Explainer: दीवाली के बाद दिल्ली का AQI 300 के पार, ऐसे में बाहर निकलना चाहिए

12 hours ago

इस बार दिल्ली में जबरदस्त आतिशबाजी के बावजूद हवा की गुणवत्ता का स्तर 350 के आसपास पाया गया. 300 के ऊपर एयर क्वालिटी इंडैक्स खतरनाक माना जाता है. हेल्थ के लिए भी गंभीर. लेकिन कहना चाहिए कि इस बार दिल्ली में हवा उतनी जहरीली नहीं हुई, जितना अनुमान लगाया जा रहा था. पिछले कुछ सालों से दिल्ली और एनसीआर दीवाली के बाद एक्यूआई 500 के आसपास पहुंच रहा था. यहां हम जानेंगे कि क्या होता है एक्यूआई. ये कब हेल्थ के लिए खतरनाक हो जाता है और इसमें कौन से जहरीले कण होते हैं, जो हवा को विषाक्त बना देते हैं.

गौरतलब है कि इस बार सुप्रीम कोर्ट ने दीवाली पर ग्रीन पटाखों को चलाने की अनुमति दे दी थी. लिहाजा इस बार दिल्ली और एनसीआर में जमकर आतिशबाजी हुई और पटाखे भी चले.

हालांकि दीवाली की रात हवा में प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा था. जो देर रात हवा चलने से अपेक्षाकृत कम होता चला गया. 301 से 500 के बीच एक्यूआई को ” खतरनाक ” माना जाता है. एक्सपर्ट सलाह देते हैं जब हवा की एक्यूआई 300 के पार चली जाए तो सभी को घर के अंदर रहना चाहिए. अपनी गतिविधियां कम करनी चाहिए.

एक्यूआई के 300 के पार पहुंचने के बाद लोगों को खांसी और आंखों में जलन जैसी श्वसन संबंधी बीमारियों के लक्षण महसूस होने लगते हैं. 65 वर्ष से अधिक और पांच वर्ष से कम आयु के लोगों पर इसका खतरा सबसे ज्यादा होता है.

हवा की क्वलिटी के स्तर को मापने के लिए एयर क्वालिटी इंडेक्स यानि का AQI का इस्तेमाल किया जाता है. जो ये भी बताता है कि हवा में घुल रहे जहरीले तत्वों यानि PM10 और PM2.5 का मतलब क्या होता है.

क्या होता है AQI, कैसे करता है काम?

– AQI यानि Air Quality Index या हिंदी में कहें तो वायु गुणवत्ता सूचकांक ऐसा नंबर होता है जिससे हवा की गुणवत्ता पता लगाया जाता है. इससे भविष्य में होने वाले वायु प्रदूषण का भी अंदाज हो जाता है.

AQI की शुरुआत कैसे हुई?

– दुनिया के हर देश में ही अब AQI मापा जाने लगा है. हालांकि हर जगह इसका तरीका अलग है. भारत में AQI को मिनिस्ट्री ऑफ एनवायरमेंट, फॉरेस्ट और क्लाइमेट चेंज ने लांच किया.

AQI को कितनी कैटेगरी में बांटा गया है?

– देश में AQI को स्तर और रीडिंग के हिसाब से 06 कैटेगरी में बांटा गया है.
– 0-50 के बीच AQI का मतलब अच्छा यानि वायु शुद्ध है
– 51-100 के बीच मतलब वायु की शुद्धता संतोषजनक
– 101-200 के बीच ‘मध्यम
– 201-300 के बीच ‘खराब’
– 301-400 के बीच बेहद खराब
– 401 से 500 के बीच गंभीर श्रेणी

देश में प्रदूषण के कितने कारक तय किए गए हैं?

– AQI को 08 प्रदूषण कारकों के आधार पर तय करते हैं. ये PM10, PM 2.5, NO2, SO2, CO2, O3, और NH3 Pb होते हैं. 24 घंटे में इन कारकों की मात्रा ही हवा की गुणवत्ता तय करती है.

इसमें NO2, SO2, CO2, O3 और NH3 क्या होते हैं?

– SO2 का मतलब सल्फर ऑक्साइड, ये कोयले और तेल के जलने उत्सर्जित होती है, जो हमारे शहरों में प्रचुर मात्रा में है.
– CO2 यानि कार्बन ऑक्साइड रंगीन होता है, इसमें गंध होती है, ये जहरीला होता है. प्राकृतिक गैस, कोयला या लकड़ी जैसे ईंधन के अधूरे जलने से उत्पन्न होता है. गाड़ियों से होने वाला उत्सर्जन कार्बन ऑक्साइड का एक प्रमुख स्रोत है.

– NO2 का मतलब नाइट्रोजन ऑक्साइड, जो उच्च ताप पर दहन से पैदा होती है. इसे निचली हवा की धुंध या ऊपर भूरे रंग के रूप में देखी जा सकती है.
– NH3 कृषि प्रक्रिया से उत्सर्जित अमोनिया है.साथ ही इसकी गैस कूड़े, सीवेज और औद्योगिक प्रक्रिया से उभरने वाली गंध से भी उत्सर्जित होती है।
– O3 मतलब ओजोन का उत्सर्जन

पीएम 2.5 क्या है?

पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है. इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है. पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है. विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है.

पीएम 10 क्या है?

पीएम 10 को पर्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) कहते हैं. इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है. इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं. पीएम 10 और 2.5 धूल, कंस्‍ट्रक्‍शन और कूड़ा व पराली जलाने से ज्यादा बढ़ता है.

कितना होना चाहिए पीएम-10 और 2.5?

– पीएम 10 का सामान्‍य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्‍यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए.
पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है. इससे ज्यादा होने पर यह नुकसानदायक हो जाता है.

वायु प्रदूषण का असर शरीर पर सीधे क्या होता है?

– आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ने लगती है. सांस लेते वक्त इन कणों को रोकने का हमारे शरीर में कोई सिस्टम नहीं है. ऐसे में पीएम 2.5 हमारे फेफड़ों में काफी भीतर तक पहुंचता है. पीएम 2.5 बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है. इससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है. खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है. लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है.

मोटे तौर पर रोजाना की किन चीजों से प्रदूषण होता है?

– बिजली संयंत्रों की चिमनियों, कंस्ट्रक्शन और नगर निगम के कचरे की भट्टी जैसे स्रोत
– मोटर, गाड़ी, हवाई जहाज जैसे स्रोत
– समुद्री जहाजों, क्रूज़ जहाजों और बंदरगाहों से
– जलने वाली लकड़ी, आग लगने की जगहों, चूल्हा, भट्टी से.
– सामान्य तेल शोधन और औद्योगिक गतिविधियों से
– कृषि और वानिकी में रसायन के इस्तेमाल, धूल उड़ने से
– पेंट, बालों के स्प्रे, वार्निश, एरोसोल स्प्रे आदि से
– लैंड फिल में जमा कचरे से जो मीथेन पैदा करते हैं
– परमाणु हथियार, विषाक्त गैसों, रॉकेट छोड़ने से

क्या प्राकृतिक स्रोतों से भी प्रदूषण होता है?

– इसमें धूल, बंजर भूमि से उड़ने वाली धूल, पशुओं द्वारा भोजन के पाचन मीथेन गैस उत्सर्जित होती है. इसीलिए अक्सर कहा जाता है कि दुधारू पशु ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जित करते हैं
– पृथ्वी की पपड़ी नष्ट होने से रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न रेडॉन गैसों से
– जंगल की आग से पैदा होने वाले गैस और उससे निकलने वाली कार्बन गैसों से
– ज्वालामुखी से

आतिशबाजी और पटाखों के चलते कैसे प्रदूषण होता है?

– पटाखे और आतिशबाजी काफी ज्यादा धुआं पैदा करते हैं. इससे कॉर्बन आक्साइड, सल्फर ऑक्साइड प्रचुर मात्रा में पैदा होते हैं, ये हवा में मिलते हैं और हवा को ना केवल जहरीला करते हैं बल्कि प्रदूषित भी. इससे वायु की गुणवत्ता खराब होती है. स्वास्थ्य पर भी इसका असर होता है. ग्रीन पटाखे अपेक्षाकृत कम प्रदूषण करते हैं. ये नार्मल पटाखों से 30 फीसदी कम प्रदूषण करते हैं.

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