Last Updated:September 16, 2025, 18:13 IST
भारत ने हिंद महासागर में स्थित 3,00,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले कार्ल्सबर्ग रिज में पॉलीमेटेलिक सल्फर नोड्यूल्स की खोज का काम शुरू कर रहा है. ऐसा काम दुनिया में पहली बार भारत करने जा रहा है.

भारत हिंद महासागर में बहुमुल्य धातुओं की खोज का काम करने वाला है. इस तरह का काम करने वाला वह दुनिया का पहला देश होगा. ऐसा करने के लिए उसने इंटरनेशनल सीबेड अथारिटी से लाइसेंस लिया है. ये काम वो हिंद महासागर के कार्ल्सबर्ग रिज में करेगा.
इंटरनेशनल सीबेड अथारिटी यानि आईएसए का मुख्यालय जमैका में है. भारत ने 15 सितंबर 2025 को उसके साथ इसके लिए समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. अब हम जानेंगे कि ये बहुमुल्य धातुएं क्या हैं. भारत कैसे उनकी खोज करेगा. इसके बाद उनका क्या इस्तेमाल है और ये कार्ल्सबर्ग रिज एरिया कितना बड़ा है. जहां भारत ये काम करने वाला है. इसमें कैसे उपकरणों की मदद ली जाएगी.
सवाल – क्या होते हैं पॉलीमेटेलिक सल्फर नोड्यूल्स, जिनकी खोज का काम दुनिया में पहली बार भारत करने वाला है?
– पॉलीमेटेलिक सल्फर नोड्यूल्स (Polymetallic Sulfide Nodules) एक प्रकार के खनिज संयोजन (mineral aggregates) होते हैं, जो मुख्य रूप से समुद्र के गहरी तल पर पाए जाते हैं. ये विशेष रूप से हाइड्रोथर्मल वेन्ट क्षेत्रों में बनते हैं, जहां समुद्र के अंदर की गर्म जलधाराएं समुद्री पानी के साथ मिलती हैं. ये छोटे-छोटे गोल या अनियमित आकार के खनिजीय गांठ होते हैं. इन गांठों या नोजयूल्स में कई तरह के धातु सल्फाइड्स पाए जाते हैं. जैसे – पाइराइट, चैल्कोपिराइट, गैलेना, सिनाबर, स्कटेराइट. इसलिए इन्हें पॉली (बहु) + मेटलिक (धात्विक) सल्फर नोड्यूल्स कहा जाता है.
ये नोड्यूल्स बहुत समृद्ध होते हैं. इनमें कई महत्वपूर्ण धातुएं पाई जाती हैं, जैसे – तांबा, जस्ता, सीसा, निकल, सोना और चांदी. साथ ही कॉबाल्ट और प्लैटिनम ग्रुप मेटल्स भी. तो आप समझ सकते हैं कि ये नोडयूल्स कितनी कीमती धातुएं रखते हैं. भविष्य में धातु संसाधनों की कमी को पूरा करने में ये बहुत काम आएंगे.
सवाल – सोना, चांदी को छोड़ दें तो बाकी धातुएं किस काम आती हैं?
– पॉलीमेटेलिक सल्फर नोड्यूल्स में मिलने वाली धातुएं आधुनिक उद्योग, ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स, निर्माण, चिकित्सा और पर्यावरणीय प्रौद्योगिकियों के लिए बहुत जरूरी हैं. इन धातुओं के बिना आज के समय में कई महत्वपूर्ण चीजें बनाना और चलाना संभव नहीं.
सवाल – भारत को हिंद महासागर में पॉलीमेटेलिक सल्फर नोडयूल्स की खोज के लिए इंटरनेशनल सीबेड अथारिटी से लाइसेंस क्यों लेना पड़ा, जबकि हिंद महासागर तो उसके अधिकार क्षेत्र में आता है?
– समुद्रों में सभी देशों के अधिकार क्षेत्र सीमित हैं. भारत का समुद्री क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार तीन प्रमुख हिस्सों में बंटा है
1. टेरिटोरियल वाटर्स (प्रादेशिक जल) – ये समुद्र तट से 2 समुद्री मील तक होता है
2. कांटिजियस जोन – समुद्र तट से 24 समुद्री मील तक
3. एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन (विशेष आर्थिक क्षेत्र) – 200 समुद्री मील तक.
भारत के अधिकार क्षेत्र में हिंद महासागर में ये तीन एरिया ही आते हैं. इसके बाद का एरिया अंतरराष्ट्रीय समुद्र क्षेत्र (High Seas) और मेड इन्टरनेशनल सेबेड एरिया ( Seabed Area) होता है, जो किसी भी देश के विशेष अधिकार क्षेत्र में नहीं आते. 200 समुद्री मील यानि एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन के बाहर के समुद्र तल कॉमन हैरिटेज ऑफ मैनकाइंड घोषित किया गया है.
इनका संचालन अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत होता है और इसकी देखरेख इंटरनेशनल सीबेड अथारिटी करती है. इसलिए भारत को इसके लिए इंटरनेशनल सीबेड अथारिटी से मंजूरी लेनी पड़ी. पॉलिमेटेलिक सल्फाइड नोडयूल्स अक्सर समुद्र के मध्य भागों मिड-ओशन रिज या हाइड्रोथर्मल वेन्ट्स के आसपास पाए जाते हैं. बहुत से ऐसे नोड्यूल्स एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक जोन के बाहर अंतरराष्ट्रीय समुद्र क्षेत्र में पाए जाते हैं, ये क्षेत्र किसी भी देश के अधिकार में नहीं आता.
सवाल – कार्ल्सबर्ग रिज कौन सा क्षेत्र है, जहां भारत खोज करने जा रहा है, ये कितना बड़ा है?
– कार्ल्सबर्ग रिज, 3,00,000 वर्ग किलोमीटर का एक क्षेत्र है, ये हिंद महासागर में अरब सागर और उत्तर-पश्चिमी हिंद महासागर में स्थित है. यह भारतीय और अरब टेक्टोनिक प्लेटों के बीच की सीमा बनाता है.
दरअसल ये रिज समुद्र तल पर स्थित एक लंबी पर्वत श्रृंखला है. यहां पर पृथ्वी की दो टेक्टोनिक प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं. जिससे नई महासागरीय क्रस्ट बनती है. यह एक हाइड्रोथर्मल वेन्ट क्षेत्र भी है, जहां से गर्म जलधारा निकलती है और खनिज युक्त सल्फाइड्स जमा होते हैं.
कार्ल्सबर्ग अरब सागर से शुरू होकर इंडियन ओशन में फैला हुआ है. ये खनिज भंडार का बड़ा स्रोत माना जाता है. वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए भी महत्वपूर्ण है. इसका नाम डेनमार्क के कार्ल्सबर्ग फाउंडेशन ने रखा है. 20वीं सदी के पहले भाग में डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने हिंद महासागर में इस स्प्रेडिंग सेंटर को खोजा था. इसलिए इसे कार्ल्सबर्ग रिज नाम दिया गया.
सवाल – भारत के अलावा समुद्र के अलग अलग इलाकों में कितने देश इस तरह की खोज कर रहे हैं?
– आमतौर पर 20 के आसपास देश दुनियाभर के समुद्र के अलग इलाकों में इस तरह की खोज कर रहे हैं. इंटरनेशनल सीबेड अथारिटी यानि आईएसए (ISA) ने अब तक 30 से ज्यादा एक्सप्लोरेशन कांट्रैक्ट्स जारी किए हैं. ये पॉलिमेटेलिक नोडयूल्स, पॉलिमेटेलिक सल्फाइड्स और कोबाल्ट रिच फेरोमैंगनीज क्रस्ट के लिए हैं.
करीब 20 या उससे कुछ ज्यादा देशों या कारपोरेशन बॉडीज के पास खोज लाइसेंस हैं. जिसमें भारत, चीन, रूस, जापान, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय संघ के सदस्य देश, नॉर्वे, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम आदि शामिल हैं. दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री एक्सप्लोरेशन एरिया क्लेरियन क्लिर्टन जोन है, जिसे पॉलिमेटेलिक नोडयूल्स के लिहाज से सबसे बड़ा एरिया माना जाता है. ये करीब 4.5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला है. वैसे भारत ने सेंट्रल इंडियन रिज में भी पॉलिमेटेलिक सल्फाइड्स की खोज के लिए भी लाइसेंस पाया हुआ है.
सवाल – क्या इस खोज के बाद भारत यहां से खनन भी कर सकता है?
– ये कहना अभी मुश्किल है. भारत बेशक सर्वे और खोज का काम कर रहा है लेकिन खनन के दोहन अभी नहीं कर सकता है. हो सकता है ये काम भविष्य में हो. फिलहाल ये क्षेत्र पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील कहे जा रहे हैं.
Sanjay Srivastavaडिप्टी एडीटर
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...और पढ़ें
लेखक न्यूज18 में डिप्टी एडीटर हैं. प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया में काम करने का 30 सालों से ज्यादा का अनुभव. लंबे पत्रकारिता जीवन में लोकल रिपोर्टिंग से लेकर खेल पत्रकारिता का अनुभव. रिसर्च जैसे विषयों में खास...
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Location :
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
First Published :
September 16, 2025, 18:13 IST