10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के परिसर के पास कार के जरिए भीषण विस्फोट हुआ. इसमें 13 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है. इस पूरे इलाके का पहला मुआयना सही मायनों में फोरेंसिक एक्सपर्ट्स ने किया. पुलिस ने भी तब तक इस इलाके में कुछ भी नहीं छुआ, जब तक कि वहां पहुंचे फोरेंसिक एक्सपर्ट्स ने नमूने इकट्ठे नहीं कर लिए. अब ये जानने वाली बात होगी कि ये एक्सपर्ट्स किस तरह के नमूने इकट्ठे करते हैं और उनसे कौन से परीक्षण करतके हैं. कैसे पूरे विस्फोट पर अपनी राय देते हैं.
सवाल – फोरेंसिक एक्सपर्ट्स क्या करते हैं?
– दिल्ली फोरेंसिक प्रयोगशाला के विस्फोटक विभाग के विशेषज्ञों ने पुलिस कर्मियों के साथ आधे घंटे के भीतर घटनास्थल का दौरा किया. ऐसी परिस्थितियों में फोरेंसिक विशेषज्ञों का मुख्य काम वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कारणों का पता लगाना और उसका विश्लेषण करना होता है. वो जरूरी नमूने इकट्ठा करते हैं. तुरंत अपनी लैब में उनके टेस्ट की व्यवस्था करते हैं. जिससे दुर्घटना के कारणों का पता लगाया जा सकें या अपराध में शामिल लोगों की पहचान वैज्ञानिक आधार पर कर पाएं.
सवाल – क्यों फोरेंसिक एक्सपर्ट्स का काम सबसे अलग और बहुत चुनौतीपूर्ण होता है?
– आपने ये अक्सर मीडिया रिपोर्ट्स में पढ़ा होगा कि फोरेंसिक एक्सपर्ट ने घटना स्थल से नमूने इकट्ठा कर लिए. किसी भी इस तरह के विस्फोट हादसा स्थल पर अच्छे फोरेंसिक एक्सपर्ट्स की जानकारी बहुत मायने रखती है. वो अपनी जांच से बहुत कुछ ऐसा बता सकते हैं जो पूरे मामले की जांच की दिशा में सबसे अहम हो सकती है.
एक विस्फोट अन्य अपराधों से अलग है; यहां सब कुछ एक पल में बिखर जाता है. विस्फोटों से तेज दबाव और गर्मी उत्पन्न होती है, जिससे घटनास्थल पर सब कुछ जलकर राख हो जाता है, जिससे विशेषज्ञों का काम जटिल हो जाता है. चुनौतियों के बावजूद, वो अपनी कोशिश में लगे रहते हैं.
वो अपने परीक्षणों के जरिए विस्फोट की तीव्रता, इसका सोर्स और इसका प्रकार का अनुमान लगा सकते हैं, जिससे जांच कर्ताओं के लिए आगे का काम काफी आसान हो जाता है.
(फाइल फोटो)
सवाल – किसी अच्छी फोरेंसिक टीम में किस तरह के एक्सपर्ट रहते हैं?
– इसमें फोटोग्राफर होते हैं. एक्सप्लोसिव एक्सपर्ट होते हैं. मलब एक्सपर्ट होते हैं. मेटल एक्सपर्ट होते हैं. जो विभिन्न कोणों से घटनास्थल की तस्वीरें लेते हैं. विशेषज्ञ उसका एक स्केच बनाते हैं. घटनास्थल से विभिन्न जले हुए टुकड़े, कार के टूटे हुए हिस्से, कार्बन पाउडर आदि इकट्ठा करते हैं. फिर इन नमूनों का प्रयोगशाला में विस्फोटक विशेषज्ञों द्वारा गहन परीक्षण करते हैं. इसके लिए स्पेक्ट्रोस्कोपिक और क्रोमैटोग्राफिक तकनीकों का उपयोग करके विश्लेषण किया जाता है ताकि ये पता लगाया जा सके कि किस प्रकार के रसायनों का उपयोग किया गया, इनकी तीव्रता कितनी थी. इनकी मात्रा कितनी रही होगी.
विस्फोट के नमूने इकट्ठा करने वाली फोरेंसिक एक्सपर्ट टीम में विभिन्न प्रकार के विशेषज्ञ होते हैं, जो मिलकर विस्फोट स्थल से सबूत इकट्ठा करते हैं और उनकी जांच करते हैं। इस टीम में आमतौर पर निम्नलिखित विशेषज्ञ शामिल होते हैं:
1. फॉरेंसिक एक्सप्लोसिव्स एक्सपर्ट – ये विशेषज्ञ विस्फोटकों के अवशेष की जांच करते हैं, ताकि विस्फोट में इस्तेमाल हुए विस्फोटक की प्रकृति और ताकत का पता लगाया जा सके.
2. विस्फोट स्थल जांचकर्ता – ये मौके पर जाकर मलबे, बारूद, धातु के टुकड़े, सर्किट बोर्ड आदि सबूत इकट्ठा करते हैं. वे स्थल को सील कर सबूतों की सुरक्षा करते हैं ताकि जांच में छेड़छाड़ न हो.
3. विस्फोट पैटर्न एनालिस्ट – ये विशेषज्ञ विस्फोट के पैटर्न, दिशा और विस्फोट के तरीकों का अध्ययन करते हैं ताकि ये समझा जा सके कि धमाका योजनाबद्ध था या आकस्मिक.
4. फॉरेंसिक केमिस्ट – ये कई नमूनों में रासायनिक विश्लेषण करते हैं ताकि विस्फोटक के अवशेषों की सही पहचान हो.
5. फॉरेंसिक फायर और विस्फोट विशेषज्ञ – ये आग और विस्फोट की उत्पत्ति और कारणों की जांच करते हैं, अग्नि विज्ञान और इंजीनियरिंग की समझ रखते हैं.
6. इलेक्ट्रॉनिक फॉरेंसिक और टेक्निकल सपोर्ट – विस्फोट स्थल से मिले इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जैसे सर्किट बोर्ड आदि की जांच और विश्लेषण करते हैं.
7. फॉरेंसिक फिजिकल एक्सपर्ट्स और माइक्रो-विश्लेषक – ये धातु निस्तारण और विस्फोट से जुड़े सूक्ष्म अवशेषों की जांच करते हैं.
इस पूरी टीम का उद्देश्य विस्फोट की पूरी कहानी समझना और सटीक रिपोर्ट तैयार करना होता है, जिससे पता चले कि विस्फोट कब, कैसे और किस प्रकार हुआ. इसमें इस्तेमाल हुए विस्फोटक कौन से थे.
सवाल – क्या फोरेंसिक एक्सपर्ट ये भी पता लगाते हैं कि विस्फोट कैसे किया गया होगा यानि रिमोर्ट तरीके से या फिर डेटोनेटर के जरिए टाइम सेट करके?
– घटनास्थल पर निरीक्षण के दौरान यह पता लगाना ज़रूरी है कि कहीं कोई इलेक्ट्रॉनिक उपकरण तो नहीं मिला है, क्योंकि रिमोट कंट्रोल से होने वाले विस्फोटों में आमतौर पर ऑटो-टाइमर का इस्तेमाल होता है, जो सबसे बेहतर तकनीक है. हालांकि दिल्ली की घटना में कोई टाइमर या इलेक्ट्रॉनिक सर्किट नहीं मिला है तो एक्सपर्ट्स ये भी पता लगाएंगे कि फिर ये विस्फोट किस तरीके से किया गया होगा.
सवाल – किस प्रकार के परीक्षण किये जाते हैं?
– शुरुआती डेटा इकट्ठा करने और उसका विश्लेषण करने के बाद एक्सपर्ट्स विस्फोट के समय को बेहतर ढंग से समझने के लिए अपराध स्थल को रिक्रिएट करने की कोशिश करते हैं. इसके लिए, विशेषज्ञ फूरियर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (FTIR) और एटेन्यूएटेड टोटल रिफ्लेक्टेंस-FTIR (ATR-FTIR) का उपयोग करते हैं. इन परीक्षणों में, फोरेंसिक विशेषज्ञ अवशोषित प्रकाश के स्पेक्ट्रम का विश्लेषण करते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि एकत्रित नमूने इन्फ्रारेड प्रकाश के साथ कैसे क्रिया करते हैं.
विस्फोटकों की रासायनिक संरचना का पता क्षेत्र-विशिष्ट रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग करके लगाया जाता है। विस्फोट के बाद पाए गए टुकड़ों की आकृति विज्ञान का विश्लेषण करने के लिए उन्नत स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (SEM) का उपयोग किया जाता है, जबकि अवशेषों के मूलभूत विश्लेषण के लिए ऊर्जा परिक्षेपक एक्स-रे (EDX) तकनीकों का उपयोग किया जाता है। वैज्ञानिक विस्फोटकों के बारे में जानकारी, जैसे रासायनिक गतिविधि और स्थिरता, निर्धारित करने के लिए तापीय विश्लेषण का भी उपयोग करते हैं।
इसके अलावा, किसी भी विस्फोट में आग एक महत्वपूर्ण कारक होती है – यह कैसे फैलती है, कितनी दूर तक फैलती है, इस आग से कितना नुकसान हुआ. फोरेंसिक एक्सपर्ट्स इन सबका पता लगाते हैं. जिससे वो तय करते हैं कि यह एक दुर्घटना थी या जानबूझकर किया गया विस्फोट.
सवाल – दिल्ली ब्लास्ट जैसे मामलों में सारी फोरेंसिंक जांच भारत की ही लैब में हो जाएंगी या कुछ विदेशी प्रयोगशालाओं में भी भेजा जाएगा?
– दिल्ली ब्लास्ट जैसे गंभीर मामलों में फॉरेंसिक नमूनों की जांच मुख्यतः भारत के फोरेंसिक लैबों में की जाती है. भारत में कई आधुनिक फॉरेंसिक साइंस लैब हैं, जो विस्फोटक पदार्थों, DNA, बारूद के अवशेष, धातु के टुकड़ों, और अन्य फॉरेंसिक सैंपलों की जांच करने में सक्षम हैं.
इन सभी नमूनों की गहन जांच लगातार रोहिणी स्थित फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला और अन्य संबंधित भारतीय लैबों में की जा रही है. यदि जांच में अत्यंत विशिष्ट या अत्याधुनिक तकनीक की जरूरत होती है, या किसी टेस्ट के लिए आवश्यक उपकरण भारत में उपलब्ध नहीं होते, तो कुछ नमूने विदेशी लैबों को भी भेजे जा सकते हैं लेकिन ये माना जा सकता है कि भारत की लैब इन्हें करने में सक्षम हैं.
सवाल – दिल्ली ब्लास्ट के जो नमूने फोरेंसिक टीम ने इकट्ठे किए हैं, उनकी रिपोर्ट कितने दिनों में आ जाएगी?
– दिल्ली ब्लास्ट जैसे मामलों में फोरेंसिक रिपोर्ट आमतौर पर कुछ दिनों से लेकर एक सप्ताह तक के भीतर आ जाती है. घटना के सैंपल मिले के बाद फॉरेंसिक टीम उनकी जांच तेजी से शुरू करती है. विस्फोट के अवशेष, धातु के टुकड़े, DNA सैंपल आदि की जांच और विश्लेषण करने में आमतौर पर 3 से 7 दिन का समय लग सकता है, हालांकि जांच की जटिलता और उपलब्ध संसाधनों के आधार पर यह समय बढ़ या घट सकता है.
दिल्ली ब्लास्ट की ताजा घटनाओं में भी जांच एजेंसियों ने घटना के अगल-बगल से मिले 42 सबूतों की तेजी से जांच शुरू कर दी है. वैसे सामान्य तौर पर ऐसे विस्फोट की फोरेंसिक रिपोर्ट 3 से 7 दिनों के भीतर आ जाती है.
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1 hour ago
