Afghan dreamers roya mahboob inspiring story: इस वक्त पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच जंग के हालात हैं. सीमा पर तनाव है. दोनों देशों ने डूरंड लाइन जो एक विवादित सीमा है, वहां अपनी फ्रंट लाइन चेकपोस्ट पर भारी तोपें तैनात कर दी हैं. माना जा रहा है कि किसी भी वक्त जंग शुरू हो सकती है. इस बीच एक नाम सुर्खियों में है, जिसने अफगानिस्तान की महिलाओं की जिदंगी सवारने का जिम्मा उठाया और कुछा ऐसा कर दिखाया, जिसकी चर्चा हर तरफ है. ये नाम है रोया महबूब का, जो अफगानिस्तान में जन्मी. अब वो अमेरिका में बैठकर अफगानिस्तान समेत दुनिया की उन तमाम महिलाओं के सपनों को उड़ा दे रही हैं. जिन्हें खुलकर जिदंगी जीने की आजादी नहीं है. उन पर तमाम तरह की पाबंदियां लगी हुई हैं. आइए जानते हैं वो ऐसा क्या कर रही हैं और इसे लेकर उनकी क्या सोच है.
सबसे पहले ये जान लेना जरूरी है कि आखिर रोया महबूब हैं कौन? तो जान लीजिए कि वो अफगानिस्तान की पहली महिला टेक उद्यमी हैं, जो आज अमेरिका में बैठकर अफगान लड़कियों के भविष्य की रक्षा के लिए दिन-रात काम कर रही हैं. तालिबान की पाबंदियों के बीच जहां लड़कियों की पढ़ाई लगभग ठप हो गई है, वहीं रोया महबूब उन बेटियों के लिए नई राहें खोलने में जुटी हैं, जिन्हें खुलकर जीवन जीने की आजादी तक नहीं दी गई.
दरअसल, साल 2021 में अफगानिस्तान की सत्ता में दोबारा तालिबान आने के बाद छठी कक्षा से आगे लड़कियों की पढ़ाई पर प्रतिबंध लगा दिया गया. घर से बाहर कदम रखने पर भी कठोर नियम लागू कर दिए गए.इसी के साथ रोया महबूब द्वारा शुरू किए गए डिजिटल सिटीजन फंड (DCF) और उनकी विख्यात रोबोटिक्स टीम ‘अफगान ड्रीमर्स’ पर भी ग्रहण लग गया. उन्हें अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा और अब वो अमेरिका में जाकर वहां से अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए एक जिगरे वाला काम कर रही हैं.
जिगरे वाला काम कर रही हैं रोया महबूब
रोया महबूब ने द न्यूयॉर्क टाइम्स को हाल में एक इंटरव्यू दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद एक पल को लगा कि सारी कोशिशें बेकार हो जाएंगी, लेकिन मैंने हार मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने बताया कि 2013 में मैंने डिजिटल सिटीजन फंड (डीसीएफ) की नींव रखी थी. जिसका उद्देश्य लड़कियों को टेक्नोलॉजी एजुकेशन देना था. हमने 13 टेक्नोलॉजी सेंटर खोले. मेरी 'अफगान ड्रीमर्स' की रोबोटिक्स टीम की लड़कियां दुनियाभर में ही नाम कमा रही थीं, लेकिन तालिबान के लौटते ही देशभर में हमारे सेंटर बंद हो गए. मुझे जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं, परिवार की सुरक्षा के लिए अमेरिका में बसना पड़ा. 2022 में हमारे कई शिक्षकों को तालिबान ने गिरफ्तार कर लिया था. पर मैं हार मानने वाली नहीं थी.
एआई-इनेबल्ड एप तैयार, फ्री में ऑफलाइन एजुकेशन देने की कोशिश
रोया महबूब को अपनी जन्मभूमि अफगानिस्तान से बेहद प्यार है. वो कहती हैं कि 'मैं दूर हूं, पर मेरा दिल अफगानिस्तान की बेटियों के साथ धड़क रहा था. मैंने अपनी कोशिशें दोगुनी कर दीं. इसके बाद मैंने पूरा नेटवर्क फिर से खड़ा कर दिया. 'अफगान ड्रीमर्स' के सदस्यों को फिर से जोड़ा. अब इसके सदस्य कनाडा, स्वीडन, इटली व अमेरिका में भी हैं. अफगानिस्तान की बेटियों को पढ़ाई से दोबारा जोड़ने के लिए हम ऑफलाइन माध्यम से उन तक पहुंचे. अब मैं जल्द मुफ्त एआई-इनेबल्ड एप 'एडी' लॉन्च कर रही हूं. यह बिना इंटरनेट काम करता है. इसमें 7वीं से 12वीं कक्षा के लेसन, 100 से ज्यादा किताबों के सारांश व मेंटरशिप प्रोग्राम हैं. जोखिम न हो इसलिए राजनीति या लोकतंत्र जैसे विषयों से हमने दूरी रखी है. अब एन्क्रिप्टेड चैनल्स, स्थानीय साझेदारों और छोटे महिला समूहों के जरिए कंटेंट साझा करती हूं.
लड़कियां छिपकर पढ़ती हैं- रोया महबूब
रोया महबूब ने बताया कि कैसे वो अफगानिस्तान की महिलाओं के लिए खुद की परवाह किए बिना एजुकेशन उपलब्ध कराने में जुटी हैं. रोया महबूब कहती हैं कि अंडरग्राउंड सेंटर्स से जुड़कर मैं उनसे संपर्क में रहती हूं. वहां लड़कियां छिपकर पढ़ती हैं. हम उन्हें प्री-रिकॉर्डेड लेक्चर देते हैं, जिन्हें वे फोन पर सुन सकती हैं. ऑफलाइन पढ़ने के लिए किताबें भी डाउनलोड कर सकती हैं. कई महिलाओं को बचत, निवेश या छोटा बिजनेस शुरू करने की जानकारी नहीं है, इसलिए अब हमने मिशन में वित्तीय साक्षरता को भी एड किया है.
बिटकॉइन के बारे में भी एजुकेट कर रहीं महबूब
रोया महबूब ने बताया कि 2013 में जब अफगानिस्तान में महिलाओं के लिए बैंक खाता खोलना मुश्किल था, तब मैंने उन्हें बिटकॉइन का इस्तेमाल सिखाया. इससे महिलाएं खुद अपना बैंक बना सकीं. काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद बैंकिंग सिस्टम चरमरा गया और क्रिप्टोकरेंसी के इस्तेमाल पर रोक लग गई. इसके बावजूद मैं अपने गोपनीय केंद्रों और ऑनलाइन माध्यम से बिटकॉइन की शिक्षा दे रही हूं. मैं लड़कियों को बताती हूं कि यह कैसे काम करता है और इससे उनकी जिंदगी कैसे बदल सकती है.
कोडिंग भी सिखाई जा रही है
रोया महबूब ने ये भी बताया कि हम कोडिंग भी सिखा रहे हैं. 11 से 18 साल की लड़कियों के लिए इनौरा एकेडमी की पहल की है. इसमें हम शैक्षणिक रोबोट और कॉमिक्स डिजाइन करते हैं. हमारी रोबोट 'बी' एआई-पावर्ड है, जो बच्चों को खेल, मूवमेंट और इमोशन के जरिए कोडिंग व वित्तीय साक्षरता सिखाती है. इस पहल में रोबोटिक्स को कला, कहानी और कॉमिक्स के साथ जोड़ा गया है ताकि सीखने को मजेदार बनाया जा सके.
इस काम में रिस्क और डर को लेकर रोया महबूब कहती हैं 'मैं जानती हूं कि खतरा बहुत बड़ा है, पर लड़कियों का साहस मुझे प्रेरित करता रहता है. मेरी इच्छा है कि जब मेरा एप आधिकारिक तौर पर लॉन्च हो, तो हजारों लड़कियों तक पहुंच सकूं. मेरी हर कोशिश उन्हें शिक्षा और वह सम्मान वापस दिलाएगी, जो उनसे छीन लिया गया है'.
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1 hour ago
