नई दिल्ली (BTech Courses). बीटेक सबसे लोकप्रिय और इन डिमांड कोर्सेस की लिस्ट में शामिल है. इसमें कई ब्रांचेस हैं- सिविल, केमिकल, मैकेनिकल, कंप्यूटर साइंस, पेट्रोलियम आदि. इन दिनों एआई और डेटा साइंस में ग्रोथ के चलते कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग सबसे ज्यादा डिमांड में है. वहीं, कुछ ऐसी ब्रांचेस, जिनकी पहले खूब वैल्यू थी, अब स्टूडेंट्स उनमें एडमिशन लेने से कतराने लगे हैं. बीटेक की हर ब्रांच में बराबर एक्सपोजर या पैकेज नहीं मिलता है.
टेक्नोलॉजी एडवांसमेंट, इंडस्ट्री की बदलती जरूरतों और नौकरी के अवसरों में बदलाव की वजह से कुछ बीटेक कोर्सेस की प्रासंगिकता खत्म होने लगी है. इन बीटेक कोर्स में एडमिशन लेने वाले स्टूडेंट्स की संख्या में अचानक ही गिरावट देखी जाने लगी है. जहां पहले इन बीटेक कोर्सेस में 20-25 लाख का पैकेज आसानी से मिल जाता था, वहीं अब स्टूडेंट्स इनकी डिग्री लेकर नौकरी के लिए भी तरस रहे हैं. जानिए किन बीटेक कोर्स की वैल्यू कम हो गई है.
1. सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering)
कुछ साल पहले तक सिविल इंजीनियरिंग बीटेक की सबसे पॉपुलर ब्रांच थी. लेकिन अब इसमें नौकरी के अवसर कम हो गए हैं. इसीलिए स्टूडेंट्स इसमें एडमिशन लेने से कतराने लगे हैं.
नौकरी के सीमित अवसर: भारत में इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स (जैसे सड़क, पुल, बांध) में सरकारी क्षेत्रों में सिविल इंजीनियर्स की डिमांड है, लेकिन उनकी तुलना में निजी क्षेत्र में ग्रोथ कम है. कई सिविल इंजीनियर्स को कम वेतन वाली नौकरी या साइट पर फील्डवर्क करना पड़ता है, जिसके लिए हर कोई सहज नहीं है.
ऑटोमेशन और नई तकनीक: डिजाइन और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में ऑटोमेशन (जैसे BIM – Building Information Modeling) ने कुछ ट्रेडिशनल जॉब्स कम कर दी हैं.
प्रतिस्पर्धा: हर साल कई लाख स्टूडेंट्स सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करते हैं, जिससे नौकरी के लिए कॉम्पिटीशन बढ़ गया है.
वैकल्पिक रास्ते: सिविल इंजीनियर्स डेटा एनालिटिक्स, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट या एमबीए करके अच्छी नौकरी हासिल कर सकते हैं.
2. मैकेनिकल इंजीनियरिंग (Mechanical Engineering)
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा साइंस जैसे क्षेत्रों में ग्रोथ से पहले मैकेनिकल इंजीनियरिंग की काफी डिमांड थी. लेकिन अब इसमें भी गिरावट दर्ज की जा रही है.
पारंपरिक उद्योगों में मंदी: मैन्युफैक्चरिंग और ऑटोमोटिव सेक्टर में ऑटोमेशन और रोबोटिक्स ने कई पुरानी नौकरियों को प्रभावित किया है. उदाहरण के लिए, मशीन डिजाइन और प्रोडक्शन में अब सॉफ्टवेयर और एआई का इस्तेमाल बढ़ गया है.
आईटी सेक्टर की तरफ रुझान: कई मैकेनिकल इंजीनियर्स को कोर जॉब्स (जैसे डिजाइन, प्रोडक्शन) के बजाय आईटी सेक्टर में शिफ्ट होना पड़ता है, जहां उनकी डिग्री का सीधा इस्तेमाल कम होता है.
कम वेतन: कोर मैकेनिकल जॉब्स में शुरुआती वेतन कंप्यूटर साइंस या इलेक्ट्रॉनिक्स की तुलना में कम मिलता है.
वैकल्पिक रास्ते: मैकेनिकल इंजीनियर्स रोबोटिक्स, ऑटोमेशन या रिन्यूएबल एनर्जी जैसे उभरते क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं. एमबीए या डेटा साइंस में स्किल्स जोड़ना भी फायदेमंद है.
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3. इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electrical Engineering)
आईटी और सॉफ्टवेयर सेक्टर के दबदबे की वजह से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की डिमांड कम हो गई है. इसमें नौकरी की संभावनाएं भी अनिश्चित हैं.
सीमित कोर जॉब्स: पावर जनरेशन और डिस्ट्रिब्यूशन जैसे पारंपरिक क्षेत्रों में ज्यादातर नौकरियां सरकारी या पीएसयू (PSUs) में हैं, जहां सीटें सीमित हैं.
आईटी और सॉफ्टवेयर का दबदबा: कई इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स को कोर इलेक्ट्रिकल जॉब्स (जैसे पावर सिस्टम्स) के बजाय सॉफ्टवेयर या आईटी सेक्टर में जाना पड़ता है, जहां उनकी डिग्री और पढ़ाई का इस्तेमाल कम होता है.
तकनीकी बदलाव: स्मार्ट ग्रिड, रिन्यूएबल एनर्जी और IoT जैसे नए क्षेत्रों में विशेषज्ञता की जरूरत है. लेकिन कई कॉलेजों का सिलेबस पुराना है और इन उभरते क्षेत्रों को कवर नहीं करता है.
वैकल्पिक रास्ते: इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स रिन्यूएबल एनर्जी, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स या ऑटोमेशन में एक्सपर्टीज हासिल कर सकते हैं. GATE के जरिए PSUs में अवसर तलाश सकते हैं.
4. इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (Electronics and Communication Engineering)
अब ज्यादातर स्टूडेंट्स का रुझान आईटी और सॉफ्टवेयर क्षेत्रों की तरफ है. वे एआई, डेटा साइंस और रोबोटिक्स में स्पेशलाइजेशन करना चाहते हैं. इसीलिए ईसीई कोर्स की डिमांड कम हो गई है.
VLSI और हार्डवेयर में कम मांग: पहले VLSI (Very Large Scale Integration) और इलेक्ट्रॉनिक्स हार्डवेयर डिजाइन में अच्छी डिमांड थी, लेकिन अब सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों ने इन्हें पीछे छोड़ दिया है.
आईटी सेक्टर में शिफ्ट: कई ECE ग्रेजुएट्स को कोर इलेक्ट्रॉनिक्स जॉब्स (जैसे सर्किट डिजाइन) के बजाय सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट या टेस्टिंग फील्ड में जाना पड़ता है, जिससे उनकी डिग्री की प्रासंगिकता कम हो जाती है.
आउटडेटेड सिलेबस: कई कॉलेजों में ECE का सिलेबस पुराना है और इसमें AI, IoT या 5G जैसी नई टेक्नीक्स को शामिल नहीं किया जाता है.
वैकल्पिक रास्ते: ECE स्टूडेंट्स IoT, एम्बेडेड सिस्टम्स या 5G टेक्नोलॉजी में स्किल्स डेवलप कर सकते हैं. कोडिंग और डेटा साइंस सीखना भी फायदेमंद है.
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5. केमिकल इंजीनियरिंग (Chemical Engineering)
इंडस्ट्री में सीमित अवसर और केमिकल इंजीनियर्स की डिमांड कम होने की वजह से नौकरियों का अकाल हो गया है. इसीलिए बच्चे इसमें एडमिशन लेने से कतराने लगे हैं.
सीमित उद्योग: भारत में केमिकल इंजीनियरिंग की मांग मुख्य रूप से पेट्रोकेमिकल, फार्मास्यूटिकल, और फर्टिलाइजर इंडस्ट्री में है, लेकिन ये सेक्टर तेजी से बढ़ नहीं पा रहे हैं.
कोर जॉब्स में कमी: कई केमिकल इंजीनियर्स को कोर जॉब्स के बजाय मैनेजमेंट या सेल्स जैसे नॉन-टेक्निकल क्षेत्रों में जाना पड़ता है.
प्रतिस्पर्धा: अन्य ब्रांचेस की तुलना में केमिकल इंजीनियरिंग के कॉलेज कम हैं, लेकिन फिर भी नौकरियों की संख्या सीमित है.
वैकल्पिक रास्ते: केमिकल इंजीनियर्स बायोटेक्नोलॉजी, एनवायर्मेंटल इंजीनियरिंग या डेटा साइंस में एक्सपर्टीज हासिल कर सकते हैं. एमबीए भी एक अच्छा विकल्प है.
6. प्रोडक्शन और इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग
पिछले कुछ सालों में मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री में गिरावट दर्ज की गई है. इसी वजह से इससे जुड़े बीटेक कोर्स का क्रेज भी कम हो गया है.
आउटडेटेड स्कोप: यह ब्रांच पुराने मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्शन सिस्टम्स पर केंद्रित है, जबकि मॉडर्न इंडस्ट्री अब ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और इंडस्ट्री 4.0 की तरफ बढ़ रही है.
कम मांग: इस ब्रांच के लिए कोर जॉब्स सीमित हैं और कई ग्रेजुएट्स को मैनेजमेंट या सप्लाई चेन जैसे क्षेत्रों में शिफ्ट होना पड़ता है.
अन्य ब्रांचेस का दबदबा: मैकेनिकल या कंप्यूटर साइंस जैसी ब्रांचेस इस क्षेत्र की जरूरतों को बेहतर तरीके से पूरा कर रही हैं.
वैकल्पिक रास्ते: इंडस्ट्रियल इंजीनियर्स सप्लाई चेन मैनेजमेंट, लॉजिस्टिक्स या डेटा एनालिटिक्स में स्किल्स डेवलप कर सकते हैं.
डिमांड कम होने के कॉमन कारण
1- आईटी और सॉफ्टवेयर का दबदबा: कंप्यूटर साइंस, डेटा साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसी ब्रांचेस की मांग बढ़ने से पारंपरिक कोर ब्रांचेस (जैसे सिविल, मैकेनिकल) की मांग कम हुई है. भारत में आईटी सेक्टर में उच्च वेतन और ग्लोबल अवसरों ने स्टूडेंट्स का रुझान बदल दिया है.
2- आउटडेटेड सिलेबस: कई कॉलेजों में बीटेक का सिलेबस पुराना है. उसे नए डेवलपमेंट के हिसाब से अपडेट नहीं किया गया है. यह इंडस्ट्री की नई मांगों (जैसे AI, IoT, ब्लॉकचेन) को पूरा नहीं करता है. इससे ग्रेजुएट्स की स्किल्स और नौकरी की जरूरतों में अंतर आता है.
3- ऑटोमेशन और तकनीकी प्रगति: ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और AI ने कई पारंपरिक इंजीनियरिंग नौकरियों को कम कर दिया है, खासकर मैकेनिकल, सिविल और इलेक्ट्रॉनिक्स में.
4- स्टूडेंट्स ज्यादा, नौकरी कम: भारत में हर साल 10 लाख से ज्यादा इंजीनियर्स ग्रेजुएट होते हैं, जिससे कुछ ब्रांचेस में आपूर्ति मांग से ज्यादा हो गई है.
5- कम वेतन और फील्डवर्क: कोर इंजीनियरिंग जॉब्स (जैसे सिविल, मैकेनिकल) में शुरुआती वेतन कम और फील्डवर्क ज्यादा होता है, जो कई स्टूडेंट्स को कम आकर्षक लगता है.
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बीटेक डिग्री की वैल्यू कैसे बढ़ाएं?
नई स्किल्स सीखें: कोडिंग (Python, C++), डेटा साइंस, AI/ML या IoT जैसी स्किल्स सीखें. ये सभी ब्रांचेस के लिए उपयोगी हैं. इसके लिए Coursera, Udemy या Unacademy जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल कर सकते हैं.
इंटर्नशिप और प्रोजेक्ट्स: इंडस्ट्री-प्रासंगिक प्रोजेक्ट्स और इंटर्नशिप करें. इससे अपना रिज्यूमे मजबूत करने में मदद मिलेगी.
उभरते क्षेत्रों में विशेषज्ञता: रिन्यूएबल एनर्जी, रोबोटिक्स, साइबर सिक्योरिटी या ब्लॉकचेन जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करें.
एमबीए या पोस्टग्रेजुएशन: कई इंजीनियर्स एमबीए करके मैनेजमेंट या बिजनेस एनालिटिक्स में शिफ्ट हो जाते हैं. इनमें अच्छी सैलरी और बेहतर अवसर मिलते हैं.
GATE या सरकारी नौकरियां: GATE के जरिए PSUs (जैसे ONGC, BHEL) में नौकरी या MTech के अवसर तलाश सकते हैं.