया. उसका निजी जीवन बेहद सादगीभरा और धार्मिक था. बाद के मुगल बादशाहों में मुहम्मद शाह ‘रंगीला’ शराब, संगीत और मनोरंजन में डूबा रहने वाला था. बहादुर शाह जफर जैसे अंतिम मुगल सम्राट भी शराब और अफीम का सेवन करते थे. उनके दरबार के विवरणों से इस बात का पता चलता है.

शहजादी जहांआरा बेगम शराब की शौकीन थी

मुगल शहजादियों में जहांआरा बेगम जितनी ताकतवर और धनी थीं, उतनी ही शराब पीने की शौकीन भी. फ्रांसीसी चिकित्सक एवं यात्री फ्रांस्वा बर्नियर ने अपनी पुस्तक “ट्रेवल्स इन मुगल एम्पायर” में साफ तौर पर लिखा है कि जहांआरा बेगम को शराब पीने का शौक था. बर्नियर ने यह भी लिखा कि शाहजहां को अपनी बेटी की यह आदत पसंद नहीं थी लेकिन उनके पास उसे रोकने का कोई उपाय नहीं था.

इतालवी यात्री निकोलाओ मानुची ने भी अपनी किताब “स्टोरिया दो मोजोर”(Storia do Mogor) में जहाँआरा की शराब के प्रति रुचि का जिक्र किया है. मानुची लिखते हैं कि कभी-कभी उनकी मदिरा की मांग इतनी अधिक होती थी कि यह राजकीय कोषागार के लिए भी चिंता का विषय बन जाता था. औरंगजेब के सत्ता में आने के बाद जब शराब पर प्रतिबंध लगा दिया गया तब भी जहांआरा ने अपनी इस आदत को जारी रखा लेकिन गोपनीय तरीके से.

फ्रांस्वा बर्नियर लिखते हैं कि जहांआरा को फ्रांस और पुर्तगाल से लाई जाने वाली यूरोपीय शराब का बहुत शौक था. वह इतनी उत्कृष्ट गुणवत्ता वाली और महंगी शराब मंगवाती थीं कि इसका खर्च राजकोष के लिए एक बोझ बन गया. बर्नियर ने ये भी लिखा कि यूरोपीय व्यापारी एवं राजदूत भी उन्हें उच्चकोटि की शराब उपहार में देते थे.

नूरजहां पर जब अकबर नाराज हो गए

अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फ़ज़ल ने “आईन-ए-अकबरी” में एक दिलचस्प घटना का उल्लेख किया है. वह लिखते हैं कि नूरजहां की मां अस्मत बेगम (जो मिर्ज़ा गियास बेग की बीवी थीं) को शराब पीने की आदत थी. एक बार अकबर ने उन्हें शराब के नशे में देखा. उन्होंने इस पर नाराजगी जताई.

वैसे तो कुछ किताबों और स्रोतों में ये उल्लेख भी आता है कि औरंगजेब की बेटी ग़ाज़िया बेगम अपने पिता के कट्टर इस्लामी शासन के विरोध में शराब पीती थीं.

तंबाकू कैसे मुगल दरबार में पहुंचा

तंबाकू और हुक्का को मुगल दरबारों में खूब इस्तेमाल किया जाता था. सत्रहवीं शताब्दी के अंत में पुर्तगालियों द्वारा दक्कन में तंबाकू लाया गया. अब्राहम एराले द्वारा अपनी पुस्तक में इसकी दिलचस्प कहानी कही है. वह लिखते हैं कि अकबर के दरबार के एक दरबारी इतिहासकार असद बेग की नजर दक्कन के अपने अभियान के दौरान तंबाकू पर गई और आगरा लौटते समय वह उसका एक थैला लेकर आया.

उसने एक रत्नजड़ित पान की थैली में कुछ तंबाकू सम्राट को एक चांदी की ट्रे में रत्नजड़ित हुक्का के साथ भेंट किया. अकबर उत्सुक हुआ. उसने धूम्रपान तैयार करने के लिए कहा, जब पाइप तैयार हो गया. अकबर ने इसे ले लिया, शबी हकीम ने पास आकर उसे ऐसा करने से मना किया. उन्हें बताया गया कि उन्हें इस विषय की कोई जानकारी नहीं है, क्योंकि यह एक नया आविष्कार है. अकबर ने वह पाइप दरबार के अन्य रईसों को भी दिया, जिन्होंने इसका भरपूर आनंद लिया.

और इस तरह यह आदत फैल गई. जहांगीर को तंबाकू पसंद नहीं था और उन्होंने इसके सेवन पर रोक लगा दी थी. उलेमाओं ने इसके खिलाफ फतवे जारी करते हुए कहा कि तंबाकू पीना एक नई बात है और धर्म द्वारा इसकी अनुमति नहीं है. हालांकि लोगों पर इसका कोई खास असर नहीं हुआ. तंबाकू पीना आम हो गया. ये शाही घराने का भी एक आम हिस्सा बन गया. ये भी ध्यान देने योग्य बात है कि तंबाकू पर शुल्क साम्राज्य की आय का प्रमुख स्रोत था.

सोर्स
1. “द मुगल एम्पायर” – जॉन एफ. रिचर्ड्स
2. “द मुगल थ्रॉन: द सागा ऑफ इंडिया’स ग्रेट एम्परर्स” – अब्राहम एराली
3. “ए हिस्ट्री ऑफ मुगल इंडिया” – सतीश चंद्र के लेख
4. “द मुगल स्टेट, 1526-1750” – संपादित मुजफ्फर आलम और संजय सुब्रह्मण्यम
5. “द बाबरनामा, “द तुजुक-ए-जहांगीरी” के अंग्रेजी अनुवाद
6. “द एम्परर्स टेबल: द आर्ट ऑफ मुगल कुजीन” – सलमा हुसैन
7. ट्रेवल्स इन द मुगल एम्पायर – बर्नियर

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