Explained: क्या है नेशनल हेराल्ड केस, गांधी फैमिली को कितनी बड़ी राहत मिली?

9 hours ago

नेशनल हेराल्ड केस एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार वजह गांधी परिवार के लिए राहत भरी है. दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने इस मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की तरफ से दाखिल मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया. विशेष जज विशाल गोगने ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले में ईडी की चार्जशीट एक निजी व्यक्ति की शिकायत पर आधारित जांच के आधार पर दाखिल की गई है, न कि किसी ‘प्रेडिकेट ऑफेंस’ यानी मूल अपराध से जुड़ी एफआईआर पर. कानून के तहत ऐसी स्थिति में मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों पर संज्ञान लेना उचित नहीं है.

हालांकि कोर्ट ने गांधी परिवार को आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) की ओर से दर्ज एफआईआर की कॉपी देने से इनकार कर दिया. वहीं ईडी ने साफ कर दिया है कि वह इस आदेश के खिलाफ ऊपरी अदालत में अपील दायर करेगी.

इस फैसले के बाद कई सवाल उठ रहे हैं… आखिर नेशनल हेराल्ड केस है क्या, कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा, गांधी परिवार को कितनी बड़ी राहत मिली और आगे अब क्या हो सकता है? आइए, एक-एक कर सभी सवालों के जवाब समझते हैं.

नेशनल हेराल्ड केस आखिर है क्या?
नेशनल हेराल्ड केस की जड़ें देश के आज़ादी के आंदोलन से जुड़ी हैं. पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वर्ष 1938 में ‘नेशनल हेराल्ड’ अखबार की स्थापना की थी. इसका प्रकाशन एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) नाम की कंपनी करती थी. इस कंपनी के तहत नेशनल हेराल्ड (अंग्रेज़ी), नवजीवन (हिंदी) और कौमी आवाज़ (उर्दू) जैसे अखबार निकलते थे. हालांकि समय के साथ अखबार आर्थिक संकट में फंस गया और वर्ष 2008 में इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा. यहीं से विवाद की कहानी शुरू होती है. एजेएल पर कांग्रेस पार्टी का करीब 90 करोड़ रुपये का कर्ज बताया गया. बाद में इस कर्ज के निपटारे के लिए 2010 में ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ नाम की एक नई कंपनी बनाई गई.

राहुल-सोनिया गांधी पर आरोप क्या है?
यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड एक नॉन-प्रॉफिट कंपनी है, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की 38-38 फीसदी हिस्सेदारी है. आरोप यह लगाए गए कि इस कंपनी के जरिए एजेएल का कर्ज महज 50 लाख रुपये में अपने नाम कर लिया गया और बदले में एजेएल की करीब 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्तियों पर नियंत्रण हासिल कर लिया गया. यही आरोप आगे चलकर राजनीतिक विवाद और कानूनी लड़ाई का आधार बने. भाजपा और कुछ अन्य नेताओं ने इसे भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी से जोड़ते हुए बड़ा मुद्दा बनाया.

इस केस की शुरुआत किसने की?
इस मामले की शुरुआत पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने की थी. उन्होंने खुद अदालत का दरवाजा खटखटाते हुए आरोप लगाया कि गांधी परिवार और कांग्रेस नेताओं ने साजिश के तहत नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों को अपने कब्जे में लिया. स्वामी की इसी शिकायत के आधार पर अदालत ने समन जारी किए और बाद में इस मामले में जांच एजेंसियां भी सक्रिय हुईं.

ईडी इस मामले में कैसे आई?
प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग का एंगल जोड़ते हुए जांच शुरू की. ईडी का दावा रहा कि यंग इंडियन के जरिये एजेएल की संपत्तियों को गलत तरीके से हासिल किया गया और यह ‘अपराध की आय’ है. ईडी ने नवंबर 2023 में बड़ी कार्रवाई करते हुए लगभग 661 करोड़ रुपये की अचल संपत्तियां और करीब 90 करोड़ रुपये के शेयर जब्त कर लिए थे. ईडी का कहना था कि यह सारी संपत्तियां मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी हैं.

गांधी परिवार को कैसे राहत मिली?
दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट के स्पेशल जज विशाल गोगने ने ईडी की अभियोजन शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया. कोर्ट का मुख्य तर्क यह रहा कि इस मामले में कोई ‘प्रीडिकेट ऑफेंस’ यानी मूल अपराध दर्ज ही नहीं किया गया है. मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत कार्रवाई तभी हो सकती है, जब किसी अन्य कानून के तहत कोई मूल अपराध दर्ज हो. लेकिन यहां ईडी की पूरी कार्रवाई एक निजी शिकायत और उस पर जारी समन के आधार पर थी, न कि किसी एफआईआर के आधार पर.

कोर्ट ने FIR को लेकर क्या कहा?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जब तक सीबीआई या पुलिस की तरफ से कोई एफआईआर दर्ज नहीं होती, तब तक मनी लॉन्ड्रिंग की जांच टिक नहीं सकती. कोर्ट ने यह भी कहा कि निजी व्यक्ति द्वारा दायर शिकायत पर सीधे मनी लॉन्ड्रिंग का मामला कायम करना कानूनन सही नहीं है. इसी आधार पर कोर्ट ने ईडी की शिकायत पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया और कहा कि फिलहाल सोनिया गांधी सहित अन्य आरोपियों को एफआईआर की कॉपी भी नहीं दी जाएगी.

गांधी परिवार के लिए यह राहत कितनी बड़ी है?
कानूनी नजरिए से देखें तो यह गांधी परिवार के लिए बड़ी राहत मानी जा रही है. इसका मतलब यह है कि फिलहाल ईडी की ओर से दाखिल अभियोजन शिकायत पर कोई ट्रायल या आगे की कार्रवाई नहीं होगी. यानी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अदालत ने फिलहाल ईडी की दलीलों को स्वीकार नहीं किया. हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि मामला पूरी तरह खत्म हो गया है. कोर्ट ने केवल यह कहा है कि मौजूदा स्थिति में ईडी का केस टिकाऊ नहीं है.

क्या केस पूरी तरह खत्म हो गया है?
नहीं, केस पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है. कोर्ट के फैसले के बाद अब नजरें दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) द्वारा दर्ज एफआईआर पर टिकी हैं. EOW ने 3 अक्टूबर को नेशनल हेराल्ड मामले में एक नई एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सैम पित्रोदा, सुमन दुबे और यंग इंडियन समेत अन्य को आरोपी बनाया गया है. अब यह एफआईआर इस पूरे मामले में अहम भूमिका निभा सकती है. अगर इस एफआईआर के आधार पर जांच आगे बढ़ती है, तो ईडी को दोबारा मौका मिल सकता है.

एफआईआर की कॉपी को लेकर विवाद क्या है?
एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपियों की ओर से मांग की गई थी कि उन्हें FIR की कॉपी दी जाए. हालांकि, अदालत ने फिलहाल FIR की कॉपी देने से इनकार कर दिया है. दिल्ली पुलिस की ओर से भी इस आदेश को चुनौती दी गई है, जिस पर सुनवाई जारी है. यह कानूनी लड़ाई अभी जारी है और आने वाले समय में इस पर भी बड़ा फैसला आ सकता है.

आगे अब क्या हो सकता है?
इस मामले में अब ईडी जल्द ही ऊपरी अदालत में अपील कर सकती है. ईडी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि एजेंसी के आला अधिकारी इस मामले में कानून सलाह ले रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक, यह कोई साधारण निजी शिकायत नहीं थी, बल्कि ऐसा मामला था जिसमें अपराध का संज्ञान पहले ही लिया जा चुका था. ऐसे में लीगल टीम अब कोर्ट के विस्तृत फैसले का अध्ययन और मूल्यांकन करके आगे के कदम पर विचार करेगी.

नेशनल हेराल्ड केस फिलहाल एक अहम मोड़ पर पहुंच गया है. राउज एवेन्यू कोर्ट के फैसले ने ईडी की कार्रवाई पर बड़ा सवाल खड़ा किया है और गांधी परिवार को तत्काल राहत दी है. लेकिन कानूनी लड़ाई अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है. आने वाले दिनों में EOW की FIR और उस पर अदालत का रुख यह तय करेगा कि यह मामला आगे किस दिशा में जाएगा.

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