Last Updated:December 25, 2025, 12:42 IST
अतुल सेंगर केस में दिल्ली हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के पूर्व सीएम एआर अंतुले केस को नजीर बनाया है.उन्नाव रेप केस में दोषी करार दिए गए पूर्व विधायक अतुल सिंह सेंगर की दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा सजा स्थगित किए जाने से नया विवाद पैदा हो गया है. इस फैसले के खिलाफ पीड़ित पक्ष दिल्ली में इंडिया गेट के पास धरने पर बैठ गया. इसके बाद यह मुद्दा राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में आ गया. फिर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पीड़िता से मुलाकात की. राहुल गांधी ने पीड़िता के पक्ष में आवाज उठाते हुए उनके लिए न्याय की मांग की. उन्होंने यहां तक कह दिया कि हम एक मृत समाज बनते जा रहे हैं. न्याय की मांग कर रही एक रेप पीड़िता के साथ अपराधियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है. इसके बाद तमाम लोग हाईकोर्ट के फैसले की विवेचना कर रहे हैं.
दरअसल, हाईकोर्ट ने अतुल सिंह सेंगर के पूर्व विधायक होने के बावजूद पब्लिक सर्वेंट मानने से इनकार कर दिया. इसी आधार उनकी आजीवन कारावास की सजा घटाकर सात साल कर दी गई. अतुल सेंगर सात सालों तक जेल में रह चुके हैं. इस तरह उन्होंने अपनी सजा पुरी कर ली है. इस तरह हाईकोर्ट के फैसले के बाद उनके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया. हालांकि कई अन्य मामले दर्ज हैं और उन मामलों में उनको अभी कोई राहत नहीं मिली है. इस कारण वह फिलहाल जेल में ही हैं.
हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में भी हाईकोर्ट के फैसले की विवेचना की गई. इसमें कहा गया है कि हाईकोर्ट के जज ने अपने फैसले में एक ऐतिहासिक फैसले को बेस बनाया है. यह फैसला है महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री एआर अंतुले वाया रामदास श्रीनिवास नायक का. दिल्ली हाईकोर्ट ने अतुल सेंगर को पब्लिक सर्वेंट न मामले के पीछे इसी केस के फैसले का हवाला दिया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा
हिंदुस्तान टाइम्स लिखता है कि दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले का दूसरा और संभवतः सबसे विवादास्पद हिस्सा एआर अंतुले बनाम रामदास श्रीनिवास नायक मामले पर इसकी निर्भरता है. यह संविधान पीठ का निर्णय था, जिसमें कहा गया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 21 के तहत एक विधायक सार्वजनिक सेवक नहीं है. दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर केस में अपने आदेश में अंतुले केस के फैसले के बड़े हिस्से का उल्लेख किया है. अंतुले केस के फैसले में ऐसी चीजें थीं जो आप भी प्रासंगिक हैं. पहला, विधायक की स्थिति को धारा 21 में कल्पित पारंपरिक अर्थों में पद के साथ आसानी से समान नहीं ठहराया जा सकता, और दूसरा, बंदीकरण, पुलिसिंग या न्यायिक निर्णय से संबंधित खंडों में उल्लिखित बलपूर्वक शक्तियों को केवल इसलिए विधायकों को नहीं सौंपा जा सकता क्योंकि वे विधायी निकाय का हिस्सा हैं.
क्या था एआर अंतुले केस
एआर अंतुले बनाम रामदास श्रीनिवास नायक केस सुप्रीम कोर्ट के इतिहास का एक सबसे अहम मामला है. यह मुख्य रूप से दो फैसलों से जुड़ा है. पहला- 1984 और 1988 का. यह मामला महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से शुरू हुआ था. अंतुले 1980 से 1982 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. उन पर आरोप लगा कि उन्होंने अपने नियंत्रण वाले ट्रस्टों (जैसे इंदिरा गांधी प्रतिभा प्रतिष्ठान) में चंदा देने वाले बिल्डरों को सरकारी सीमेंट कोटे से अतिरिक्त सीमेंट आवंटित किया. यह सीमेंट घोटाला के नाम से जाना गया. राजनीतिक विरोधी रामदास श्रीनिवास नायक ने 1981 में भ्रष्टाचार निरोधक कानून और आईपीसी की विभिन्न धाराओं (जैसे 161, 165, 420, 384 आदि) के तहत शिकायत दर्ज करवाई थी.
अंतुले ने 1982 में बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन विधायक बने रहे. फिर 1984 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने फैसला सुनाया. लेकिन 1988 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सात जजों की पीठ के समक्ष चुनौती दी गई. फिर सात सदस्यीय पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 21 के तहत विधायक सार्वजनिक सेवक नहीं हो सकता. विधायक को सरकारी वेतन नहीं मिलता और उनके पास बंदीकरण या पुलिसिंग जैसी वैधानिक शक्तियां नहीं होतीं. दिल्ली हाईकोर्ट ने सेंगर को राहत देने में इसी तर्क को आधार बनाया है.
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न्यूज18 हिंदी में बतौर एसोसिएट एडिटर कार्यरत. मीडिया में करीब दो दशक का अनुभव. दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण, आईएएनएस, बीबीसी, अमर उजाला, जी समूह सहित कई अन्य संस्थानों में कार्य करने का मौका मिला. माखनलाल यूनिवर्स...और पढ़ें
First Published :
December 25, 2025, 12:42 IST

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